कोविड-19ः वायरस को कमजोर करता है शरीर का पसीना

  • मजदूर और किसानों को कोरोना क्यों नहीं होता
  • अमेरिका में हुई रिसर्च में हुआ खुलासा

नयी दिल्ली : कोविड-19 के 500 से ज्यादा स्ट्रेन का पता चला है और इनमें से कुछ तो बेहद जानलेवा है। यह इतनी खतरनाक है कि जांच रिपोर्ट आने से पहले संक्रमित व्यक्ति की मौत हो जाती है। एक बात सब ने ध्यान दी है कि कोरोना वायरस सबसे ज्यादा उन लोगों को शिकार बना रहा है जो एयर कंडीशनर में रहते हैं और फास्ट फूड खाते हैं। उच्च मध्यमवर्गीय और मिडिल क्लास में वायरस का शिकार हुआ है लेकिन गरीब मजदूर और किसान वायरस से मरते हुए नहीं दिखाई दिए।

हर कोई यह सवाल करता है कि मजदूरों को कोरोना नहीं होता क्या। अमेरिका में हुई एक रिसर्च में इसका खुलासा हुआ है।अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकतार्ओं ने कोरोना पर की अपनी एक रिसर्च में बताया है कि जो लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं या बेहद कम करते हैं, उनमें कोरोना का संक्रमण घातक साबित हो सकता है। ऐसे लोगों को संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। साथ ही ऐसे मरीजों में मौतों का आंकड़ा भी ज्यादा है। वहीं, शारीरिक श्रम करने वाले लोग अगर संक्रमित हो भी गए तो कोरोना उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। कई बार तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि वह संक्रमित हुए थे।
ब्रिटिश जर्नल आफ सपोर्ट मेडिसिन में प्रकाशित इस रिसर्च में बताया गया है कि धूम्रपान, मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों में भी कोरोना संक्रमण गंभीर होने का खतरा है लेकिन शारीरिक रूप से सक्रिय ना रहने वाले लोगों में संक्रमण का खतरा उक्त बीमारियों से पीड़ित मरीजों से भी ज्यादा है।

गांवों में रहने वोलों के लिये संक्रमण उतना घातक नहीं

रिसर्च से ये बात भी साफ हो गई है कि गांवों में क्यों कोरोना संक्रमण उतना घातक नहीं है, जितना वह शहरों में है। दरअसल गांव के लोगों की जीवनशैली शारीरिक श्रम वाली रही है। जिसके चलते कोरोना ग्रामीण इलाकों में ज्यादा नुकसान नहीं कर पाया। शायद शरीर से निकलने वाला पसीना कोरोनावायरस के संक्रमण को प्रभावी होने से रोकता है। कोरोनावायरस का शिकार वही हो रहे हैं जिनके शरीर से पसीना नहीं निकलता।माना जा रहा है कि यही वजह है कि अमेरिका समेत विकसित देशों में कोरोना का संक्रमण बेकाबू होने की प्रमुख वजह यही हो सकती है क्योंकि जीवन शैली और तकनीक के चलते यूरोपीय, अमेरिका आदि देशों में लोग ज्यादा शारीरिक श्रम नहीं करते जिसके कारण वहां संक्रमण बेकाबू भी हुआ।

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