अबकी बार प्रो-एक्टिव सरकार  

  • भाजपा के संकटमोचक बने और आलाकमान का दिल जीता
  • पूर्वोत्तर राज्यों को एकजुट करने में रही है अहम भूमिका
अनिरूद्ध यादव
गुवाहाटी। भाजपा नेता और पूर्वोत्तर प्रजातांत्रिक गठबंधन (नेडा) के संयोजक तथा जालुकबारी विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार परचम फहरा चुके डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने असम के 15वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। कहते हैं कि यदि आपका उद्देश्य निश्चित और दृढ़ हो और उसे पाने के लिए निरंतर प्रयास जारी रहे तो एक न एक दिन सफलता जरूर मिलती है, इसका साक्षात उदाहरण हैं असम के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा
हिमंत ने पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हितेश्वर सैकिया से राजनीतिक ककहरा सीखा तो तरुण गोगोई ने अपने मंत्रिमंडल में मौका देकर उन्हें नई तरूणाई दी। ऐसे में एक समय ऐसा आया, जब लगा कि डॉ. शर्मा तरुण गोगोई की जगह मुख्यमंत्री बन जाएंगे, परंतु अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के नेता राहुल गांधी उनकी राजनीतिक काबिलियत को परख नहीं सके और एक तरह से उन्हें श्री गांधी से एक तरह से दुत्कार ही मिला।
परिणामतः कांग्रेस में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा होता न देखकर वे भाजपा में शामिल हो गए और 2016 के विधानसभा चुनाव को तरुण गोगोई बनाम हिमंत विश्वशर्मा बना दिया। इस चुनाव में भाजपा को बड़ी जीत दिलवा कर पूर्वोत्तर में भगवा फहराने में कामयाब रहे। इनकी इसी शक्ति को पहचान कर ही भाजपा ने इन्हें नार्थइस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का संयोजक बनाया था।
ऐसे में अपने धुन के पक्के हिमंत ने त्रिपुरा में माकपा के मजबूत किले को उखाड़ फेंकने में अहम भूमिका निभाई तो मणिपुर में बहुमत से दूर रहने के बावजूद वहां भी भाजपा सरकार बनवाने में कामयाब रहे।
अरुणाचल को राजनीतिक अस्थिरता से बाहर निकाल कर वहां स्थायी भाजपा सरकार बनवाने में भी उनकी अहम भूमिका रही। इसके अलावा नगालैंड, मिजोरम और मेघालय में गैर कांग्रेसी सरकार बनवाने में भी हिमंत की महती भूमिका रही। ऐसे में कहा जा सकता है कि हिमंत को असम के मुख्यमंत्री की कुर्सी आसानी से नहीं मिली है। यदि मिली है तो वे इसके हकदार हैं और भाजपा ने उनकी शक्ति को पहचानते हुए राज्य का मुख्यमंत्री बनाया है। राज्य में लगातार दूसरी बार भाजपा के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के पीछे डॉ. हिमंत विश्वशर्मा की जबरदस्त मेहनत रही।
कहा जाता है कि वो लोकप्रियता के मामले में सर्बानंद सोनोवाल से किसी भी मायने में कम नहीं हैं और इस चुनाव में उनका जोरदार प्रचार अभियान, तेज व आक्रामक रणनीति बीजेपी की जीत की अहम वजह रही जिसके चलते पार्टी ने उन्हें सर्बानंद की जगह सीएम पद पर आसीन किया है।
यहां बताते चलें कि शर्मा ने 1980 के दशक के शुरुआत में राजनीति में उस समय कदम रखा जब असम में विदेशी विरोधी आंदोलन चल रहा था। उस समय उन्होंने आसू नेताओं प्रफुल्ल कुमार महंत और भृगु कुमार फूकन के ‘दूतवाहक’ का काम किया लेकिन वर्ष 2001 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जलुकबाड़ी से चुनौती भी दी।
आसू में अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दे चुके शर्मा पर कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया की नजर पड़ी और वह उन्हें अपने साथ ले आए, तब शर्मा गुवाहाटी विश्वविद्यालय में विधि की पढ़ाई कर रहे थे। पार्टी नियमों से इतर नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री तरुण गोगोई भी शर्मा की राजनीतिक कुशलता से प्रभावित हुए और युवा होने के बावजूद उन्हें कृषि, योजना एवं विकास राज्य मंत्री बना दिया। बाद में उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी भी दी। हिमंत विश्वशर्मा इसके बाद से सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए और गोगोई की आंखों का तारा बन गए।
गोगोई जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तब शर्मा को उन्होंने कैबिनेट मंत्री बनाया। वर्ष 2011 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी लेकिन शर्मा की रणनीति और प्रबंधन से पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता में आई और गोगोई ने इसका इनाम उन्हें कई विभाग देकर दिया। हालांकि, सफलता राजनीतिक आशंका भी लेकर आती है और उन्हें गोगोई का उत्तराधिकारी माना जाने लगा। असम कांग्रेस और हिमंत के बीच दरार बढ़ने लगी। कई बार सरमा ने दिल्ली में डेरा डाला, कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की। इसी मुलाकात के बारे में हिमंत ने एक साक्षात्कार में कहा कि गांधी मुद्दे को सुलझाने से अधिक रुचि पालतू कुत्ते को बिस्कुट खिलाने में ले रहे थे।
हिमंत विश्वशर्मा ने 2015 में कांग्रेस से मतभेद के बाद हाथ का साथ छोड़ कमल का दामन थामा था। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के साथ राजनीतिक मतभेदों के बाद कांग्रेस पार्टी के सभी विभागों से इस्तीफा दे दिया था। बाद में वो भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। साल 2016 के विधानसभा चुनाव के ऐन पहले विश्वशर्मा को मुख्यमंत्री पद के सशक्त दावेदार के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन तब जीत का परचम फहराने के बाद पार्टी ने सोनोवाल को राज्य का सीएम बनाया था।
उल्लेखनीय है कि हिमंत विश्वशर्मा का जन्म 1 फरवरी 1969 हुआ था। 2001 से 2015 तक वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के टिकट से असम के जालुकबारी निर्वाचन क्षेत्र से विधायक रहे। मई 2016 तक भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में विधायक के रूप में सेवा की। डॉ. शर्मा 2016 की असम विधानसभा की निर्वाचन जीत के बाद राज्य के वित्त, शिक्षा, स्वास्थ्य और लोक निर्माण विभाग के मंत्री बने। हिमंत विश्वशर्मा ने 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले कांग्रेस से किनारा कर लिया था, वह प्रभाव और प्रमुखता में मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल से अधिक थे। 2016 के चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की जीत के एक बड़े कारक के रूप में प्रसिद्धि के साथ-साथ सीएए आंदोलन और कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने में भी हिमंत विश्वशर्मा का योगदान सबसे ज्यादा रहा।
वे पूर्वोत्तर में भाजपा की उपस्थिति को और अधिक मजबूत बनाने के लिए पार्टी के प्रयास का नेतृत्व कर रहे हैं। वित्त, स्वास्थ्य, शिक्षा और पीडब्लयूडी के अलावा लगभग सभी महत्वपूर्ण विभागों को संभालने के अलावा डॉ. हिमंत विश्वशर्मा पूर्वोत्तर डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक के रूप में भी काम करते हैं, जो पूर्वोत्तर में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए भाजपा के सफल विशेष उद्देश्य के वाहक साबित हुए हैं। ऐसे में उन्हें जो मिला है, उनकी मेहनत, सूझबूझ और राजनीतिक दूरदर्शिता का परिणाम है।

शपथ लेते ही परेश बरुवा को शांति वार्ता के लिए आमंत्रित किया

मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने राज्य में शांति बहाली के लिए विद्रोही गुटों, खासकर अल्फा (आई) के प्रमुख परेश बरुवा से हथियार डालकर मुख्य धारा का हिस्सा बनने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं परेश बरुवा से अनुरोध करता हूं कि बातचीत की मेज पर आएं और मुद्दों को सुलझाएं। अपहरण और हत्याओं से समस्याएं जटिल बनती हैं, सुलझती नहीं हैं। मुझे उम्मीद है कि हम अगले पांच वर्षों में भूमिगत विद्रोहियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए तैयार कर लेंगे।
विवादास्पद राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार असम के सीमावर्ती जिलों में 20 प्रतिशत नामों और अन्य इलाकों में 10 प्रतिशत नामों का पुनः सत्यापन चाहती है।
उन्होंने कहा कि अगर बेहद नगण्य गलतियां पाई गईं तब हम मौजूदा एनआरसी के साथ आगे की कार्यवाही कर सकते हैं। लेकिन, अगर व्यापक विसंगतियां हैं तो मुझे लगता है कि अदालत संज्ञान लेगी और नए दृष्टिकोण के साथ आगे का काम करेगी। लव जिहाद के खिलाफ कानून लाने के भाजपा के आश्वासन के बारे में पूछे जाने पर डॉ. शर्मा ने कहा कि हर वादा पूरा करने के लिए किया गया है। उन्हें पूरा करने के लिए जो भी संभव होगा हम करेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा तथा उनके घटक दलों की ओर से चुनाव पूर्व किए गए वादों पर क्रियान्वयन के लिए कैबिनेट की पहली बैठक में रूपरेखा तैयार कर दी गई है। चुनाव प्रचार के दौरान हमने माइक्रो फाइनेंस का ऋण माफ करने का वादा किया था। अब हम इस पर विचार-विमर्श करेंगे।
चुनाव के दौरान सालाना एक लाख बेरोजगारों को रोजगार देने तथा अरुणोदय योजना के लाभार्थियों की संख्या बढ़ाने के साथ ही उनका मासिक भत्ता 3000 तक करने की बात पर भी हम कैबिनेट में चर्चा करेंगे। छह जनगोष्ठियों को जनजाति का दर्जा देने के विषय पर भी विचार-विमर्श के जरिए हम समाधान निकाल लेंगे। मूल निवासियों (खिलंजिया) की संज्ञा निरूपण के मामले में भी हम विचार-विमर्श करते हुए आगे बढ़ेंगे। राज्य में घटित बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि मामलों से जुड़े अपराधियों को सजा देना सरकार की पहली प्राथमिकता होगी। मुख्यमंत्री हिमंत ने कहा कि राज्य की जनता को अबकी बार प्रो-एक्टिव सरकार मिलेगी। रात 12 बजे भी लोग सरकार के पास आ सकेंगे और सुबह पांच बजे या अपराह्न पांच बजे भी। राजभंडार में अब भी 7000 करोड़ रुपए जमा हंै। इस धन राशि से हम विकास का कार्य करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि देशभर में असम की वित्तीय स्थिति सबसे शीर्ष पर है।

22 की उम्र में ही रिनिकी सेे कहा था एक दिन बनूंगा सीएम  

युवक 22 साल का था और युवती महज 17 साल की। जब युवती ने कहा कि वह उसके भविष्य के बारे में अपनी मां को क्या बताएगी तो युवक ने जवाब दिया था-अपनी मां को बता दो, मैं एक दिन मुख्यमंत्री बनूंगा। ये कहानी एकदम फिल्मी नहीं, बल्कि हकीकत है। असम के नए मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा ने सालों पहले रिनिकी भुइयां से यह बात कही थी जो बाद में उनकी पत्नी बनीं। यह उस जमाने की बात है जब शर्मा स्वयं यहां कॉटन कॉलेज के छात्र थे।
शर्मा की पत्नी रिनिकी भुइयां बताती हैं कि उनके पति कॉलेज के समय से ही मुख्यमंत्री बनने को लेकर आश्वस्त थे। उन्होंने बातचीत में बताया कि हिमंत छात्र जीवन से ही अपने लक्ष्य को लेकर एकनिष्ठ थे और जानते थे कि उनको भविष्य में क्या बनना है। उल्लेखनीय है कि शर्मा ने बीते दिनों असम के 15वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। रिनिकी ने बताया कि वह 22 साल के और मैं 17 साल की थी तब हमारी पहली मुलाकात हुई थी। मैंने उनसे पूछा था कि मैं अपनी मां को उनके भविष्य के बारे में क्या बताऊंगी? तब उन्होंने जवाब दिया था कि उनसे कह दो कि मैं एक दिन असम का मुख्यमंत्री बनूंगा। उन्होंने बताया कि मैं भौंचक्क रह गई लेकिन बाद में महसूस हुआ कि जिस व्यक्ति से वह शादी करेंगी उसका राज्य को लेकर एक निश्चित लक्ष्य और सपना है, चट्टान की तरह प्रतिबद्धता है।  भुइयां ने कहा कि जब हमारी शादी हुई तब वह विधायक थे, उसके बाद वह मंत्री बने और फिर राजनीति में बढ़ते चले गए, लेकिन आज मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए देखकर मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।
उन्होंने कहा कि यहां तक कि कल रात हमारी बात हुई तो उन्होंने नामित मुख्यमंत्री का उल्लेख किया और जब मैंने पूछा ‘कोन’ (कौन) तब उन्होंने जवाब दिया ‘मोई’ (मैं)। मेरे लिए वह हमेशा हिमंत रहे हैं और मैं उन्हें मुख्यमंत्री के साथ नहीं जोड़ सकती। इस शब्द से परिचित होने में कुछ समय लगेगा। शर्मा की पत्नी मीडिया उद्यमी हैं और दंपति के दो बच्चे हैं- 19 साल के नंदिल विश्वशर्मा और 17 साल की सुकन्या विश्वशर्मा। रिनिकी ने यह भी कहा कि आज उनके पति का सपना साकार हो गया। मैं आशान्वित हूं कि वे असम को आगे ले जाने में जरूर सफल होंगे।

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