मप्र: बदलाव के मूड में भाजपा

MP: BJP in the mood for change

…. नगरीय निकाय चुनावों में नई भावी पीढ़ी को मौका देने की तैयारी

…. भाजपा इस तरह का दिल्ली में कर चुकी है सफल प्रयोग

मध्यप्रदेश में हाल ही में हुए उपचुनावों के नतीजे आने के बाद प्रदेश भाजपा देशकाल की परिस्थितियों को देखते हुए पहले मैदानी संगठन और अब नगरीय निकाय चुनावों में नई भावी पीढ़ी को मौका देने का मन बना चुकी है। दरअसल, पार्टी इस बहाने संगठन और पार्टी नेताओं की पीढ़ी परिवर्तन की कवायद कर रही है। पार्टी अपनी इस रणनीति में सफल रहती है तो फिर यही फार्मूला आगे जारी रहेगा। निकाय चुनाव में 25 से लेकर 45 साल तक के कार्यकर्ताओं को उम्मीदवार बनाने की बात कही जा रही है। इससे पार्टी के पक्ष में न केवल युवाओं का रुझान बढ़ेगा, बल्कि युवाओं को भी आगे आने का मौका मिलेगा। दरअसल, पार्टी इस बार नगर परिषद और नगर पालिका अध्यक्ष और महापौर पद के लिए नए चेहरों को मौका देने जा रही है। पार्टी इस तरह का प्रयोग दिल्ली में भी कर चुकी है। वहां यह प्रयोग उसका पूरी तरह से सफल रह चुका है।

गौरतलब है कि भाजपा में अभी सक्रिय नेताओं में अधिकांश 90 के दशक या उससे भी पहले के हैं। इन नेताओं की वजह से युवाओं को कम ही मौका मिल पा रहा है। यही वजह है कि अब पार्टी भविष्य की चिंता में युवाओं को पूरा मौका देकर पीढ़ी परिवर्तन करने की योजना पर अमल कर रही है। यह बदलाव प्रदेश में भाजपा की कमान युवा चेहरे वीडी शर्मा को सौंप कर शुरू कर चुकी है। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से संगठन में एक नई ऊर्जा तो देखी ही जा रही है, युवाओं का जुड़ाव भी पार्टी के साथ बढ़ा है। शर्मा की टीम में पांचों महामंत्री भी नई पीढ़ी के हैं। इसके साथ ही माना जा रहा है कि शर्मा की नई कार्यकारिणी में भी अधिकांश चेहरे नए ही होंगे।

दरअसल, पार्टी संगठन चाहता है कि बदलाव के चलते उसे अगले बीस सालों के लिए नया नेतृत्व तैयार रूप में मिल जाए। इसके लिए बनाए गए रोडमैप पर संगठन काम कर रहा है। इसकी वजह से ही मंडल अध्यक्षों के चुनाव में आयु सीमा 35 से 40 वर्ष तय की गई थी। इसके साथ ही यह भी तय कर किया गया है कि स्थानीय निकाय में चुनाव लड़ने वाले नेताओं की उम्र 55-60 साल से अधिक नहीं होगी। इसका संकेत पार्टी ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 75 साल या उससे ज्यादा उम्र के नेताओं को टिकट न देकर ही दे दिया था।

उधर, भाजपा में हो रहे परिवर्तन और उपचुनाव में हुई हार के बाद कांग्रेस में भी इसी तरह के फेरबदल का दबाव बना हुआ है। यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं के सियासी भविष्य पर खतरा बन जाएगा। कांग्रेस यदि युवा नेताओं को मौका देती है तो प्रदेश के युवाओं का रूझान वापस कांग्रेस की ओर हो सकता है। इससे विपक्ष में होने से युवाओं का साथ मिलने पर कांग्रेस का सियासी संघर्ष न केवल मजबूत होगा, बल्कि भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ेंगी। इसी संभावना के चलते ही भाजपा निकाय चुनावों में युवाओं को अपने पक्ष में करने का पूरा प्रयास कर रही है।

प्रदेश में बीते चुनाव में थे 1.53 करोड़ युवा मतदाता

बीते आम चुनाव 2018 में 18 से 29 साल के मतदाताओं की संख्या मध्यप्रदेश में 1,53,60,832 थी, जिसमें 18-19 साल के मतदाताओं की संख्या 16 लाख से अधिक और 20 से 29 वर्ष की आयु 1,37,82,779 मतदाता थे। इनमें भी पहली बार वोट डालने की पात्रता पाने वाले करीब 12 लाख मतदाता थे। मप्र में उस समय निर्वाचन आयोग के अनुसार करीब पांच करोड़ मतदाता थे। यानी राज्य में कुल मतदाताओं में से 18 से 29 वर्ष की आयु के मतदाता लगभग 35 प्रतिशत था। इन युवा मतदाताओं में दो साल के अंदर करीब 12 लाख की वृद्धि संभावित है।

शिवराज मंत्रिमंडल का विस्तार और बीजेपी प्रदेश कार्यकारिणी के गठन का काम रुका हुआ है। इन दोनों में ही देरी हो रही है। जानकारों का यह भी कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार रुकने के पीछे यदि कोई पेंच है तो वह है ज्योतिरादित्य सिंधिया का। ज्ञात हो कि उपचुनाव के बीच बीजेपी ने प्रदेश महामंत्रियों की नियुक्ति कर दी थी। उस दौरान सिंधिया समर्थकों को किसी तरह की तरजीह नहीं दी गई थी, लेकिन उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद सिंधिया पूरा हिसाब करने के मूड में हैं और उपाध्यक्ष पद पर अपनों को एडजस्ट कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। इसके लिए सिंधिया ने चार नाम आगे भी बढ़ा दिए हैं।

भारतीय जनता पार्टी आने वाले 5 राज्यों राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के चुनाव में भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का उपयोग करेगी। यही वजह है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि मध्य प्रदेश में सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया को व्यवस्थित किया जाए। नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में मध्यप्रदेश से फिलहाल छह मंत्री हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री पद देना है या फिर संगठन में कोई प्रमुख पद इस पर फैसला फिलहाल नहीं हो पा रहा है। लेकिन सियासत के जानकारों का मानना है कि सबसे पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया का फैसला होगा, उसके बाद उनके समर्थकों के बारे में विचार किया जाएगा।

-राकेश प्रजापति, भोपाल।

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