देहरादून । क्या उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में लोकतंत्र की आवाज कमजोर पड़ रही है एसडीसी फाउंडेशन ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में हुए मतदान पर ‘पलायन और उत्तराखंड चुनाव 2017 रिपोर्ट जारी कर यह संदेह व्यक्त किया है। फाउंडेशन का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्रों की विस सीटों पर मतदाताओं की संख्या मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम तो है ही, साथ ही इन क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्रों की तुलना में कम लोग वोट करने पोलिंग बूथ पर जाते हैं।
इस तरह से करीब 40 से 50 प्रतिशत पहाड़ का मतदाता लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाता है। रिपोर्ट के अनुसार पहाड़ में कम मतदान के पीछे कहीं न कहीं बढ़ता पलायन भी एक बड़ा कारण है।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल का कहना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में औसत मतदान 65.60 प्रतिशत था। उत्तरकाशी जिले को छोड़ दें तो सभी पर्वतीय जिलों में मतदान प्रदेश के औसत मतदान से कम हुआ था।
टिहरी, पौड़ी व अल्मोड़ा ऐसे पर्वतीय जनपद रहे जहां पर सबसे कम मतदान हुआ था। मैदानी जिले हरिद्वार में लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण और पिरान कलियर विस क्षेत्र में सबसे अधिक मतदान हुआ था। इन तीनों निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान का औसत 81 से 82 प्रतिशत के बीच रहा था।
जबकि पौडी जिले के लैंसडौन व चौबट्टाखाल और अल्मोड़ा जिले के सल्ट विस सीट पर सबसे कम यानी 46 से 48 प्रतिशत के बीच मतदान हुआ था। इसी तरह टिहरी जिले के घनसाली सीट में भी मतदान प्रतिशत 50 फीसदी से कम रहा था।
नौ पर्वतीय जिलों के 34 निर्वाचन क्षेत्रों में से 28 का वोट प्रतिशत राज्य के औसत यानी 65.60 फीसद से कम था।
सिर्फ उत्तरकाशी ऐसा पर्वतीय जिला रहा जहां पर मतदान प्रतिशत बेहतर रहा। अनूप नौटियाल का कहना है कि पिछले विस चुनाव के मतदान के इन आंकड़ों पर गौर करते हुए सरकारों, नीति-नियंताओं तथा जनप्रतिनिधियों को देखने व समझने की जरूरत है कि उत्तरकाशी में ऐसे क्या कारण हैं कि वहां अन्य पर्वतीय जिलों की तुलना में मतदान प्रतिशत अधिक रहा।
पहाड़ में मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए उत्तरकाशी मॉडल को अपनाने की बात भी उन्होंने कही है। कहा कि निर्वाचन आयोग को भी इसकी पहल करनी चाहिए। कोविड प्रतिबंधों को देखते हुए टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे प्रयास किए जा सकते हैं।