कोरोना वायरस के नये वेरियंट ओमिक्रोन के बढ़ते संक्रमण के साये में हम नये साल में प्रवेश कर कर रहे हैं। उम्मीद है बीते साल की तबाही से जनता और सरकार सबक लेकर महामारी की तीसरी लहर से बेहतर ढंग से निपट सकेंगे…
धर्मपाल धनखड़
नयी संभावनाओं और आशाओं के साथ हम नव वर्ष 2022 में प्रवेश कर रहे हैं। कहते हैं वर्तमान के कर्मों से ही भविष्य का निर्माण होता है। इस उक्ति के आलोक में यदि बीते साल पर नजर डालें तो हालात बहुत बेहतर नहीं हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश में जो भयावह स्थितियां बनी थीं, उन्हें याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अस्पतालों में मरीजों की लाइनें लगीं थीं।
उन्हें इलाज तो दूर बेड तक नहीं मिल पाये। जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी और आक्सीजन की कमी से हालात बदतर हो गये। श्मशान घाटों पर शवों की लाइनें और गंगा में तैरती लाशों का मंजर शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा।
कोरोना वायरस के नये वेरियंट ओमिक्रोन के बढ़ते संक्रमण के साये में हम नये साल में प्रवेश कर कर रहे हैं। उम्मीद है बीते साल की तबाही से जनता और सरकार सबक लेकर महामारी की तीसरी लहर से बेहतर ढंग से निपट सकेंगे।
लॉकडाउन में देश की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गयी थी। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये। एक झटके में करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गये। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 116 देशों की सूची में 111वें स्थान पर है।
देश में आमदनी की गैर बराबरी का सच भयावह है। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष की दूसरी और तीसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने मजबूती दिखाई है। लेकिन मुद्रास्फीति का दबाव और ओमिक्रोन का बढ़ता संक्रमण नये साल में चुनौती बन सकते हैं।
देश में अब तक कोरोना संक्रमण के 80 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। ओमिक्रान के केस भी लगातार बढ़ रहे हैं। संतोष की बात ये है कि अब तक 1.41 करोड़ कोरोनारोधी वैक्सीन लगाये जा चुके हैं। 57.55 करोड़ लोगों को दोनों टीके लग चुके हैं। बावजूद इसके महामारी की तीसरी लहर से निपटने की चुनौती सामने है।
बीते साल की कुछ घटनाओं की छाप नये साल में भी दिखाई देगी। बढ़ती महंगाई बेकाबू होती जा रही है। पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दामों में बेहताशा बढ़ोतरी हुई है। सरकार महंगाई को लेकर हाथ खड़े कर चुकी है। आवश्यक वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़े हैं। गिरती साख के दृष्टिगत सरकार ने पेट्रोल व डीजल पर केंद्रीय कर कम अवश्य किया है।
लेकिन यह नाकाफी है। दूसरी तरफ बड़े पैमाने पर रोजगार देने वाले जूता उद्योग पर नये साल में जीएसटी की दर पांच फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दी गयी है। महंगाई और करों की मार से बिलबिला रहे उपभोक्ता के लिए राहत की कोई खबर कहीं से नहीं मिल रही है। अर्थव्यवस्था की बढ़ती दर को भी स्थाई नहीं माना जा सकता है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी सरकार के समक्ष ऐसी बड़ी चुनौतियां हैं जिनके दूरगामी परिणाम होंगे।
नये साल की शुरूआत में ही उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। और साल की अंतिम तिमाही में गुजरात जैसे राज्य में भी विधानसभा चुनाव होंगे। इसमें उत्तरप्रदेश विधानसभा का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है।
उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणामों का असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। इसलिए इसे लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार भी दबाव में है। इसी कारण अजेय समझी जाने वाली मोदी सरकार एक साल से आंदोलन कर रहे किसानों की मांग मानने को मजबूर हो गयी और नये कृषि सुधार कानून वापस लेने पड़े।
आंदोलन से कारोबारियों और राजस्व का काफी नुकसान हुआ है। वहीं, पंजाब-हरियाणा के किसानों में एकजुट पैदा हुई और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में फिर से जाट-मुस्लिम भाईचारा कायम हो गया।
किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर-खीरी में केंद्रीय राज्यमंत्री के पुत्र द्वारा आंदोलनकारी किसानों को गाड़ियों से कुचलने की निर्मम घटना ने बढ़ती असहनशीलता को उजागर किया है।
वहीं, आंदोलन के दौरान सिंघू बार्डर पर बेअदबी के नाम पर एक युवक की हत्या करके लटकाना और पंजाब में बेअदबी के नाम पर दो लोगों की पीट-पीटकर हत्या और मॉबलिंचिंग की बढ़ती घटनाएं भीड़ के न्याय के क्रूरतम उदाहरण हैं। विधर्मियों से जबरन अपने धर्म के नारे लगवाना, हिंदुत्व के ठेकेदारों द्वारा गुरुग्राम में मुस्लिम समाज को नमाज अदा करने से रोकना, कई जगहों पर क्रिसमस के कार्यक्रमों में हुड़दंग मचाना और अंबाला के एक चर्च में ईसा मसीह की मूर्ति तोड़ना आदि घटनाएं सांप्रदायिक तनाव फैलाने की साजिश हैं।
हरिद्वार और छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुई धर्म संसदों में तथाकथित संतों ने सरेआम एक समुदाय के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा फैलाने आह्वान किया है। ये बेहद चिंताजनक है। जाहिर है ये सब आगामी चुनाव में सांप्रदायिक धु्रवीकरण के लिए किया जा रहा है। सरकार को इस तरह की साजिश करने वालों से सख्ती से निपटना चाहिए। देश गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है।
इस संकट से मिलजुल कर एकजुटता के साथ ही निपटा जा सकता है। आज सबसे ज्यादा जरूरत है विभिन्न मुद्दों और समस्याओं के समाधान के लिए कारगर कदम उठाने की। सरकार को मन की बात करने की बजाय जन की बात सुननी होगी।
जनता से जुड़े मुद्दों का हल भी जनता के बीच से ही निकलता है। इसलिए लोकतंत्र में पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच संवाद जरूरी है, जो करीब एक दशक से नदारद है।
उम्मीद करते हैं कि नये साल में हमारे जनप्रतिनिधि निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर जनहित के काम करने का संकल्प लेंगे। साथ ही, सरकार से भी महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं से मुक्ति दिलवाने के लिए कारगर कदम उठाने की अपेक्षा है।