शव महोत्सव!

तीर-तुक्का

  • कोरोना काल चल रहा है। अवतार की तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों के तड़पने और मरने का सिलसिला थम नहीं रहा। सरकारी आंकड़ा ही मान लें तो लाखों लोग स्वर्ग सिधार चुके हैं। नासमझ लोग, इसके लिए चुने हुए अवतार की तरफ उंगली उठा रहे हैं। यह सरासर नाइंसाफी है….

वीरेंद्र सेंगर

यह नया इंडिया है। यहां पुराने पिछड़े भारत की परिभाषाएं और मान्यताएं नहीं चलती। कोई देश माने या नहीं, अपन तो विश्व गुरु बन ही गए हैं। सेल्फ सर्टिफाइड! कोई पंगा नहीं। सेल्फ कॉन्फिडेंस और सेल्फ सर्टिफाइड का जमाना है। दरअसल, पूरी दुनिया जलती है कि इंडिया कैसे देखते-देखते विश्व गुरु बन बैठा? जबकि दुनिया के सबसे ज्यादा अंधविश्वासी भक्त इस महादेश में रहते हैं।

जो मानते हैं कि यहां हजारों या लाखों साल पहले पहली ट्रांसप्लांट सर्जरी हुई थी। ब्लड ग्रुप मिलाने का झंझट भी नहीं था। भगवान शंकर जी के बेटे गणेश जी का सिर कटा तो झट से हाथी का सिर काटकर फिट कर दिया। वही गणेश जी! जिन्हें हम भी गणेश मानते हैं और पूजते हैं। जनाब! अवतारों और भगवानों के मामले में सवाल नहीं किए जाते। वरना पाप लगता है।आज के मान्यता प्राप्त अवतार जी के बारे में भूल से भी कोई सवाल किया, तो देशद्रोही करार हो सकते हो।

ईडी, इनकम टैक्स, सीबीआई कलयुगी यमराज बन कर सताने आ जाएंगे। बोलेंगे, सुधर जाओ। वर्ना हमारे साथ चलो! और रौरव नरक का लुत्फ लो।
क्या नरक और रौरव नरक में भी लुत्फ मिलता है? हमारे पहले के और आज के अवतार पुरुषों की मान्यता तो यही है। जीवन का जो भी मंजर आए, उसे जश्न की तरह मनाएं। कुछ इसी तरह का संदेश भगवान रजनीश जी दे गए हैं। परम विद्वान रजनीश अनोखे दार्शनिक थे। उनके करोड़ों भक्त हैं। वह कह गए हैं, जीवन एक उत्सव है, तो मौत एक महा उत्सव! भगवान रजनीश, सेल्फ सर्टिफाइड भगवान थे। किसी को कोई शक? तो हम अपने आज के अवतार पर शक क्यों करते करेंगे या करें?

भगवान रजनीश के अनुयाई भी करोड़ों में जरूर रहे होंगे। वे अपने भगवान से सवाल भी करते थे और बहस भी। पुणे के अपने सभागार में वे अपने भक्तों की आशंकाओं का जवाब भी देते थे। और कहते थे मेरी कोई बात तार्किक ना लगे या गले के नीचे ना उतरे, तो ना मानो। आलोचना करो। क्योंकि मैं अंतिम सत्य नहीं हूं। वे भी सफेद दाढ़ी वाले थे। बगैर दाढ़ी के कोई भगवान का अवतार भव्य नहीं लगता।

शायद इसीलिए साहिब ने भी दाढ़ी बढ़ा ली। कोई कुछ कहे, हमें तो उनकी धवल दाढ़ी बहुत दिव्य लगती है। अगर वे चुप रहें, तो उनमें विराट के साक्षात दर्शन हो जाते हैं। टकटकी लगा कर देखो, तो उत्सव से मन भर जाता है। फिर वे चुने हुए अवतार हैं, जिन्हें 135 करोड़ के देश ने वोट देकर बैठाया है। जबकि बापूजी चुने गये राष्ट्र बापू नहीं थे। बस, भक्तों और चमचों ने यह उपाधि दे दी थी। शायद इसीलिए नागपुर के नारंगी तक्षक इस सवाल पर आज भी फुफकार मारते हैं। सवाल करते हैं कि आखिर महात्मा गांधी राष्ट्र के पिता कैसे हो सकते हैं! जेर ए बहस जारी है।

भगवान रजनीश की भी तीखी आलोचना होती है। क्योंकि वह चुने नहीं गए थे। वे संवैधानिक पद पर नहीं थे। उनकी बात मानने या ना मानने की पूरी छूट है। कोई आपको देशद्रोही करार नहीं कर सकता। लेकिन चुने हुए अवतार पर सवाल उठाया तो खबरदार! करोड़ों भक्त आपको ट्रोल कर सकते हैं। आपका जीना हराम कर सकते हैं। क्योंकि आप काम ही नरक में जाने का कर रहे हैं।

कोरोना काल चल रहा है। अवतार की तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों के तड़पने और मरने का सिलसिला थम नहीं रहा। सरकारी आंकड़ा ही मान लें तो लाखों लोग स्वर्ग सिधार चुके हैं। लाखों इस रास्ते पर जाने की तैयारी में है। चारों तरफ चित्कारें हैं। अफरा-तफरी है। नासमझ लोग, इसके लिए चुने हुए अवतार की तरफ उंगली उठा रहे हैं। यह सरासर नाइंसाफी है। मेरा मन तो उनकी तरफ भी हुई उंगलियों को तोड़ देने का हो रहा है। मैं गुस्से में हूं। यही कह रहा हूं कि हे!

एहसान फरामोशों कुछ तो शर्म करो।आज यदि सत्ता में दलाल पार्टी के लोग होते तो कम से कम 10 करोड़ देशवासी नर्क सिधार गए होते। क्योंकि कांग्रेस काल में जो मरते हैं, महामारी से, वे नरक में ही जाते हैं। विश्वास ना हो तो चीफ यमराज का अकाउंट चेक कर लो। इस राम राज में जो मरते हैं, उनके लिए सौ फीसदी आरक्षण स्वर्ग में है। विश्वास ना हो तो वहां जाकर चेक कर लो। आखिर में झूठ क्यों बोलूंगा? मैं चाहे सच बोलूं या झूठ! मेरे हिस्से में तो आनी गालियां ही है। वो कल भी मिल रही थीं और आज भी।

दरअसल, इसमें गाली महोत्सव मनाने वाले भक्तों-अंध भक्तों की गलती नहीं है। मेरे कर्म ही ऐसे हैं। आखिर अवतार को शंका के घेरे में क्यों खड़ा करता हूं? विश्व गुरु से सवाल करना तो पाप है। वही पाप जैसे मेरे जैसे तमाम कर रहे हैं। यह सरासर देशद्रोह है। कोरोना से मरे या बेरोजगारी से, इसमें अवतार का क्या दोष है? सबको अपने पूर्व कर्मों का फल मिलता है। मौत का समय भी ‘ऊपर’ वाला तय करता है। तो टीका उत्सव की तरह मौत उत्सव भी मनाएं!

Leave a Reply