- उत्तराखंड को मॉडल स्टेट बनाने की दिशा में काम कर रही सरकार
- केंद्र की करीब एक लाख करोड़ की स्वीकृत परियोजनाओं पर काम चल रहा
अमर श्रीकांत
देहरादून: कोई भी देश या फिर राज्य तभी विकास के पथ पर अग्रसर होगा, जब उसकी अर्थव्यवस्था की गति और दिशा पटरी पर होती है। इस क्रम में उत्तराखंड को भी देखा जा सकता है जो अपने सीमित संसाधनों में सुसंगठित प्लानिंग के बल पर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में कार्य कर रहा है। उत्तराखंड 21वें साल में प्रवेश कर गया है। मतलब साफ है कि उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 20 साल पूरे हो गए हैं। इस दौरान उत्तराखंड में चहुंमुखी विकास की पहल हर राजनीतिक पार्टियों द्वारा की गई है, इसमें कहीं से भी शक की कोई गुंजाइश नहीं है।स्थापना दिवस के मौके मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आश्वस्त किया कि उत्तराखंड को देश का मॉडल स्टेट बनाने की दिषा में सरकार काम कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से लगभग एक लाख करोड़ रुपये की स्वीकृत परियोजनाओं पर काम चल रहा है। देश का पहला ड्रोन एप्लीकेशन सेंटर, सीपेट, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन नेचुरल फाइबर, कोस्ट गार्ड भर्ती सेंटर सरकार की उपलब्धि है। इसके अलावा स्मार्ट सिटी परियोजना, जमरानी बहुउद्देशीय परियोजनाएं, उत्तराखंड वाटर मैनेजमेंट प्रोजेक्ट और भारत नेट फेज-2 परियोजना सहित अन्य बहुत सी परियोजनाओं पर काम जारी है। राज्य को 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में बेस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट घोषित किया गया। साढ़े तीन वर्षों में नीति आयोग द्वारा जारी ‘भारत नवाचार सूचकांक-2019’ में पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्यों की श्रेणी में उत्तराखंड सर्वश्रेष्ठ तीन राज्यों में शामिल हुआ है। विभिन्न रोपवे प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। न्याय पंचायतों में क्लस्टर आधारित एप्रोच पर ग्रोथ सेंटर बनाए जा रहे हैं। किसानों को तीन लाख रुपये तक और स्वयं सहायता समूहों को पांच लाख तक का ऋण बिना ब्याज दिया जा रहा है। खाद्यान्न उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दूसरी बार कृषि कर्मण प्रशंसा पुरस्कार, स्वच्छ भारत मिशन, नदियों के संरक्षण, मनरेगा और पीएमजीएसवाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रदेष को पुरस्कृत किया जा चुका है। आत्मनिर्भर उत्तराखंड और वोकल फॉर लोकल के तहत स्वरोजगार को एक अभियान के तौर पर चलाया जा रहा है। 70 करोड़ रुपए की लागत से जलाशय, सड़कों का चैड़ीकरण, हेलीपैड और मिनी सचिवालय बनाने की दिषा में प्रयास जारी हैं।
यदि राज्य गठन के बाद की बात की जाए तो उस समय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और दिवंगत मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उद्योगपतियों को उत्तराखंड में उद्योग स्थापित करने के मकसद से आमंत्रित किया था और इस दिशा में काफी हद तक काम भी हुए थे जिसकी वजह से आज भी एनडी तिवारी को उत्तराखंड की जनता याद करती और भविष्य में भी करती रहेगी। उत्तराखंड 20 साल का हो गया है। इस दौरान प्रदेश में विकास के लिए कई तरह के कार्य किए गए। विकास को लेकर सर्वाधिक प्रयास वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में शुरू हुई है, जिसके सुखद परिणाम भी देखने को मिलने लगे हैं। हां, यह सच है कि उत्तराखंड के चहुंमुखी विकास में अभी कुछ वक्त जरूर लगेगा लेकिन इसकी शुरुआत तो हो गई है।उदाहरण के रूप में वर्ष 2018 में 12 सत्रों में संपन्न हुए उत्तराखंड इन्वेस्टर्स समिट को देखा जा सकता है जिसमें करीब 500 से ज्यादा औद्योगिक घरानों के शीर्ष प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान प्रदेश में करीब 1.20 लाख करोड़ रुपए के निवेश के प्रस्ताव सरकार के पास आए। यहां बताना जरूरी है कि निवेश के लिए 12 कोर सेक्टर चिह्नित किए गए जिसमें पर्यटन, सोलर, ऊर्जा, हार्टिकल्चर, फ्लोरीकल्चर, फार्मास्यूटिकल्स, आटोमोबाइल, हर्बल और एरोमेटिक जैसे क्षेत्रों में निवेश करने की इच्छा औद्योगिक घरानों की ओर से जताई गई। उत्तराखंड इन्वेस्टर्स समिट की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि पहली बार उद्योगपतियों ने पहाड़ों पर उद्योग स्थापित करने की पहल की। हालांकि, कुछ त्रुटियां रही हैं जिसकी वजह से निवेश जोर नहीं पकड़ पाया है। सरकार ने शुरुआती दौर में उद्योगपतियों को इस बात का भरोसा दिलाया था कि उन्हें पहाड़ी जनपदों में उद्योग स्थापित करने पर सस्ती बिजली, बेहतर कानून व्यवस्था, अन्य पर्वतीय राज्यों के मुकाबले कारोबारी सुगमता, तेजी के साथ बढ़ती कनेक्टिविटी और एकल विंडो की मंजूरी जैसी सुविधाएं तुरंत उपलब्ध कराई जाएंगी।
निजी निवेशकों के अलावा सरकार अपने स्तर पर भी बड़े निवेश की ओर अग्रसर है। इस क्रम में 543 करोड़ की धनराशि औद्योगिक निवेश में करने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत रिजारट, स्पा और फूड प्रोडक्ट्स को विकसित करने का फैसला उत्तराखंड सरकार ने लिया है। इसके अलावा सरकार ने गैरसैंण को भी वृहद स्तर पर विकसित करने का महत्वपूर्ण फैसला लिया है। पूरे गैरसैंण के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सरकार आगामी 10 सालों में 25 हजार करोड़ की धनराशि निवेश करेगी। सरकार का यह फैसला अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सरकार ने गैरसैंण पर मोटी धनराशि खर्च करने का निर्णय लिया है, इसका मतलब साफ है कि वर्तमान सरकार गैरसैंण को भविष्य में स्थाई राजधानी का भी दर्जा दे सकती है।
केवल इतना ही नहीं, गैरसैंण में कौशल सेंटर आफ एक्सीलेंस की भी स्थापना की जा रही है। यह सब सकारात्मक पहल है। दरअसल, यह सब काम काफी पहले ही हो जाना चाहिए था। राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें सत्ता पर काबिज रही हैं, पर किसी ने भी गैरसैंण को गंभीरता से लेने की कोशिश नहीं की है। लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुआई वाली भाजपा सरकार गैरसैंण को लेकर वाकई गंभीर है। तभी तो मुख्यमंत्री दनादन गैरसैंण को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि सरकार गैरसैंण को आने वाले दिनों में स्थाई राजधानी का दर्जा भी दे सकती है। खैर, यह तो एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें समय भी लग सकता है। लेकिन इससे एक बात और भी उजागर हो गई कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत गैरसैंण के विकास को लेकर न केवल गंभीर हैं, बल्कि चाहते हैं कि गैरसैंण के विकास में पैसे की कोई काम नहीं हो। ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में राजधानी के अनुरूप आवश्यक सुविधाओं के विकास की कार्ययोजना बनाकर सिलसिलेवार तरीके से कार्य जारी हैं। जिला स्तरीय अस्पताल, पेयजल के लिए 70 करोड़ की लागत से जलाशय, सड़कों का चैड़ीकरण, हेलीपेड और मिनी सचिवालय बनाने की दिषा में प्रयास जारी हैं। राजनीति के जानकार भी मुख्यमंत्री की गैरसैंण को लेकर की गई पहलों को सूझबूझ वाला निर्णय मानते हैं।
अब महत्वपूर्ण दो सवाल निजी और सरकारी निवेश। निजी तो बड़े बड़े औद्योगिक घराने ही करेंगे। ऐसे घरानों को केवल आवश्यक सुविधाएं चाहिए। इस दिशा में सरकार को हर जरूरी कदम उठाना चाहिए। तभी जाकर उद्योगपति उत्तराखंड में उद्योग स्थापित करने को लेकर गंभीर होंगे। मतलब साफ है कि नियमावली को शिथिल करना होगा। अनुबंध के समय सरकार तो सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने का भरोसा देती है लेकिन बाद में अफसरों का अपना खेल शुरू होता है जिससे उद्योग स्थापित करने वाली उद्यमी परेशान हो जाता है और प्रदेश में उद्योग स्थापित करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। उत्तराखंड इन्वेस्टर्स समिट में आए करीब दो दर्जन से अधिक उद्योगपतियों ने प्रदेश में इसलिए उद्योग स्थापित करने में रुचि नहीं दिखाई क्योंकि अफसरशाही फाइलों में अड़ंगा डालते रहे। जिससे कुछ नामी गिरामी हस्तियों ने उत्तराखंड में उद्योग लगाने से साफ इंकार कर दिया। नियमों में जटिलता खत्म होनी चाहिए। तभी जाकर उत्तराखंड में निजी निवेश की संभावना है। अब रही बात सरकारी फंडिंग की तो इसके लिए सरकार को एक्टिव होना होगा। वैसे भी अर्थव्यवस्था यहां की काफी लचर है। ऐसे में विकास योजनाओं के लिए फंड उत्तराखंड सरकार कहां से लाएगी। केंद्र भी कितना मदद करेगा। उसकी भी अपनी सीमाएं हैं। लेकिन प्रदेश सरकार को फंडिंग के लिए भी नये सिरे से प्लानिंग करनी होगी। राजस्व बढ़ेगा तभी पैसे आएंगे और उसका पैसा योजनाओं पर खर्च हो सकेगा। अब भी केंद्र और राज्य सरकार की दो दर्जन से ज्यादा योजनाएं हैं जो पैसे के अभाव में काफी सुस्त गति से चल रही हैं।
बेशक, उत्तराखंड सरकार को अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसकी वजह से पर्यटन, कृषि, सिंचाई, आवास और समाज कल्याण की ढेर सारी योजनाएं समय पर संचालित नहीं हो पा रही हैं। इसके पीछे मूल कारण फंड का अभाव ही तो है। वैसे भी सरकार पर बाहरी कर्ज बढ़ रहा है। लेकिन सरकार को राजस्व बढ़ाने की दिशा में कार्य करने होंगे। उत्तराखंड में प्राकृतिक संसाधनों का भरमार है। बस, वैज्ञानिक तरीके से दोहन करने की आवश्यकता है। यदि शुरू में इन संसाधनों का उचित इस्तेमाल किया गया होता तो आज हालात बदतर नहीं होते, बल्कि काफी अच्छे होते। लेकिन, यदि वाकई उत्तराखंड को अन्य अग्रणी राज्यों की कतार में देखना है तो जड़ी-बूटियों का वैज्ञानिक दोहन शुरू कर देना चाहिए। पर्यटन और ऊर्जा में भी काफी संभावनाएं हैं। उत्तराखंड में चारधाम हैं जहां हर साल लाखों की संख्या में तीर्थयात्री केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री दर्शन करने के लिए आते हैं। इससे स्थानीय लोगों की भी आर्थिकी मजबूत होती है। इसके अलावा हेमकुंड साहब भी सिखों का पवित्र धर्म स्थल है। यहां भी लाखों की संख्या में तीर्थयात्री हर साल पहुंचते हैं। सरकार इन तीर्थयात्रियों को कुछ आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराये जिनकी वाकई तीर्थयात्रियों को जरूरत है।
पर्यटन से भी सरकार को काफी राजस्व मिलता है। राजस्व को और ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। यात्रा सीजन में काफी संख्या में विदेशी तीर्थ यात्री भी उत्तराखंड पहुंचते हैं। विशेष रूप से साहसिक पर्यटन का उत्तराखंड में काफी क्रेज है। साहसिक पर्यटन के बढ़ रहे क्रेज को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने साहसिक पर्यटन के लिए अलग से विंग तैयार करने का निर्णय लिया है। हालांकि, यह काम काफी पहले ही हो जाना चाहिए था लेकिन अब तक इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है। इसमें तेजी लाने की आवश्यकता है। ऊर्जा के क्षेत्र में भी उत्तराखंड में प्रचुर संभावनाएं हैं। यहां तो हालत यह है कि यदि तरीके से बिजली उत्पादन बढ़ाया जाए तो हमें अपने लिए बिजली किसी दूसरे पर आश्रित नहीं होना पड़ेगा। साथ ही, हम अन्य राज्यों को बिजली बेच सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, आय के साधन काफी हैं। बस प्रयास करने की कोशिश करनी होगी। निश्चित रूप से उत्तराखंड आने वाले दिनों और ज्यादा पुष्पित पल्लवित होगा। इसमें किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए।
…..मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से खास बातचीत
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने प्रदेश की सत्ता संभालते ही विकास के लिए चरणबद्ध तरीके से योजनाओं को धरातल पर उतारना शुरू किया। साढ़े तीन साल में काफी विकास हुआ है लेकिन यही शेष नहीं है। अभी तो बहुत कुछ करना है। इसी प्रयास में सरकार जुटी हुई है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने खुशहाल उत्तराखंड की कल्पना की है और हमारी सरकार उसी को साकार करने की कोशिश कर रही है। अतिथि देवो भवः यही तो उत्तराखंड की पहचान है। वैसे भी उत्तराखंड टूरिस्ट केंद्र है। देश-विदेश के पर्यटक उत्तराखंड में घूमने फिरने आते हैं। तीर्थ यात्री आते हैं। सरकार सभी को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करा रही है ताकि किसी को कोई परेशानी नहीं हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसा भी नहीं है कि सारी समस्याएं खत्म हो गई हंै। एक साथ समस्याओं का समाधान संभव नहीं है। हां, धीरे-धीरे समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार शार्ट और लांग टर्म योजनाओं को क्रियान्वित कर रही है। निश्चित रूप से इसके अच्छे परिणाम भी सामने आएंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि चिकित्सा, शिक्षा, ऊर्जा, पर्यटन और आयुष के क्षेत्रों में बड़ी प्लानिंग सरकार शुरू कर चुकी है। इसके सुखद परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं। थोड़ा धैर्य रखना होगा। सरकार ने जमीनी स्तर पर काम किए हैं। ये काम दिखेंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में भी काम शुरू कर दिया गया है। पलायन को रोकने की दिशा में भी बड़ा कदम उठाया गया है। पलायन आयोग का गठन किया गया है। साथ ही, पलायन रोकने के मकसद से पलायन आयोग ने जो भी सुझाव दिए हैं सरकार उस पर गंभीरता के साथ अमल कर रही है। कोविड-19 की वजह से काफी संख्या में प्रवासी उत्तराखंड लौटे हैं। इन सभी को रोजी रोटी मिले। सरकार इस दिशा में भी काम कर रही है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत इच्छुक लोगों को सरकार कर्ज भी उपलब्ध करा रही है। ताकि उत्तराखंड लौटे प्रवासियों को दो जून की रोजी-रोटी के लिए जहां तहां भटकना नहीं पड़े। सहकारिता सहित कई विभाग रुचि के मुताबिक प्रवासियों की मदद कर रहे हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार प्रदेश में ही लोगों को हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध करा रही है। जब सब कुछ उत्तराखंड में लोगों को मिलेगा तो वह आखिर क्यों प्रदेश छोड़ कर कहीं और भटकेगा। उन्होंने कहा कि कोरोना काल अभी खत्म नहीं हुआ है।
सीएम ने कहा कि लोगों को कोरोनाकाल में विशेष रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है। हां, यह सच है कि लोगों ने इस दरमियान संयम से काम लिया। आने वाले दिनों में भी कोरोना को लेकर विशेष रूप से चौकस रहने की आवश्यकता है। प्रवासियों में यहां रहकर काम करने का जुनून है। लोग कृषि कार्य भी तेजी के साथ कर रहे हैं। सरकार हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोषिष में जुटी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार का मूल ध्येय प्रदेश का विकास करना है। उत्तराखंड सभी का है। वर्षों से लोग उत्तराखंड में मिल जुल कर रहते हैं। भाई-चारे की सुंदर और अद्भुत मिसाल उत्तराखंड में ही देखने को मिलती है। एक साथ मिलकर रहना, यही उत्तराखंड की असली पहचान है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके कार्यकाल में कहीं भी भ्रष्टाचार देखने को नहीं मिला है और न ही भविष्य में मिलेगा। जीरो टॉलरेंस पर सरकार का फोकस है। सरकार जनहित में जो भी घोषणाएं कर रही है, उस पर पूरी तरह से पालन किया जा रहा है। आज दूरदराज के इलाकों में लोगों को चिकित्सा संबंधी सुविधाएं आसानी से मिल रही हैं। पहले लोगों को इलाज के लिए भटकना पड़ता था लेकिन अब नहीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे प्रदेश की सीमाएं नेपाल और तिब्बत से सटी हुई हैं। इसे लेकर भी उत्तराखंड सरकार अलर्ट है।