- ज्वलंत मुद्दों से दूरी बना कर आरोप-प्रत्यारोप में जुटीं पार्टियां
- ममता बनाम मोदी हुए चुनाव में सोनार बांग्ला की कल्पना भी बेमानी
-आफरीन हुसैन/सार्थक दासगुप्ता
कोलकाताः पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार युद्धस्तर पर है। इसदौरान आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। केवल इतना ही नहीं, चुनाव प्रचार के दौरान हिंसा भी हो रही है। हर पार्टी अपने आप को पाक-साफ दिखाने में जुटी हुई है। सुबह से लेकर देर शाम तक विभिन्न तरह के नारों की आवाज और रंग-बिरंगे इश्तहारों से दीवारें अटी पड़ी हैं। पर यदि कहीं खामोशी है तो केवल मुद्दों की। मुद्दों को लेकर न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह बात कर रहे हैं और न ही बंगाल की शेरनी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। कांग्रेस और वामपंथी पार्टी के नेता चुनाव संपन्न हुए बिना ही सीटों के गणित में पश्चिम बंगाल के लोगों को उलझाए हुए हैं।दरअसल, सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पश्चिम बंगाल में विकास कितना हुआ है। इस विकास में केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका किस तरह की है। दुर्भाग्य यह है कि राजनीतिक विश्लेषक भी अलग-अलग खेमों में बंटे हुए हैं। कोई भाजपा तो कोई तृणमूल कांग्रेस की वकालत करते हुए नजर आ रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि राज नेताओं के चुनावी शोर में सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और पानी जैसी गंभीर समस्याएं गुम हो गयी हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य पश्चिम बंगाल के लिए और क्या हो सकता है। आज भी पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि ही है। किसानों के हित में न ही केंद्र की वहां योजनाएं पहुंची हैं और न ही राज्य सरकार ने किसानों की तरक्की के लिए किसी तरह की कोई प्लानिंग की है। उद्योग व्यवस्था तो वामपंथियों के शासन के समय से ही चैपट है। आज भी उद्योग धंधे बंद ही पड़े हुए हैं।जूट उद्योग या फिर यूं कहें कि जहां जूट के कारखाने हुआ करते थे वहां आज गगन चुंबी इमारतें खड़ी हैं। ठिलिया लगाने वाले आज भी कर्ज से दबे हैं। पर न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और न ही भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह इन मुद्दों पर कोई टिप्पणी करना उचित समझ रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इन ज्वलंत मुद्दों से दूरी बना चुकी हैं। पक्ष हो या फिर विपक्ष कोई पार्टी या उसके नेता पश्चिम बंगाल के विकास की बात नहीं कर रहे हैं। बस, चहुंओर अमित शाह, ममता बनर्जी पर हमला करते हुए एक ही रट लगाए बैठे हैं कि दीदी तानाशाही और तुष्टीकरण की नीति अपनाती रही हैं जिसके कारण बंगाल की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है। अमित शाह कहते हैं कि दीदी ने बंगाल के लोगों को बांट दिया है। वहीं, ममता बनर्जी भी भाजपा पर हमला करती हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह करती हैं कि वे अपने गृह मंत्री पर लगाम लगाएं। ममता प्रधानमंत्री को भी जवाब देने में कोताही नहीं बरत रही हैं।प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों ममता बनर्जी को सलाह दी है कि दीदी को किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ना चाहिए। ममता बनर्जी इसका भी करारा जवाब प्रधानमंत्री को देती हैं और कहती हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री के सलाह की जरूरत नहीं है। ममता बनर्जी यह भी कह रही हैं कि तमिलनाडु में अमित शाह के इशारे पर छापे पड़ रहे हैं। बस, केवल आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। पश्चिम बंगाल को किस तरह से बुलंदियां पर लाया जाएगा। इस पर बहस करने को कोई तैयार नहीं है। ऐसे में विकास की संभावना कहीं दिख नहीं रही है। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने अपने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिए हैं लेकिन घोषणा पत्र किस तरह से पश्चिम बंगाल में लागू किया जाएगा, इस पर कोई भी पार्टी चर्चा करने को तैयार नहीं है।पश्चिम बंगाल का चुनाव पार्टी विशेष का नहीं होकर ममता बनाम मोदी हो गया है। ऐसे में सोनार बांग्ला की कल्पना करना बेमानी होगी। अब सारा दारोमदार पश्चिम बंगाल की जनता पर है। हां, यह स्वीकार करना होगा कि पश्चिम बंगाल की जनता काफी जागरूक है और काफी सोच समझ कर अपने मताधिकार का प्रयोग करती है। इसलिए उम्मीद जताई जानी चाहिए कि इस बार भी बंगाल की जनता प्रदेश हित में, मतलब बंगाल की तरक्की को ध्यान में रखकर वोटिंग करेगी। पार्टियों द्वारा दिखाए जा रहे सब्जबाग में पश्चिम बंगाल की जनता नहीं भटकेगी और अपने विवेक से फैसला लेगी जो पश्चिम बंगाल के हित में होगा।