देहरादून। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज मन की बात में उत्तराखंड
जिक्र किया। राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया
प्रमुख अनिल बलूनी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का उत्तराखंड से
विशेष अनुराग है।
उत्तराखंड के चारों धामों को जोड़ने के लिए ऑल वेदर रोड का निर्माण, ऋषिकेश- कर्णप्रयाग रेल लाइन और बाबा केदार की नगरी अपना पुनर्निर्माण बताता है कि उत्तराखंड का विकास, पर्यटन, तीर्थाटन और आर्थिकी उनकी प्राथमिकता में है।
“हमारे देश में अब मानसून का सीजन भी आ गया है। बादल जब बरसते हैं तो केवल हमारे लिए ही नहीं बरसते, बल्कि बादल आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बरसते हैं। बारिश का पानी जमीन में जाकर इकठ्ठा भी होता है, जमीन के जलस्तर को भी सुधारता है। और इसलिए मैं जल संरक्षण को देश सेवा का ही एक रूप मानता हूँ। आपने भी देखा होगा, हम में से कई लोग इस पुण्य को अपनी ज़िम्मेदारी मानकर लगे रहे हैं।
ऐसे ही एक शख्स हैं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के सच्चिदानंद भारती। भारती जी एक शिक्षक हैं और उन्होंने अपने कार्यों से भी लोगों को बहुत अच्छी शिक्षा दी है। आज उनकी मेहनत से ही पौड़ी गढ़वाल के उफरैंखाल क्षेत्र में पानी का बड़ा संकट समाप्त हो गया है। जहाँ लोग पानी के लिए तरसते थे, वहाँ आज साल-भर जल की आपूर्ति हो रही है।
साथियों, पहाड़ों में जल संरक्षण का एक पारंपरिक तरीक़ा रहा है जिसे चालखाल भी कहा जाता है , यानि पानी जमा करने के लिए बड़ा सा गड्ढा खोदना। इस परंपरा में भारती जी ने कुछ नए तौर तरीकों को भी जोड़ दिया।
उन्होंने लगातार छोटे-बड़े तालाब बनवाये। इससे न सिर्फ उफरैंखाल की पहाड़ी हरी-भरी हुई, बल्कि लोगों की पेयजल की दिक्कत भी दूर हो गई। आप ये जानकर हैरान रह जायेंगे कि भारती जी ऐसी 30 हजार से अधिक जल-तलैया बनवा चुके हैं। 30 हजार ! उनका ये भागीरथ कार्य आज भी जारी है और अनेक लोगों को प्रेरणा दे रहे हैं।
साथियों, इसी तरह यूपी के बाँदा ज़िले में अन्धाव गाँव के लोगों ने भी एक अलग ही तरह का प्रयास किया है। उन्होंने अपने अभियान को बड़ा ही दिलचस्प नाम दिया है खेत का पानी खेत में, गाँव का पानी गाँव में। इस अभियान के तहत गाँव के कई सौ बीघे खेतों में ऊँची-ऊँची मेड़ बनाई गई है।
इससे बारिश का पानी खेत में इकठ्ठा होने लगा, और जमीन में जाने लगा। अब ये सब लोग खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने की भी योजना बना रहे हैं। यानि अब किसानों को पानी, पेड़ और पैसा, तीनों मिलेगा। अपने अच्छे कार्यों से, पहचान तो उनके गाँव की दूर-दूर तक वैसे भी हो रही है। साथियों, इन सभी से प्रेरणा लेते हुए हम अपने आस-पास जिस भी तरह से पानी बचा सकते हैं, हमें बचाना चाहिए। मानसून के इस महत्वपूर्ण समय को हमें गंवाना नहीं है।
पृथ्वी पर ऐसी कोई वनस्पति ही नहीं है जिसमें कोई न कोई औषधीय गुण न हो! हमारे आस-पास ऐसे कितने ही पेड़ पौधे होते हैं जिनमें अद्भुत गुण होते हैं, लेकिन कई बार हमें उनके बारे में पता ही नहीं होता! मुझे नैनीताल से एक साथी, भाई परितोष ने इसी विषय पर एक पत्र भी भेजा है।
उन्होंने लिखा है कि, उन्हें गिलोय और दूसरी कई वनस्पतियों के इतने चमत्कारी मेडिकल गुणों के बारे में कोरोना आने के बाद ही पता चला ! परितोष ने मुझे आग्रह भी किया है कि, मैं मन की बात के सभी श्रोताओं से कहूँ कि आप अपने आसपास की वनस्पतियों के बारे में जानिए, और दूसरों को भी बताइये।