सैन्य अकादमी के फलक पर चमका देवभूमि का ‘दीपक’
अल्मोड़ा के ध्याड़ी गांव निवासी दीपक सिंह ने किया परेड का नेतृत्व, मिला गोल्ड मेडल
- अल्मोड़ा के ही एक और लाल दक्ष पंत ने भी किया राज्य का नाम रोशन
कृति सिंह
देहरादून । उत्तराखंड वीरभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां के शूरवीरों के पराक्रम के किस्से सात समुंदर पार आज भी गूंजते हैं। आजादी से पहले हो या देश आजाद होने के बाद, अपनी मातृभूमि व सरहदों की हिफाजत के लिए देवभूमि के सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं। इनके अदम्य साहस के लिए विक्टोरिया क्रास से लेकर महावीर चक्र, अशोक चक्र समेत वीरता के कई सर्वोच्च पदक मिल चुके हैं।
बात अगर, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में स्थित वार मेमोरियल पर अंकित शहीद 8८९ सैन्य अफसरों के नामों की ही करें तो इसमें भी अधिकांश शहीद वह हैं जिन्होंने उत्तराखंड की माटी में जन्म लिया था। क्योंकि साल में दो बार यानी जून व दिसंबर में आयोजित होने वाली पासिंग आउट परेड में सूबे की हिस्सेदारी सबसे अधिक रहती है। इस बार भी आईएमए से पास आउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से ही है।
यही नहीं भारतीय सेना का हर पाचवां जवान भी इसी वीरभूमि में जन्मा है। आईएमए में इस बार की पासिंग आउट परेड में भी उत्तराखंडियों ने अपना जोश नुमाया किया है। सैन्य प्रशिक्षण के दौरान अकादमी में बेहतर प्रदर्शन के लिए मिलने वाले दो अहम पुरस्कार इस बार देवभूमि के सपूतों ने हासिल किए हैैं।
गरिमामय परेड को लीड (नेतृत्व) करने का गौरव भी वीरभूमि के ही सपूत को मिला है। आर्डर ऑफ मेरिट में पहला स्थान प्राप्त करने वाले अल्मोड़ा के ध्याड़ी गांव के रहने वाले दीपक सिंह को स्वर्ण पदक मिला है। परेड को लीड करने के दौरान वह सभी की आंखों का तारा बना रहा। अकादमी में राज्य का नाम रोशन करने वाला दीपक सैन्य परंपरा का संवाहक है। उनके पिता त्रिलोक सिंह सेना से ही हवलदार पद से रिटायर हुए हैैं। जबकि मां सामान्य गृहणि है।
बचपन से ही दीपक सैन्य परिवेश पला-बढ़ा तो वह बड़ा होकर सेना ही ज्वाइन करना चाहता था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल बंग्लूरू से हुई। लग्न व कड़ी मेहनत के बाद एनडीए की प्रवेश परीक्षा में सफलता हासिल की। अब न केवल उनका सपना पूरा हो गया है बल्कि आईएमए में रहकर उन्होंने अपनी काबिलियत की छाप भी छोड़ दी।
टेक्नीकल ग्रेजुएट कोर्स में आर्डर ऑफ मेरिट में पहला स्थान प्राप्त कर सिल्वर मेडल प्राप्त करने वाले दक्ष कुमार पंत भी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सर्प गांव रहने वाले हैं। उनके पिता हेमंत कुमार पंत सेना में ब्रिगेडियर हैं, जिनकी तैनाती वर्तमान में पुणे में है। दक्ष ने एसआरएम विश्वविद्यालय चेन्नई से बीटेक किया हुआ है।
वह चाहते तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी मेें नौकरी कर सकते थे। पर फौजी वर्दी की ललक ने उनकी जिंदगी का रुख मोड$ दिया। बताते हैं कि बीटेक के बाद प्राइवेट कंपनियों से कई जॉब ऑफर भी हुए। लेकिन सपना तो सेना की वर्दी पहनकर देश सेवा करने का था। सेना ही ऐसा माध्यम है जहां पर करियर को बेहतरीन तरीके से संवारा जा सकता है।
नायक के बेटे को मिला प्रतिष्ठ्ति सोर्ड ऑनर
भारतीय सैन्य अकादमी में प्रतिष्ठित सोर्ड ऑफ आनर इस बार मुकेश कुमार को मिला है। सैन्य परिवार से ताल्लुख रखने वाले मुकेश मूलरूप से राजस्थान के सीकर के रहने वाले हैं। उनके पिता मनोहर लाल फौज से नायक के रैंक से रिटायर हैं। जबकि बड़े भाई मनीष कुमार वायुसेना में तैनात हैं। छोटा भाई महेश कुमार भी सेना में कैप्टन। अब मुकेश भी फौज में अफसर बन गया है। सोर्ड ऑफ आनर के साथ आर्डर ऑफ मेरिट में दूसरा स्थान प्राप्त करने पर उन्हें सिल्वर मेडल भी मिला है। कहते हैं कि सोर्ड ऑनर न सिर्फ सफलता का अवार्ड है बल्कि इसके बाद जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। वह सेना में ऊंचे आेहदे तक पहुंचना चाहते हैं।
किसान के बेटे ने हासिल किया मुकाम
पंजाब निवासी लवनीत सिंह को कांस्य (ब्रांज) पदक मिला है। वह पंजाब के एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता रूपेन्द्र सिंह किसान हैं और मां परवीण कौर गृहणि। लवनीत बताते हैं कि सेना ज्वाइन करने का उनका सपना बचपन से ही था। परिवार ने भी उनका पूरा साथ दिया। खेती-किसानी कर पिता ने उन्हें न सिर्फ पढ़ाया बल्कि सफल रहने के लिए हमेशा प्रेरित भी किया। अब अपनी मेहनत के बूते उन्होंने यह मुकाम हासिल कर लिया है।
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