- बजट सत्र के दौरान 23 मार्च की घटना बिहार की छवि धूमिल करने वाली रही
- विधानमंडल से राजधानी पटना के राजमार्ग तक जो हुआ, उससे सही नहीं कहा जा सकता
कृष्ण किसलय
पटना :बिहार के लोकतंत्र, घोषित सुशासन, संसदीय चरित्र और उसकी परंपरा को धूमिल करने वाला वह काला दिन… उस दिन सदन से सड़क यानी विधानमंडल से राजधानी पटना के राजमार्ग तक जो हुआ, उससे यह सवाल और संशय खड़ा हो गया कि क्या बिहार में फिर जंगलराज लौट आया? चाहे जितने भी तर्क गढ़े जाएं, लेकिन सच यही है कि जो हुआ वह एकदम नहीं होना चाहिए था। एक तरफ पटना की व्यस्त सड़क पर राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं का बेखौफ नंगा नाच हुआ तो दूसरी तरफ विधानसभा में विधायकों पर पुलिसिया कहर बरपाई हुई। दोनों तरफ कोई सही नहीं। बजट सत्र के दौरान 23 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष को उनके कक्ष के बाहर धरना देकर विपक्षी विधायकों ने कोई पांच घंटे तक बंधक बनाने जैसी स्थिति में रखा। विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष को लंबे समय तक घेरकर विपक्ष ने मर्यादा तोड़ी। जब सदन के भीतर अनियंत्रित हंगामा हुआ तो विधानसभा के मार्शलों के बूते की बात नहीं रह जाने की वजह से हालात पर काबू पाने के लिए सदन परिसर में बाहर से पुलिस बुलानी पड़ी, तब विधानसभा परिसर में पुलिस के बंधे रहने वाले हाथ खुल गए। जैसे किसी कूड़े की तरह विपक्ष के विधायकों को विधानसभा हाल से बाहर लाया गया। इस तरह संसदीय परंपरा कठघरे में खड़ी कर दी गई।