नाबार्ड और एस बी आई के बीच 1000 संयुक्त देयता समूहों के वित्तपोषण के लिए अनुबंध

देहरादून। नाबार्ड, उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम में नाबार्ड, उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून और भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय नई दिल्ली के बीच उत्तराखंड राज्य में 1000 संयुक्त देयता समूहों(जेएलजी) के वित्तपोषण के लिए अनुबंध हुआ।

नाबार्ड, उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय की तरफ से समझौता ज्ञापन पर भास्कर पंत, महाप्रबंधक और भारतीय स्टेट बैंक, स्थानीय प्रधान कार्यालय नई दिल्ली की तरफ से अभय सिंह, महाप्रबंधक ने हस्ताक्षर किए।

इस बैठक का आयोजन डॉ.ज्ञानेंद्र मणि, मुख्य महाप्रबंधक/प्रभारी अधिकारी नाबार्ड, उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून की अध्यक्षता में किया गया।

इस अवसर पर नाबार्ड उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून से ए.पी.दास, मुख्य महाप्रबंधक एस.एल.बिड़ला, उप महाप्रबंधक, तनुजा प्रसाद, उप महाप्रबंधक, एमसीआईडी के अधिकारी और तीन जिला विकास प्रबन्धक मौजूद थे, और भारतीय स्टेट बैंक से अभय सिंह, महाप्रबंधक, नई दिल्ली स्थानीय प्रधान कार्यालय के अलावा राजीव रत्न श्रीवास्तव, उपमहाप्रबंधक, नई दिल्ली स्थानीय प्रधान कार्यालय, श्री राज कुमार सिंह, उप महाप्रबंधक/ज़ोनल प्रबन्धक, देहरादून, नई दिल्ली स्थानीय प्रधान कार्यालय के अधिकारी और ज़ोनल कार्यालय देहरादून के अधिकारी उपस्थित थे। इसके अलावा एसएलबीसी के संयोजक श्री नरेंद्र रावत ने भी इस बैठक में प्रतिभाग किया।

चर्चा के दौरान डॉ.ज्ञानेंद्र मणि, मुख्य महाप्रबंधक तथा प्रभारी अधिकारी नाबार्ड, उत्तराखण्ड क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून ने कहा कि जेएलजी वित्तपोषण कृषि और अनुषंगी कार्यकलापों और कृषेतर कार्यकलापों के लिए ऋण व्यवस्था के लिए प्रभावी टूल साबित हो सकता है।

नाबार्ड द्वारा सफलतापूर्वक कार्यान्वित जनजातीय विकास प्रोजेक्ट्स, जलागम विकास प्रोजेक्ट्स, किसान उत्पादक संघ प्रोजेक्ट्स क्षेत्रों के लोगों की ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जेएलजी वित्तपोषण किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य संभाव्यता वाले क्षेत्रों एवं गतिविधियों की पहचान कर जेएलजी वित्तपोषण को गति दी जा सकती है।

उन्होंने कहा कि कुछ गतिविधियों के वित्तपोषण पर, आवश्यकतानुसार सब्सिडि प्रदान करने के लिए राज्य सरकार से भी आग्रह किया जा सकता है। इसके अलावा डॉ.ज्ञानेंद्र मणि ने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि(पीएमकेएसएन) और केसीसी सेट्यूरेसन के लिए पीएमएफ़बीवाई पोर्टल को मर्ज करने से बैंक प्रबन्धकों को डाटा प्राप्त करने में आसानी होगी।

भारतीय स्टेट बैंक के महाप्रबंधक अभय सिंह ने कहा कि एसबीआई वेंडर फ़िनान्स योजना के माध्यम से कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक लोगों की ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रयास कर रहा है।

इसके अलावा उन्होंने कहा कि उनके बैंक द्वारा किसानों को डिजिटल एग्री सोल्यूशंस प्लैटफ़ार्म द्वारा सुविधा प्रदान करने पर ज़ोर दिया जा रहा है, और इसके लिए योनो सफल और योनो कृषि उत्पाद लॉंच किए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय स्टेट बैंक, नाबार्ड और सरकार की सक्रिय साझेदारी ग्रामीण आधारभूत सुविधाओं और वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में बहुत सहायक होगी।

समझौता ज्ञापन के अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक उत्तराखंड राज्य में विभिन्न जेएलजी संवर्धक संस्थाओं के माध्यम से राज्य के सभी 13 जिलों में तीन साल में 1000 संयुक्त देयता समूहों का वित्तपोषण करेगा।

नाबार्ड भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों तथा शाखा प्रबन्धकों और स्टेट बैंक के वित्तीय समावेशन और सूक्ष्म बाजार वर्टिकल के स्टाफ को संयुक्त देयता समूह वित्तपोषण की बारीकियों की जानकारी देगा और संयुक्त देयता समूहों के वित्तपोषण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करेगा।

इस समझौता ज्ञापन के साथ अभी तक वर्तमान वित्तीय वर्ष में नाबार्ड उत्तराखंड क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा 1400 संयुक्त देयता समूहों(जेएलजी) के वित्तपोषण हेतु विभिन्न बैंकों/एनजीओ को स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है।
संयुक्त देयता समूहों के वित्तपोषण की अवधारणा भूमिहीन किसान, बटाईदार किसान, टेनेंट किसान, मौखिक पट्टेदार किसान, छोटे और मझोले किसान, जिनके पास भूमि रिकॉर्ड्स नहीं हैं, की कृषि और अनुषंगी कार्यकलापों हेतु ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया गया है।

इसके अलावा अकृषि क्षेत्र के बहुत छोटे उद्यमियों की आय सृजक गतिविधियों के लिए ऋण आवश्यकता की पूर्ति भी संयुक्त देयता समूहों वित्तपोषण के माध्यम से की जाती है। संक्षिप्त में संयुक्त देयता समूह वित्तपोषण कृषि एवं अकृषि क्षेत्र में छोटे स्तर की आय सृजक गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए संपाश्विक विकल्प का काम करता है।
इस समझौता ज्ञापन के कार्यान्वयन पर राज्य के हजारों भूमिहीन किसान, बटाईदार किसान, टेनेंट किसान, मौखिक पट्टेदार किसान, छोटे और मझोले किसान, जिनके पास भूमि रिकॉर्ड्स नहीं हैं और अकृषि क्षेत्र के छोटे उद्यमी जिनके पास बैंक ऋण के लिए कोई संपाश्विक नहीं है को लाभ होगा, और वह औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था से आसानी से ऋण प्राप्त कर पाएंगे। इसके अलावा राज्य में प्राथमिकता क्षेत्र के अंतर्गत ऋण प्रवाह में वृद्धि होगी।

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