चुनावी चक्रव्यूह: लखनऊ ने दिल्ली दरबार की बढ़ाई धुक-धुकी

  • यूपी में कमल मुरझाया तो दिल्ली के लोकसभा चुनाव में होगी दिक्कत
  • यूपी में साम, दाम, दंड, भेद के सभी हथकंडे आजमा रही भाजपा

वीरेंद्र सेंगर, नयी दिल्ली/लखनऊ।

यूं तो चुनाव पांच राज्यों में होने जा रहे हैं। लेकिन सबसे कठिन डगर यूपी की है। क्योंकि यहां के चुनाव का सीधा कनेक्शन 2024 में दिल्ली सरकार के चुनाव से जो है। मान्यता यही है कि यदि यूपी के विधानसभा के चुनाव में कमल मुरझाया तो दो साल बाद लोकसभा के चुनाव में कठिन डगर पनघट की नौबत आ जाएगी।

इसी को लेकर कमल दल के आला नेता हलकान हैं। उन्होंने साम, दाम, दंड, भेद के सभी हथकंडे यहां पिछले महीनों में आजमा लिये हैं। बाकी बचे फामूर्ले भी धड़ल्ले से आजमाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में हाल में संपन्न हुई हरिद्वार और रायपुर (छत्तीसगढ़) की धर्म संसद जिनमें कथित संतों ने सांप्रदायिक घृणा फैलाने का मंत्र खुलेआम फूंका। हिंदुत्व के नाम पर इन लोगों ने महात्मा गांधी तक को गालियां दे डालीं।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हत्या करवाने का संकल्प जाहिर किया। सभी जानते हैं कि हिंदुत्व के पैरोकार सारी कवायद बीजेपी की चुनावी जमीन को उर्वरा बनाने के लिए ही करते हैं। हालांकि, छत्तीसगढ़ सरकार ने मुख्य आरोपी को जेल में डाल दिया है।
इस सबके बाद भी बीजेपी के लिए चुनावी कोहरा घना हुआ है। पार्टी और सरकार के एकमात्र सुपरस्टार नरेंद्र मोदी का आभामंडल लगातार फीका पड़ता जा रहा है। मोदी जी पिछले आठ साल से तारणहार की भूमिका में रहे हैं। वे चुनावी सफलता की अचूक गारंटी बन गए थे। उन्होंने प्रचार माध्यमों के जरिए जन-जन में यह संदेश फैला दिया था कि मोदी जी अजेय हैं। वे तो अवतार हैं।
जो भारत का संपूर्ण कायाकल्प करने आए हैं। क्योंकि पूर्व सरकारों ने 70 सालों में केवल लूट की और बर्बादी की है। अब नया रामराज आया है। भारत बहुत बदला है। बस पूरी दुनिया में उनका डंका बजने ही जा रहा है। कुछ महीनों की ही बात है। वह विश्व गुरु बनने जा रहा है। इसी से देसी और बाहरी ताकतें उनकी कालजयी मुहिम में बाधा डालने की कोशिश कर रही हैं।

ऐसे में कम से कम देश के 100 करोड़ हिंदुओं की जिम्मेदारी है कि वे कि वह पांचों राज्यों में भाजपा को मजबूती प्रदान करें, ताकि प्रधानमंत्री अपनी जगत सेवाका नया रिकॉर्ड बना सकें। यह बात भाजपा के दिग्गज नेताओं के भाषणी कोहराम का सार तत्व लिख रहा हूं।
चुनाव में सफलता की गारंटी के लिए साहिब की आला टीम ने क्या नहीं किया! लोकतंत्र की भी खुलेआम ऐसी तैसी की। विरोधी क्षत्रपों की संघ परिवारी हुड़दंगियों से जमकर चरित्र हत्या कराई। तमाम शिगूफे चलाए गए।

कांग्रेस पर खास निशाने साधे जा रहे हैं। इस पार्टी के कर्णधार राहुल गांधी को निकम्मा साबित करने के लिए सालों से एक मुहिम चल ही रही है। मीडिया पूरा कब्जे में है।
ऐसे में गालियां भी राष्ट्रभक्ति के रूप में परोसी गई हैं। राहुल गांधी को पप्पू साबित करने के लिए अरबों रुपए के खर्च से मीडिया मुहिम चलाई जा रही है। हैरानी की बात है कि इसके बाद भी राहुल अपने नाम को सार्थक करते हुए मोदी मार्च में जमकर कांटे फैलाए जा रहे हैं। इसलिए इनसे पूरा संघ परिवार सहमा हुआ है।

वरना, प्रधानमंत्री से लेकर संघ प्रमुख के खास निशाने पर केवल राहुल गांधी नहीं होते! अब तो खैर, उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। खास तौर पर यूपी में जहां कुछ महीने पहले तक कांग्रेस की कोई हैसियत नहीं नहीं थी, वहां आज प्रियंका बड़ी जनसभाएं कर रही हैं। झांसी सहित कई शहरों में युवा लड़कियों के मैराथन ने भाजपा ही नहीं, सपा नेतृत्व को भी बैचैन कर दिया है।
यूपी में विधानसभा की 403 सीटें हैं। लोकसभा की 80 सीटें। माना जाता है कि दिल्ली दरबार का रास्ता लखनऊ से ही निकलता है। पिछले कई सालों से यहां भाजपा का परचम लहरा रहा है। 2014 से शुरू हुआ जीत का अभूतपूर्व सिलसिला थमा नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में तमाम कयासों को धता बताते हुए भारतीय जनता पार्टी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की थी।

पार्टी के चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह के हाथ चुनावी कमान थी। वह मोदी जी के हनुमान माने जाते हैं। सभी पैमानों पर आज भी महाबली हैं। देश के दबंग गृहमंत्री हैं। इसी बजरंगबली के हाथ इस बार भी यूपी की चुनावी कमान है। फिर भी संकट के बादल और काले हो रहे हैं। जबकि देश के सबसे दबंग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यही हैं। वे संघ परिवार के हिंदुओं के सबसे बड़े प्रखर चेहरा हैं।
दूसरों के मुकाबले में योगी काफी युवा हैं।

हिंदी में बिना अटके शानदार भाषण देते हैं। उनकी भाषा से ही नहीं, उनकी भाव भंगिमा से भी ओज टपकता है। उनकी सरकार की नीति है ठोक दा। तमाम आलोचनाओं के बाद भी योगी जी ने अपनी शैली नहीं बदली। चुनाव किसी राज्य में हों, योगी जी को वहां स्टार प्रचारक के रूप में हिंदुत्व की अलख जगाने के लिए भेजा जाता रहा है। चाहे हैदराबाद नगर निगम का चुनाव हो या पश्चिम बंगाल का प्रतिष्ठापूर्ण चुनावी रण हो। योगी जी प्रचंड भाषण देते हैं।

हिंदुत्व की इतनी आग लगाते हैं कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो जाए। उनके भाषण की खास बात यह है कि वह शुद्ध हिंदी बोलते हैं। कभी बीच में अटकते-भटकते नहीं है। इतना ओजस्वी वक्ता भाजपा में आज के दौर में शायद ही कोई और हो, लेकिन इसमें भी चुनावी नैया डूबती लग रही है।
भाजपा के रणनीतिकार इसी को खास फोकस कर रहे हैं कि योगी राज में कानून व्यवस्था की स्थिति बेहतर हुई है। अपराधी डान या तो यूपी छोड़ गए हैं या जेल में हैं। इशारों-इशारों में यह भी बता रहे हैं, खासतौर पर मुस्लिम गैंगेस्टर चूहा बना दिए गए हैं। साथ ही, कुछ बड़े अपराधियों के नाम भी गिना दिए जाते हैं।

अर्धसत्य जुमले लोग पसंद भी करते हैं। पिछले सालों में पुलिस ने सैकड़ों बदमाशों को एनकाउंटर में या तो ऊपर पहुंचा दिया या तो लंगड़ा कर दिया। वाकई में यदि यह मुहिम ढंग से चलाई गई होती तो तस्वीर कुछ और होती। इसे ही योगी जी का ठोक दो फामूर्ला कहा गया। इस मुहिम में भी चुनावी रणनीति पर जोर रहा। यानी सांप्रदायिक धु्रवीकरण के लिए एनकाउंटर भी हथियार बने। यह नीति आज भी जारी है।
पिछले पांच साल में यहां सरकारी तंत्र ने मानवाधिकारों को तो जमकर ठेंगा दिखाया है। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को हरदम डराकर रखने की रणनीति रही है। इसको सरकार ने प्रसारित भी कराया। मानों प्रदेश के करोड़ों मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक हों।

एक मामले में योगी सरकार ने संविधान को भी ठेंगा दिखाया है। इस दुर्नीति को संघ परिवारी उनका दबंगपन बताते हैं। सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश का नारा बुलंद करती रही है। जबकि जमीनी सच्चाई है कि ब्लॉक स्तर से लेकर लखनऊ के पंचम तल तक रिश्वत के रेट बढ़े हैं। यह बात तमाम लोगों के अनुभव से कहीं जा रही है।

पिछले दिनों मैंने यूपी के एक प्रमुख सचिव से फोन पर पूछा था कि योगी जी के राज में रिश्वतखोरी कम हो गई है। उन्होंने बड़ी सावधानी से कहा ऐसे सवाल का जवाब देना मित्र खतरे से खाली नहीं है। लेकिन मैंने तो सुना है पूरी यूपी में अखिलेश यादव और मायावती के राज से ज्यादा रिश्वत के रेट हैं। हां, सीएम निजी तौर पर खेल से एकदम बाहर है। यह अधिकारी काफी साफ-सुथरी छवि के हैं।
यह बात जरूर भाजपा के पक्ष में जाती है कि निजी तौर पर योगी जी की छवि पैसों को लेकर साफ-सुथरी है। जबकि सपा और बसपा के मुखिया इस मामले में बदनाम रहे हैं। हकीकत जो भी हो, लेकिन जन भावनाएं यही है। वैसे भी सियासत में हकीकत के बजाय परसेप्शन ज्यादा अहमियत रखता है। लेकिन उनके मंत्रियों की बारात के बारे में लोगों की भावनाएं एकदम उलट हैं। पुलिस तंत्र तो और भी बिगड़ गया है।
एक साल से चले आ रहे किसान आंदोलन ने यहां भाजपा के लिए हालात काफी गंभीर कर दी है। यद्यपि यह आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए विवादित कृषि कानूनों को लेकर रहा है। आंदोलन भले ही दिल्ली की सीमाओं पर चला हो। लेकिन उसका असर पूरे देश में हुआ। खासतौर पर हिंदी पट्टी के प्रदेशों में। अक्टूबर के महीने में लखीमपुर खीरी में आंदोलनकारी कई किसानों को केंद्रीय राज्यमंत्री टेनी के पुत्र ने कारों के काफिले से कुचल डाला था।

एक पत्रकार सहित पांच किसानों की मौके पर ही मौत हो गई थी। इससे देशव्यापी गुस्सा फैला था। अपने मंत्री पुत्र की करतूत छुपाने के लिए प्रदेश सरकार ने भरसक प्रयास किये थे। वह तो सर्वोच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान ले लिया। पूरा विपक्ष भी एकजुट रहा। किसान आंदोलन और व्यापक हुआ तो सरकार ने मंत्री पुत्र को गिरफ्तार किया। इस कांड के बाद से रोहिलखंड तराई इलाके से पूर्वी उत्तर प्रदेश तक गांव में सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ा।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले से ही किसान सरकार के खिलाफ लामबंद हो गए थे। हालात यह है कि पश्चिमी यूपी से लेकर अन्य कई भागों में भाजपा के सांसद, एमएलए व मंत्रीगण गांव में घुस नहीं पा रहे थे। केंद्र ने कृषि कानून वापस लिये तो आंदोलन फिलहाल स्थगित हो गया। लेकिन किसान नेता भाजपा हटाओ मुहिम तो चला ही रहे हैं।
दूसरी तरफ सपा के नेतृत्व में मजबूत मोर्चा बन गया है। अखिलेश यादव सीएम पद के चेहरे हैं। रालोद सहित कई छोटे दल साथ में हैं। इस मोर्चे की रैलियों में खासी भीड़ उमड़ रही है। लोग योगी-मोदी के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। बेरोजगारी और बढ़ी महंगाई के मुद्दे उछल रहे हैं।

अरबों रुपए के विज्ञापन से सरकार उपलब्धियों का मायाजाल चला रही है। लेकिन पीएम तक की रैलियों में खुलेआम सरकारी विभागों की ओर से भीड़ जुटाई जा रही है। सीएम की सभाओं का माहौल भी नरम है। अंदरूनी सर्वेक्षणों में भी करारी हार के संकेत हैं। अब तक हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद के मुद्दे वोट बटोरू नहीं बन रहे हैं। सो, चुनाव टालने के भी बहाने खोजे जा रहे हैं।

चुनाव पर संशय खत्म, फिर भी उलटफेर संभव

इस दौर में बेसब्री से इंतजार हो रहा है कि चुनाव आयोग पांच राज्यों के लिए चुनावी अधिसूचना कब जारी करता है। हालांकि, चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी है कि कोविड प्रोटोकॉल के तहत समय पर ही चुनाव कराए जाएंगे। संसद का शीतकालीन सत्र भी समाप्त हो चुका है।

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की रैलियां भी जमकर हो रही हैं। जनता को लुभाने के लिए अरबों रुपए के खर्च से उपहार बांटे जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में युवा स्कूली मतदाताओं को रिझाने के लिए करोड़ों स्मार्टफोन मुफ्त दिए गए हैं। मुख्य मीडिया पूरी तरह सरकार के साथ है। विज्ञापनों से शाइनिंग यूपी हो रहा है। कथित तौर पर सपा के समर्थक धनकुबेर के यहां कानपुर में इनकम टैक्स का छापा पड़ा है। इसमें 300 करोड़ से ज्यादा का अकूत धन मिला है। अखिलेश यादव को इंगित किया जा रहा है। पीयूष जैन, कन्नौज में इत्र का कारोबार करते हैं। और भी इनके कई गोरखधंधे हैं। इसी से इनके यहां 275 करोड़ के नोट भी मिले हैं।

सोना-चांदी अलग से है। सपा की तरफ से कहा गया कि जैन से पार्टी का कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन संघ का तंत्र यह फैला रहा है कि यह धन सपा नेता अखिलेश का है। यानी कि महा भ्रष्टाचारी है। इससे सपा में कुछ बैचैनी तो होगी। लेकिन महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे भारी हो गए हैं। छापेमारी से भी विरोधी नेता जरा भी दब नहीं रहे हैं। उनकी सभाएं और बड़ी हो रही है।

विपक्ष योगी मोदी पर तीखे हमले कर रहा है यानी हथकंडा भी फ्लॉप। मुसलमान सामान्य तौर पर सपा के मोर्चे की तरफ झुका है। कांग्रेस ने अपना जनाधार जरूर बढ़ाया है। लेकिन उसके पास अभी जिताऊ फामूर्ला नहीं है। यह जरूर है कि दर्जनों सीटों पर भाजपा तीसरे नंबर पर जा सकती है। मायावती की स्थिति काफी कमजोर है। गैर जाटवों के वोट कटकर कांग्रेस की झोली में जा सकते हैं। जबकि पूरा पिछड़ा वर्ग सपा मोर्चा के साथ खड़ा नजर आ रहा है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई कारणों से ब्राह्मण समाज भाजपा को आंख दिखा रहा है। वह योगी जी के धुर खिलाफ है। ऐसे में भाजपा का आलाकमान दुविधा में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने कोरोना की संभावित लहर को देखते हुए पीएम से चुनाव टालने की अपील की है। इसको लेकर चुनाव आयोग भी अपना आकलन कर रहा है। कौन नहीं जानता चुनाव आयोग किस की धुन पर नाचने के लिए बदनाम है।

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