- पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में मामला होने के कारण टल रहे पंचायत चुनाव
- महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस भी दियासुमित्रा, चंडीगढ़।
हरियाणा के करीब सात हजार गांवों में छोटी सरकार कब चुनी जाएगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। खट्टर सरकार की मंशा फरवरी के आखिर तक पंचायतों के चुनाव कराने की थी, लेकिन मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चला गया है। हाईकोर्ट ने इस बारे में हरियाणा सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया है।
इस सिलसिले में खट्टर सरकार की तरफ से पहले हरियाणा राज्य चुनाव आयोग को पत्र लिखा गया था। 23 फरवरी को पंचायती राज प्रतिनिधियों का पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। सरपंचों की जगह प्रशासक नियुक्त किए गए हैं। चुने हुए प्रतिनिधि घर बैठा दिए गए हैं। इस बार करीब 200 नई पंचायतें बनाई गई थीं। इसकी वार्डबंदी का काम चल रहा था। राज्य निर्वाचन आयोग अब इस मुद्दे पर कुछ बोलने से बचना चाहता है। चुनाव आयुक्त दलीप सिंह कहते हैं, ह्यमामला अदालत में विचाराधीन है। ऐसे में कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा।
समझा जा सकता है कि खट्टर सरकार की फरवरी में पंचायतों के चुनाव कराने की सारी तैयारियां धरी की धरी रह गई हैं। जल्दी ही अधिसूचना जारी हो जाने की चर्चाओं के कोई मायने नहीं रह गए हैं। चुनाव कब होंगे, यह अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा।
उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला ने पंचायत चुनावों को लेकर कहा था, निर्वाचन आयोग को पत्र लिखा जा चुका है। चुनाव की तारीखें तय करने का निर्णय आयोग को करना है।
लेकिन अब इस मुद्दे पर दुष्यंत चैटाला, जो ग्रामीण विकास और पंचायत विभाग के मंत्री भी हैं, चुप्पी साधे हुए हैं। पंचायती राज अधिनियम में संशोधन को लेकर उठ रहे विवाद के बावजूद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी कहा था कि पंचायत चुनाव समय पर होंगे। लेकिन फरवरी खत्म होने को हैं और राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से इस दिशा में अभी कोई कदम नहीं उठाये जाने से साफ है कि चुनाव का कार्यक्रम अधर में लटक गया है।
उधर, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री करण सिंह दलाल ने फरवरी में पंचायत चुनाव होने पर पहले ही संशय जाहिर कर दिया था। दलाल ने कहा था, पंचायती राज संशोधन अधिनियम में महिलाओं के चुनाव लड़ने के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। इसके विरोध में महिला संगठन हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे लगता नहीं कि चुनाव समय पर हो पाएंगे। और दलाल की आशंका सही साबित हुई है।
दरअसल, भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने हरियाणा में महिलाओं के सशक्तिकरण के मकसद से पंचायत चुनावों में उन्हें 50 फीसदी आरक्षण की सुविधा देने का फैसला किया था। माना जा रहा था कि इससे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को आगे आने के ज्यादा मौके मिल सकेंगे, लेकिन इस फैसले पर ही सवाल उठने लग गए।
कांग्रेस के आरोप हैं कि इस फैसले के जरिए महिलाओं के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। इसका अर्थ यह लगाया गया कि महिलाएं 50 फीसदी सीटों पर मैदान में ही नहीं उतर पाएंगी। इस मुद्दे पर पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता करण सिंह दलाल ने राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य को पत्र लिख कर इस कानून में संशोधन का आग्रह किया था। जाहिर है कि दलाल के आग्रह पर खट्टर सरकार को कोई गौर नहीं करना था। नहीं किया गया। लेकिन इससे बात आई-गई नहीं हो गई। आखिर, मामला अदालत में चला ही गया।
पंचायत संशोधन कानून को महिला संगठन असंवैधानिक मान रहे हैं। उनके मुताबिक देश के किसी भी राज्य में ऐसा कानून नहीं है। महिला संगठन इस कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। खट्टर सरकार ने पंचायत संशोधन कानून में सेक्शन 9 अंतर्गत भाग 3 में महिलाओं के लिए केवल 50 फीसदी पद आरक्षित किए हैं, जबकि बाकी रहे 50 फीसदी पदों पर महिलाएं चुनाव नहीं लड़ सकेंगी। राज्य सरकार महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित कर सकती है, लेकिन अन्य 50 फीसदी सीटों पर चुनाव लड़ने की प्रक्रिया से उन्हें रोक नहीं सकती है। अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए आरक्षित सीटें चुनाव लड़ने के लिए हैं, लेकिन अनुसूचित जाति और जनजातियों को सामान्य सीटों पर भी चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता है, जबकि महिलाओं के लिए बाकी 50 फीसदी सीटों पर चुनाव लड़ने पर पाबंदी रहेगी, जिसे किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड सहित कई ऐसे राज्य हैं, जहां महिलाओं पर आरक्षित सीटों के अलावा दूसरी सीटों पर चुनाव लड़ने पर कोई पाबंदी नहीं है। महिलाएं जहां से चाहें चुनाव लड़ सकती हैं। महिला संगठन चाहते हैं कि हरियाणा में भी ऐसा ही होना चाहिए था। माना जा रहा है कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने जान बूझकर यह कानून पारित किया है। गांवों का विकास नहीं चाहती खट्टर सरकार: करण
आपके इस आरोप का क्या आधार है कि खट्टर सरकार गांवों का विकास नहीं कराना चाहती?
यह सही है कि भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार गांवों में विकास कराना ही नहीं चाहती। यदि पंचायत चुनाव हो गए तो गांवों को विकास कार्यों के लिए धनराशि भेजनी पड़ेगी, लेकिन सरकार के पास गांवों को देने के लिए पैसे ही नहीं हैं। पंचायत चुनाव में देरी होगी तो ग्राम पंचायतों को विकास के लिए फौरन राशि भेजने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। इसीलिए राज्य सरकार ने गलत कानून बना कर संविधान की अवहेलना की है।
महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है। आप इस पर क्या कहेंगे?
महिला संगठन इसकी तैयारी कर रहे थे। इस मुद्दे पर कई महिला संगठनों ने मुझ से भी सम्पर्क किया था। चुनाव लड़ने के अपने अधिकार सीमित कर देने की वजह से उनमें नाराजगी है। यह कानून उनके अधिकारों पर कुठाराघात है। ऐसे में महिलाएं इस कानून के खिलाफ अदालत में गई हैं।
आमतौर पर महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में जल्दी से आगे नहीं आती हैं। पर्दे के पीछे से अब भी महिला सरपंचों के पति ही उनका कामकाज संभालते हैं। अभी उनके लिए 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई है। हो सकता है कि आगे चल कर इसमें कुछ और सुधार किये जाएं?
लेकिन हरियाणा राज्य संविधान से ऊपर नहीं हो सकता। यदि देश के संविधान को बदल दिया जाए तो हरियाणा भी निश्चित तौर पर ऐसा कर सकता है, लेकिन आज नहीं कर सकता, क्योंकि अभी संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था है ही नहीं। आरक्षित सीटों के अलावा दूसरी सीटों पर भी महिलाओं को चुनाव लड़ने का अधिकार है, जिसे हरियाणा सरकार ने छीनने का काम किया है।
आप कह रहे हैं कि किन्नर समाज को भी संशोधित कानून में महिला या पुरूष की किसी कैटेगरी में नहीं रखा गया है?
यह सही है। किन्नरों को थर्ड जेंडर माना गया है, लेकिन इस संशोधित कानून में किन्नरों के बारे में कोई कैटेगरी तय नहीं की गई है। महाराष्ट्र सरकार ने किन्नरों को महिला कैटेगरी में रखा है, जबकि हरियाणा के कानून में इन किन्नरों का कोई जिक्र ही नहीं है। यदि कोई किन्नर अदालत में जा कर चुनौती देता है कि उनके लिए इस कानून में कोई प्रावधान नहीं है तो यह कानून निरस्त हो सकता है। संविधान की मर्यादाओं से हट कर कानून बनाने से ही हरियाणा सरकार की मंशा समझी जा सकती है। मुझे नहीं लगता कि जल्दी चुनाव हो पाएंगे। मेरा मानना है कि अदालत में यह कानून औंधे मुंह गिरेगा।
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