नार्थ बंगाल पर फोकस

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021

आफरीन हुसैन

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों की सरगर्मी काफी तेज है। हर राजनीतिक पार्टी अपने-अपने पूर्वनियोजित रणनीति के तहत प्रचार अभियान में जुट गयी है। पश्चिम बंगाल में मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच में है। भाजपा की ओर से चुनाव प्रचार की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पास है। भाजपा के ये दोनों नेता लगातार प्रमुखता के साथ अपनी बात कोलकाता सहित भाजपा द्वारा आयोजित सभाओं में रख रहे हैं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पांव में गंभीर चोट लगने के बाद भी व्हील चेयर पर बैठकर चुनाव प्रचार अभियान में जुट गयी हैं।
कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों ने भी अपने प्रचार अभियान को तेज कर दिया है। लेकिन इन सभी पार्टियों की नजरें नार्थ बंगाल की कुल 54 सीटों पर टिकी हुई हैं। यहां बताना जरूरी है कि पश्चिम बंगाल की कुल 294 सीटों में से नार्थ बंगाल की कुल 54 सीटें शामिल हैं। जो इस बार के चुनाव में हर पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में पश्चिम बंगाल में कुल 294 सीटों में से 292 सीटों पर ही चुनाव हो रहे हैं। शेष 2 सीटें मनोनीत की जाती हैं जिसमें एंग्लो इंडियन समुदाय के लोग शामिल रहते हैं। दरअसल, भाजपा को भी पता है कि नार्थ बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की पकड़ काफी कमजोर है। क्योंकि पिछले चुनाव में नार्थ बंगाल की कुल 54 सीटों में से मात्र 12 सीटों पर ही तृणमूल उम्मीदवारों को सफलता मिल पायी थी। इसलिए तृणमूल की सक्रियता भी नार्थ बंगाल में काफी बढ़ी हुई है। भाजपा को लगता है कि नार्थ बंगाल की सीटों के सहारे पश्चिम बंगाल की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता खुल सकता है। इसलिए भाजपा की पूरी ताकत नार्थ बंगाल में लगी हुई है।
वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने कार्यकर्ताओं को नार्थ बंगाल में एकजुटता के साथ चुनाव प्रचार में डटे रहने की सलाह दी है। ममता बनर्जी को भी एहसास है कि पश्चिम बंगाल की सत्ता में बने रहने के लिए नार्थ बंगाल में सीटों का बढ़ना बेहद जरूरी है। कम से कम तृणमूल कांग्रेस इस बार के विधानसभा चुनाव में 25 सीटें ले पाएगी, तभी जाकर तृणमूल कांग्रेस का चुनावी समीकरण सटीक बैठ सकता है। भाजपा भी तृणमूल की चाल को समझ रही है। इसलिए वह भी अपने वरिष्ठ कैडरों को नार्थ बंगाल में काफी पहले ही उतार चुकी है। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की नजरें अनुसूचित जाति के 23 फीसद मतदाताओं पर टिकी हुई है। इन अनुसूचित जातियों में से प्रमुख मटुआ समुदाय के लोग शामिल हैं। इस समुदाय के लोगों को लग रहा है कि यदि पश्चिम बंगाल में भाजपा की सरकार बनती है तो यहां पर सीएए लागू हो जाएगा और इस समुदाय को नागरिकता मिल जाएगी। इसलिए इस समुदाय के लोग भाजपा की ओर आकृष्ट हो रहे हैं।
वहीं, सीएए को लेकर तृणमूल कांग्रेस भी इस समुदाय के लोगों को स्पष्ट कर रही है कि कोई भी व्यक्ति भाजपा की इस नौटंकी में नहीं फंसे। क्योंकि भाजपा की कथनी और करनी में काफी फर्क है। यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वर्ष 2019  में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा को कुल 18 सीटें मिली थीं। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हवा थी। ऐसा भी नहीं है कि हवा बिगड़ गयी है। लेकिन पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में अमूमन यह देखा गया है कि स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों को वोट मिलते रहे हैं। जब लोकसभा की बारी आती है तब उम्मीदवारों को दिल्ली के लिए वोट मिलते हैं। अब मतदाता क्या करेगा, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन इतना तो साफ हो गया है कि भाजपा और तृणमूल में कांटे की टक्कर है। तृणमूल अपनी गद्दी बचाने के लिए प्रयासरत है, जबकि भाजपा पश्चिम बंगाल की सत्ता पाने के लिए बेचैन है।
 

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