- मुस्लिम और यादव सदस्यों की संख्या गिरावट
- कायस्थों की संख्या में भी नहीं हुई बढ़ोतर
- वैश्य समुदाय की संख्या में बढ़ोतरी
पटना : बिहार में नयी सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में सोमवार को शपथ लेने जा रही है।इस साल हुए विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और एनडीए में सर्वाधिक सवर्ण विधायक चुनकर आए हैं।
यानि कि इस बार के चुनावों में सवर्ण विधायकों की संख्या में इजाफा हुआ है और खासकर भाजपा के विधायकों की संख्या को साल 2015 के 53 से 74 तक पहुंचाने में भी सवर्ण समुदाय का अहम योगदान है।विधानसभा के कुल 243 सदस्यों में से इसबार 64 सवर्ण चुनकर आए हैं और इनमें से 45 एनडीए से हैं, वहीं महागठबंधन में भी 17 सवर्ण जाति के विधायक जीते हैं। इन दोनों के अलावा लोजपा से भी एक सवर्ण उम्मीदवार ने जीत हासिल की है तो वहीं एक निर्दलीय विजयी उम्मीदवार भी सवर्ण है।जाति के आधार पर बात करें तो कुल 64 सवर्णों में 28 राजपूत, 21 भूमिहार, 12 ब्राह्मण और 3 कायस्थ हैं। इस तरह से अगर देखा जाए तो साल 2015 के विधानसभा चुनावों की तुलना में इस बार के चुनाव में सवर्णों का प्रदर्शन बेहतरीन रहा है। पिछली बार 52 सवर्ण एमएलए विधानसभा पहुंचे थे जबकि इस बार के चुनाव में 64 सवर्ण विधायक ज्यादा पहुंचे हैं।पिछले चुनाव में 20 राजपूत, 18 भूमिहार, 11 ब्राह्मण और तीन कायस्थों ने चुनाव जीता था। इस हिसाब से इस बार 8 राजपूत, 3 भूमिहार और एक ब्राह्मण एमएलए अधिक जीते हैं। वहीं कायस्थों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई।वे पिछली बार 3 थे तो इस बार भी 3 ही रहे।साल 2015 में 16 वैश्य एमएलए जीतकर आए थे लेकिन इस बार 24 वैश्य नेता जीत कर आए हैं।इस तरह 8 सदस्यों के इजाफे के साथ सवर्ण (64), यादव (52) और एससी/एसटी (40) सदस्यों के साथ ही इस साल 52 यादव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। लेकिन उनकी संख्या में कमी आई है। साल 2015 में 61 यादव एमएलए चुने गए थे। इसी तरह कुर्मी और कोइरी जाति के प्रतिनिधित्व में भी कमी आई है। खुद सीएम नीतीश कुमार भी कुर्मी समुदाय से हैं और इस साल यह संख्या 12 से घटकर नौ हुई है, वहीं कोइरी भी 20 से घटकर 16 हुए हैं।मुसलमानों की बात करें तो असद्दुदीन ओवैसी की एआईएमआईएम के पांच मुस्लिम एमएलए इसबार जीते हैं, इसके बाद बावजूद पिछली विधानसभा की तुलना में इस बार मुस्लिम सदस्यों की संख्या 24 से घटकर 19 रह गई है।