खींचतान में फंसी बंगाल की सियासत

आफरीन हुसैन/सार्थक दासगुप्ता

कोलकाता: आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पश्चिम बंगाल की राजनीति अब धीरे धीरे गरम हो रही है। बंगाल में चुनाव अप्रैल में कराए जाने की संभावना है। केंद्रीय चुनाव आयोग की टीम शांतिपूर्वक चुनाव संपन्न कराने के लिए कई बार बंगाल का दौरा भी कर चुकी है लेकिन चुनाव की तिथि की घोषणा अब तक नहीं हुई है। लेकिन पश्चिम बंगाल की सियासत में गरमाहट शुरू है। खासकर, राज्यपाल जगदीश धनखड़ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रिश्तों को लेकर। कभी धनखड़ और ममता बनर्जी एक-दूसरे के करीब दिखते नजर आते हैं तो कभी दोनों के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी और भयानक होते दिखाई पड़ने लगती है। राजनीति के जानकार यह मानकर चल रहे हैं कि दोनों दिग्गजों के बीच टकराव खत्म नहीं होने वाला है। विधानसभा चुनाव तक दोनों के तेवर एक दूसरे पर तल्ख तो रहेंगे ही। बीते 6 जनवरी को ममता बनर्जी एकाएक राज्यपाल से मिलने राजभवन पहुंची तो लगने लगा कि अब संभवत: राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच की दूरियां कम होंगी। सूत्रों की मानें तो ममता बनर्जी चाहतीं हैं कि केंद्र किसान सम्मान निधि योजना पश्चिम बंगाल में भी शुरू करे।
जानकारी के मुताबिक, इस योजना को पश्चिम बंगाल की धरती पर उतारने के मकसद से ही मुख्यमंत्री, राजभवन पहुंची थी। हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताकर टालने की कोशिश की है। सूत्र बताते हैं कि ममता बनर्जी और राज्यपाल के बीच सियासत से जुड़ी बातें भी निश्चित रूप से हुई होंगी जिसका जिक्र कहीं नहीं है। इस मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री के प्रति राज्यपाल की भाषा कुछ नरम जरूर हुई थी। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि दोनों संभवत: किसी खास बिंदु पर लगभग एक हैं। लेकिन 27 और 28 जनवरी को पश्चिम बंगाल विधानसभा का सत्र बुलाया गया और उसमें अभिभाषण के लिए राज्यपाल को नहीं बुलाया गया। इससे राज्यपाल ममता बनर्जी सरकार पर फिर भड़क उठे। राज्यपाल ने माना कि उन्हें विधानसभा सत्र के विशेष अधिवेशन में नहीं बुलाकर ममता सरकार ने प्रोटोकॉल का जबरदस्त उल्लंघन किया है। वैसे भी राज्यपाल समय समय पर ट्वीट करके ममता बनर्जी की सरकार पर आरोप लगाते रहते हैं। राज्यपाल ने तो यहां तक कहा कि बंगाल में कृषि के तीनों बिल लागू नहीं होने से कम से कम 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। साथ ही, 70 लाख किसान भी प्रभावित हुए हैं। तृणमूल कांग्रेस ने तो राज्यपाल को हटाने को लेकर राष्ट्रपति को पत्र भी भेजा है। तृणमूल कांग्रेस ने राज्यपाल पर स्पष्ट आरोप लगाया है कि धनखड़ संविधान के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसलिए राज्यपाल को तत्काल प्रभाव से पश्चिम बंगाल से हटाया जाए। कई ऐसे मुद्दे हैं जिसकी वजह से राज्यपाल और ममता बनर्जी के बीच कड़वाहट बढ़ती ही जा रही है। विश्वविद्यालयों को लेकर भी राजभवन और सरकार के बीच तनातनी बरकरार है। ममता बनर्जी का साफ कहना है कि राज्यपाल राज्य द्वारा संचालित होने वाले विश्व विद्यालयों में दखलंदाजी नहीं कर सकते हैं। इस तरह के कई ज्वलंत मुद्दे हैं जिसकी वजह से राज्यपाल और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच शुरू हुई वार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। राजनीति के जानकार उस समय जरूर अचरज में पड़ गये जब ममता बनर्जी करीब एक साल बाद राजभवन पहुंची। तब सभी यही समझने लगे कि अब राजभवन और ममता बनर्जी के बीच सामंजस्य स्थापित हो गया है। अब नोकझोंक का दौर खत्म हो गया है। सही तालमेल बिठाकर दोनों ही पश्चिम बंगाल के विकास में अपना अपना योगदान देंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है जिससे यह पता चले कि राजभवन और सरकार के बीच अब शांति का माहौल कायम हो गया है।

तृणमूल को झटका

तृणमूल कांग्रेस के अधिकतर दिग्गजों ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का साथ छोड़ दिया है। लगातार तृणमूल कांग्रेस के विधायक और नेता ममता बनर्जी का साथ छोड़ रहे हैं जिससे ममता बनर्जी की परेशानी बढ़ती ही जा रही है। पश्चिम बंगाल की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषकों का कहना है कि ममता बनर्जी का कुनबा अब बिखरने लगा है। ममता बनर्जी अपनों को संभालने में पूरी तरह से असफल रही हैं। जिसकी वजह से एक एक करके तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ना शुरू कर दिया है।
विश्लेषकों की मानें तो विधानसभा चुनाव के नजदीक आते आते तृणमूल कांग्रेस के नींव रहे और ममता बनर्जी के मददगार रहे दिग्गजों के भी तृणमूल कांग्रेस छोड़ने की संभावना है। ऐसे में ममता बनर्जी के लिए विधानसभा चुनाव काफी कठिन साबित हो सकता है। ऐसी स्थिति में ममता बनर्जी किस तरह अपनों को संभाल कर रख पातीं है। ममता बनर्जी के लिए यही महत्वपूर्ण है। वहीं, ममता बनर्जी पर कांग्रेस और माकपा दोनों ही पार्टियों के नेता आरोप लगा रहे हैं कि ममता बनर्जी राज्य हित की बात नहीं सोचती हैं। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ममता बनर्जी भाजपा की मदद कर रही हैं। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान का कहना है कि ममता बनर्जी की नजर अल्पसंख्यक वोटों पर है, जबकि भाजपा की नजर कट्टर हिन्दू वोटों पर है। पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के नेता इसी नजरिए से अपनी अपनी गोटी फिट करने में जुटे हुए हैं। माकपा के वरिष्ठ नेता सुजल चक्रवर्ती का कहना है कि ममता बनर्जी की स्थिति विचित्र है। वे दोहरी नीति अपनाए हुए हैं जिसका लाभ भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में मिलने की उम्मीद है। वहीं, तृणमूल नेताओं का कहना है कि माकपा और कांग्रेस को तृणमूल के साथ होना चाहिए, तभी जाकर आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने में कामयाबी मिल सकती है। वरना इन दोनों पार्टियों के गठबंधन से भाजपा को ही फायदा होगा। यहां बताना जरूरी है कि कांग्रेस और माकपा की गठबंधन को लेकर अब तक दो महत्वपूर्ण बैठकें भी हो चुकी है और आगामी 28 फरवरी को ब्रिगेड मैदान में बड़ी सभा का भी आयोजन किया गया है। बहरहाल, तमाम बनते बिगड़ते समीकरणों के बीच बंगाल की राजनीति किस तरफ आगे बढ़ती है, यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा। लेकिन इतना तो तय है कि बंगाल की शेरनी के लिए इस बार के विधानसभा चुनाव काफी चुनौतीभरे रहने वाले हैं।

पश्चिम बंगाल में भाजपा के नेताओं की मंशा कभी भी पूरी नहीं होगी। यहां की जनता काफी समझदार है और वह सही समय पर सटीक फैसला लेने में माहिर है। मेरी सरकार ने पश्चिम बंगाल के विकास के लिए काफी कार्य है। जबकि भाजपा की नीति शुरू से ही दमनकारी रही है। भाजपा लोगों को बांटती है। कांग्रेस और वामपंथियों की स्थिति भी ठीक नहीं है। इनके गठबंधन से भाजपा को लाभ मिलेगा। पश्चिम बंगाल की जनता सभी पार्टियों की गतिविधियों पर नजर रखे हुए है। मुझे तो यहां की जनता पर ही भरोसा है।

-ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल

एक ओर मोदी सरकार जन कल्याण के लिए काम कर रही है तो दूसरी ओर ममता बनर्जी की सरकार पश्चिम बंगाल में भतीजा कल्याण के लिए काम कर रही है। बंगाल के हालात तेजी के साथ बिगड़ रहे हैं और आगामी विधानसभा चुनाव तक दीदी अकेले रह जाएंगीं।
-अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री

 

Leave a Reply