पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण का केंद्र है कोल्लेरु झील

  • सर्दियों में कई तरह के प्रवासी पक्षी आते हैं
  • कोल्लेरु झील के इस क्षेत्र की जलवायु शुष्क, गर्म और आर्द्र रहती है

Indiaभारत की प्रमुख मीठे पानी की झीलों का नाम लिया जाता है तो उसमें कोल्लेरु झील का नाम भी आता है। यह झील आंध्र प्रदेश के एलुरु शहर से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है और राजमंड्री से 65 किमी दूर है ये झील। कोल्लेरु झील पूरी तरह से आंध्र के दो जिलों कृष्णा और पश्चिम गोदावरी में फैली हुई है, खासतौर पर कृष्णा और गोदावरी डेल्टा के बीच स्थित है यह झील। कोल्लेरु झील के पानी का स्रोत है मौसमी बुडामेरु और तम्मिलेरु धाराएं, और फिर इस झील का पानी कृष्णा और गोदावरी सिंचाई प्रणालियों की 67 से अधिक प्रमुख और छोटी सिंचाई नहरों से जोड़ा जाता है। पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण का केंद्र है ये झील और यहां सर्दियों में कई तरह के प्रवासी पक्षी आते हैं जिससे झील के साथ ही इन पक्षियों को देखने के लिए भी पर्यटकों की भीड़ लग जाती है। इन पक्षियों में साइबेरियन क्रेन आइबिस और सारस या फिर यू कहें कि राजहंस यहां बड़ी तादाद में आते हैं जिससे झील का सौंदर्य और भी बढ़ जाता है।यह झील अनुमानित तौर पर 20 मिलियन निवासी और प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान है जिसमें ग्रे या स्पॉट-बिल्ड पेलिकन (पेलेकेनस फिलिपेंसिस) पक्षी भी शामिल थे।भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत नवंबर 1999 में झील को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया था और नवंबर 2002 में अंतर्राष्ट्रीय रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व के एक आर्द्रभूमि नामित किया गया था। वन्यजीव अभयारण्य 308 किमी 2 के क्षेत्र को कवर करता है।कोल्लेरु झील के इस क्षेत्र की जलवायु शुष्क, गर्म और आर्द्र रहती है। गर्मियों में अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक और न्यूनतम तापमान दिसंबर और जनवरी के बीच सर्दियों में 14 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है।वहीं नवंबर से मार्च के बीच के समय को अभयारण्य में आने वाले इन पक्षियों को देखने का सबसे अच्छा समय माना जाता है।कोल्लेरु झील जहां प्रवासी पक्षियों के लिए जानी जाती है वहीं इस झील में बड़ी मात्रा में राजहंस भी आते हैं और फिर पहुंच जाते हैं ऐसे शिकारी जो इन पक्षियों को अपना शिकार बनाने से बाज नहीं आते। यही वे लोग हैं जो प्रकृति के संतुलन को खराब करते हैं और बगैर किसी अपराधबोध के अपनी गैरकानूनी गतिविधियां जारी रखते हैं। और इस प्रकार साल दर साल, कोल्लेरु झील में आने वाले राजहंसों की संख्या को कम कर दिया है। कभी यह झील राजहंसों की बड़ी संख्या के लिए जानी जाती थी पर अब इनकी संख्या बेहद कम हो गई है और जो भी पर्यटक जाते हैं इन्हें देखने उनके हाथ मायूसी ही लगती है।इतना ही नहीं पक्षियों के शिकार के साथ ही झील के पानी की गुणवत्ता भी समय के साथ खराब हो रही है। इस सबका कारण बन रहा है मानव लालच जो प्राकृतिक बंधनों में हस्तक्षेप कर रहा है और जल निकायों और पक्षी-जीवन के बीच समस्या पैदा कर रहे हैं।

अवैध अतिक्रमणों के कारण खराब हो गई है पानी की गुणवत्ता

अवैध अतिक्रमणों के कारण पानी की गुणवत्ता खराब हो गई है क्योंकि प्राकृतिक सफाई करने वाले एजेंट बिना किसी रोक के झील से बह जा रहे हैं। भूस्वामियों में समुद्री जल की घुसपैठ और इस क्षेत्र में वर्षा पैटर्न का इस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वर्षा में कमी के कारण फसलें नहीं उपज रही है और इस प्रकार एक अंतहीन दुष्चक्र बनता जा रहा है।नवंबर 2002 में इस झील को रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व की एक आर्द्रभूमि घोषित किया गया था ताकि झील की बहाली में मदद करे। हालांकि, व्यक्तिगत प्रयासों के बिना, इस कीमती झील की सुंदरता को पुनर्जीवित करना बहुत मुश्किल है।विभिन्न संबंधित वैज्ञानिकों और बड़े पैमाने पर मानव प्रयासों के साथ झील को नुकसान पहुंचने से बचाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं और यह संभव है कि इस अभियान से कोल्लेरू को दुनिया के सबसे बड़े वायुमंडलीय खिताब हासिल करने में मदद मिलेगी।

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