हरक-काऊ-प्रीतम संग उड़े तो सियासत में उड़े अटकलों के विमान
सूत्र कह रहे कि इस बार दोनो कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के जरिए कांग्रेस आलाकमान से संपर्क साध सकते हैं
- हरक सिंह रावत को भाजपा में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने व काऊ के कैबिनेट सीट के लिए लॉबीइंग की चचा
- क्या भाजपा आलाकमान ऐसा जोखिम लेगा कि उन्हें ही चुनाव की कमान सौंप दी जाए जिनको लेकर अटकलें
देहरादून। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत, भाजपा विधायक उमेश शर्मा काऊ और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह एक ही उड़ान से दिल्ली रवाना होने से सूबे की सियासत में अटकलों के विमान उडऩे लगे है।
अगले साल विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, दलबदल की बयार बह रही है। नेता नफे-नुकसान का गणित लगाकर इधर से उधर हो रहे हैं तो ऐसे में तीनों के अचानक एक साथ दिल्ली जाने से तमाम तरह की सियासी अटकलें शुरू हो गई है। जहां एक ओंर इसे हरक और काऊ की कांग्रेस में वापसी से जोड़ा जा रहा है वहीं ऐसी अटकलें भी हैं कि हरक जहां अपने और अपनी बहू के लिए विधानसभा का टिकट पक्का करने दिल्ली गए हैं तो उमेश शर्मा काऊ कैबिनेट मेें जगह की गारंटी लेने।
इस सब चर्चाओं वजह है बीते दिनों दो निर्दलीय विधायकों प्रीतम पंवार और रामसिंह कैड़ा और कांग्रेस विधायक राजकुमार का भाजपा का दामन थामने के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक पुत्र संजीव आर्य के कांग्रेस में लौट आने जैसी सियासी उलटफेर वाली घटनाएं।
फिलहाल ऐसा बताया जा रहा है कि हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा काऊ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के मुलाकात करने गए हैं लेकिन बीती घटनाओं की रोशनी में तमाम तरह के कयास जारी है।
चर्चा यह भी हो रही है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व हरक सिंह रावत को अहम जिम्मेदारी सौंप सकता है और इसीलिए शनिवार को उन्हें विधायक उमेश शर्मा काऊ के साथ दिल्ली बुलाया गया है। वैसे बता दें कि हरक सिंह भी सरकार से बहुत संतुष्ट नजर नहीं आते। दरअसल भाजपा सरकार में उनके साढ़े चार बहुत अच्छे नहीं बीते पहले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत उन्हें नाथे रहे तो बाद में तीरथ और धामी की सरकार में भी उन्हें सन्निर्माण बोर्ड जैसे मामलों में अपनी ही सरकार से जूझना पड़ा। अब चुनाव करीब हैं तो उन्हें अपनी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं के लिए लैंसडौन से टिकट चाहिए और खुद के लिए भी किसी अन्य सीट से हालांकि वह सार्वजनिक तौर पर यह कह रहे हैं कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। वहीं उमेश शर्मा काऊ का कार्यकाल भी भाजपा में बहुत सहज नहीं रहा। माना जाता है कि उनके रायपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ता ही उनके खिलाफ बैठकें करते रहते हैं। यह आपसी झगड़ा जब-तब सडक़ पर भी आता रहता है। कहा जाता है कि बीते दिनों यशपाल आर्य व संजीव आर्य के साथ भाजपा छोड़ कांग्रेस में जाने के लिए वह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की ड्यौढ़ी तक पहुंच भी गए थे लेकिन उल्टे पांव लौटकर भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख व राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के पास चले गए।
माना जाता है कि विजय बहुगुणा हरक सिंह और सुबोध उनियाल जैसे नेताओं की सलाह पर उन्होंने फिलहाल अपने कदम थामे हैं और वह चाहते थे कि 216 में कांग्रेस से बगावत करने वाले तमाम नेताओं को बिना शर्त कांग्रेस में प्रवेश दे दिया जाए। सूत्र कह रहे हैं कि इस बार दोनो कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के जरिए कांग्रेस आलाकमान से संपर्क साध सकते हैं।
वैसे यशपाल आर्य के कांग्रेस में चले जाने से धामी कैबिनेट में भी एक सीट खाली हो गई है, जिसके लिए तमाम भाजपा विधायकों ने दावेदारी औ’र लॉबीइंग शुरू कर दी है, ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि काऊ कैबिनेट में जगह पक्की करने के लिए दिल्ली गए हैं।
चर्चा यह भी है कि भाजपा चुनाव से पहले हरक को बड़ा जिम्मेदारी दे सकती है क्योंकि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले वह नहीं चाहती कि पार्टी टूटती दिखे और उसका ग्राफ और लुढक़ जाए। कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और विधायक संजीव आर्य के कांग्रेस में वापसी के बाद से भाजपा अब हर कदम फूंक-फूंक कर रख रही हैं और डैमेज कंट्रोल में जुटी है। चर्चा तो यहां तक उड़ रही है कि हरक सिंह रावत को या तो भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है या फिर चुनाव में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है, मगर सवाल यह है कि क्या जब हरक व काऊ के कांग्रेस में जाने की चर्चाएं भी हैं तो क्या भाजपा आलाकमान ऐसा जोखिम लेगा कि उन्हें ही चुनाव की कमान सौंप दी जाए जिनको लेकर अटकलें हों कि वे कभी भी कांग्रेस में जा सकते हैं। बहरहाल सियासत क्या मोड़ लेती है यह तो आने वाले दिनों में ही साफ हो पाएगा।