यूपी के गांवों में कहर बनी महामारी

  • गंगा में सैकड़ों मानव शवों का बहना अमानवीय और त्रासद
  • पंचायत चुनाव में सैकड़ों शिक्षकों की मौत पर कठघरे में सरकार

 

अनिल शुक्ल

लखनऊ।पिछले कई दिनों से उप्र के बलिया और गाजीपुर सहित बक्सर (बिहार) की गंगा में सैकड़ों मानव शवों का बहना और और दूसरी तरफ इलाहबाद हाई कोर्ट का फैसला जिसमें कोविड के गांवों में बेहिसाब फैलने के लिए चुनाव आयोग, सरकार और उच्च अदालतों को जिम्मेदार ठहराया गया है, कोई इत्तेफाकन एक साथ होने वाली घटनाएं नहीं हैं। दरअसल, यूपी के गांवों में कोरोना का जैसा भयंकर विस्फोट हो रहा है, ये दोनों वाकये उसकी बानगी भर ही पेश करते हैं। इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि जब से शवों को देखा गया है, दोनों राज्यों के प्रशासनिक अधिकारी इनके स्त्रोत के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।

एक एंटीसिपेटरी बेल की मंजूरी देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी इंसान का फिलहाल जेल से बाहर रहकर सुरक्षित बने रहना ज्यादा जरूरी है, बनिस्पत उसके जेल में जाकर कोविड का शिकार हो जाने के और यहीं न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आज शहरों में ही कोरोना के प्रसार पर नियंत्रण करना प्रदेश सरकार के लिए बड़ा मुश्किल टास्क बन चुका है, गांवों में जाकर उसकी जांच और इलाज की तो क्या बिसात!?
सवाल यह है कि पंचायत चुनावों के दौरान जिस तरह से उप्र के गांवों में कोरोना का प्रसार हुआ है, प्रदेश सरकार, चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय ने क्यों नहीं इसे आंका? क्यों वे ऐसा मानकर चलते रहे कि कोविड गांवों में जाने से लजायेगा! उप्र में हाल ही में हुए पंचायत चुनावों में 9 करोड़ मतदाताओं और 12 लाख सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मचारियों को जुटना पड़ा। यदि सिर्फ सरकारी आंकड़ों पर विश्वास किया जाय तो इसके चलते प्रदेश में 8 लाख नए कोरोना केस बढ़े, हालांकि इन आंकड़ों पर किसी को भरोसा नहीं। सरकारी शिक्षक संघ ने पंचायत चुनावों में ड्यूटी देने के चलते अपने 800 शिक्षक सदस्यों के कोविड से हताहत हो जाने का आरोप लगाया है। लोकतंत्र के नाम ओर यह एक क्रूर एक्सरसाइज थी जिसका खामियाजा प्रदेश की जनता को बुरी तरह भुगतना पड़ा।
उप्र के पंचायत चुनावों के तीसरे फेज के मौके पर, जबकि इन चुनावों के कारण कोरोना संक्रमण की भयानक आंधी चलनी शुरू हो गयी थी, तब योगी सरकार ने चुनावों का ठीकरा इलाहाबाद उच्च न्यायलय के सिर पर फोड़ा। ‘न्यायलय’ के 4 फरवरी के निर्णय का उल्लेख करते हुए राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि उनकी सरकार 2021 में पंचायत चुनाव नहीं कराना चाहती थी लेकिन माननीय उच्च न्यायलय के निर्णय की अवमानना न करने के चलते उसे चुनाव का आरक्षण और आवंटन की प्रक्रिया को 15 मार्च तक करना पड़ा।

यद्यपि ‘अदालत’ का उक्त फैसला पंचायत में कोटा आरक्षण को लेकर था और सरकार ने ‘न्यायलय’ को कहीं से कोविड की दूसरी लहर की बाबत वैज्ञानिकों के चेतावनी से अवगत करना जरूरी समझा। इतना ही नहीं, न तो चुनाव आयोग ने मतदान से पहले कोविड प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करवाने की कोई कोशिश की और न राज्य सरकार ने ही इस मामले में उसकी किसी प्रकार की मदद ही की।

धार्मिक अंधविश्वासों की भी इसके प्रसार में कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही है। दुर्भाग्य से इन अंधविश्वासों को ‘प्रमोट’ करने में राज्य सरकारें और केंद्र भी काम अपराधी नहीं साबित हुईं। होली और कुम्भ के जश्न से दुनिया वाकिफ हो ही चुकी है। इन पक्तियों के लिखे जाने के वक्त अहमदाबाद की सैकड़ों महिलाएं कोरोना से मुक्ति की खातिर जलाभिषेक के लिए प्रोटोकॉल को ठेंगा दिखाती निकलीं। शाहजहांपुर के ‘कस्बा पठान’ के बारे में अखबारों में छपी खबरें बताती हैं कि अंधविश्वासों के चलते गांवों में किस तरह कोरोना ने अपनी दस्तक दी। 14 अप्रैल से शुरू हुआ मौतों का सिलसिला इस गांव में हफ्ते भर में ही 25 लोगों को निगल गया।

अफसोसनाक बात यह है कि पहली मौत पर मरने वाले को इस्लामिक परंपरा के अनुसार दफन करने से पहले गुस्ल (स्नान) दिया गया और इस गुस्ल के चलते यह बीमारी पूरे परिजनों को हुई। जांच के लिए पहुंची नजदीक की प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की टीम को इन रोगियों ने सहयोग नहीं दिया। कारण था रोजे पर रहना। कुछ ही दिनों में कोरोना ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया। मई के दूसरे सप्ताह में बदायूं की आलिया कादरिया दरगाह के प्रमुख सलीमुल कादरी की शवयात्रा में हजारों लोग कोविड प्रोटोकॉल को धता बताते हुए शामिल हुए।

गंगा में शवों का बहना अन्धविश्वास और परंपरा के प्रतीक स्वरूप भी हो सकता है। भय और आक्रान्ति इसकी दूसरी वजह हो सकते हैं। स्वास्थ्य तंत्र द्वारा वित्तीय रूप से निचोड़ लिए गये गए मृतक के परिजनों की आर्थिक संकटग्रस्तता इसका तीसरा और शायद वास्तविक कारण हो तो क्या आश्चर्य होगा? वजह जो भी हो, नदी में इस प्रकार संक्रमित शवों का बहाव आने वाले दिनों में भीषण विस्फोट की वजह बनेगा इससे कोई कैसे इंकार कर सकता है?

 

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