हे कोरोना! तुम लोकतंत्र में क्या एकदम विश्वास नहीं रखते? तुम्हारी हरकतें तो कुछ ऐसी ही हैं! बिहार के लोगों ने तुम्हें चुनौती दे दी है। वह चुनावी रैलियों में हजारों-लाखों की संख्या में जुटें। उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर मास्क भी नहीं बांधा। 2 गज की दूरी भी नहीं रखी। अब कितनों को मारोगे! हत्यारे कोरोना!
कोरोना है कि मानता ही नहीं। हम धिक्कार चुके, दुत्कार चुके। सरेआम उसकी सड़क पर बेइज्जती कर चुके। हमारे स्वनाम धन्य केंद्रीय मंत्री ठहरे कोई अठावले जी, ‘कोरोना गो-कोरोना-गो’ के सड़क पर नारे लगवा चुके। उफ्! मेहमान की इतनी बेइज्जती! फिर भी वह वापस लौटने का नाम नहीं ले रहा। कितना बेशर्म है। हमने बेइज्जत भी किया। कोरोना देवी मानकर पूजा भी। यानी साम-दाम-दंड-भेद सारे दांव चला दिए। ताले में बंद किया। ताले खोलकर बाहर का रास्ता भी दिखाया। अब गिना भी रहे हैं। अनलॉक्ड फॉर, अनलॉक्ड फाइव! गिनती बढ़ रही है, लेकिन तुम हमारे स्वनाम धन्य जनसेवकों और प्रधान सेवकों की तरह झांसे पर झांसा दिए जा रहे हो। हम तुम्हारे सारे प्रोटोकॉल पूरे कर रहे हैं। प्रोटोकॉल यानी अदब मान रहे हैं। हर मुंह में मास्क यानी पट्टी बांधकर घूम रहे हैं। एक तरह से अपना मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे, फिर भी तुम अभी किसी को दबोच लेते हो, बड़ी बेरहमी से। तुम तो जंगली भेड़िए से भी खतरनाक हो। क्योंकि वह तो दिख जाता है, लेकिन तुम अदृश्य हो। आगे से आते हो, पीछे से आते हो। ठीक-ठीक कुछ नहीं पता। न तुम जाति देखते हो, न धर्म, कहीं भी घुस जाते हो। बड़े बेरहम हो, बड़े बेशर्म भी हो, ठीक हमारे चुनिंदा घाघ नेताओं की तरह।
लोकतंत्र में नेताओं और चुनाव का रिश्ता बहुत गहरा होता है। किसी लोकतंत्र के लिए चुनाव एक पवित्र पर्व होता है। तुम इस पर्व को भी चैपट करने में लगे हो। बिहार में चुनावी पर्व चल रहा है। छोटे से लेकर बड़े-बड़े नेता तक मतदाता ‘भगवानों’ को पटाने में लगे हैं। नाच कर, गाकर और स्वांग भरकर उन्हें जीतने में लगे हैं। वह 5 साल में सिर्फ एक बार पैर पड़ने आते हैं, तुम यह मौका भी छीन रहे हो। कोरोना प्रोटोकॉल का बहाना बनाकर नेता और उनके चंपू ढंग से पैर भी नहीं पकड़ पा रहे। लोकतंत्र का सारा मजा तुम किरकिरा कर रहे हो।
हे कोरोना! तुम लोकतंत्र में क्या एकदम विश्वास नहीं रखते? तुम्हारी हरकतें तो कुछ ऐसी ही हैं! बिहार के लोगों ने तुम्हें चुनौती दे दी है। वह चुनावी रैलियों में हजारों-लाखों की संख्या में जुटें। उन्होंने प्रोटोकॉल तोड़कर मास्क भी नहीं बांधा। 2 गज की दूरी भी नहीं रखी। अब कितनों को मारोगे! हत्यारे कोरोना!
लेकिन असली गुनाहगार कौन है? जो रैलियों में जुटे? या जिन्होंने पाखंडी उपदेश देकर भी भीड़ जोड़ी! इसका हिसाब हो सके तो कुछ तुम्हीं रख लेना। सजा तो असली मुजरिम को ही मिलनी चाहिए। अब तो हम यहां सबसे बड़ी अदालत पर भी पूरा भरोसा कहां कर पाते हैं? इसके तमाम किस्से हैं। सुनाने बैठें तो हो सकता है कि जज साहब इसे अवमानना मान लें। फिर तो हमारी खटिया खड़ी हो जाएगी। अब आला जजों की भी क्या गलती? वह तुम्हारी तरह अदृश्य तो हैं नहीं। देह-मांस धारी हंै। उनके आला परिवार हैं। परिवार की आला जरूरतें हैं, लेकिन निठल्ली सरकारें उन्हें इतना नामा नहीं देती। अब आला जज साहब का आला परिवार कान्हा जंगल में शेर देखना चाहे तो देखेगा ही। अब कान्हा पैदल तो जाएगा नहीं? सवाल प्रोटोकॉल का है। उन्होंने मुफ्तिया हेलीकॉप्टर मांगा तो मुख्यमंत्री का फर्ज बनता है कि चैपाया देखने के लिए चॉपर दे दें। अब वह उसी चैपर से अपने संतरापुर चले गए तो क्या? यह भी कोई भ्रष्टाचार हुआ? नहीं-नहीं! कोरोना जी! आप तो जानते हैं कि यह सिर्फ प्रोटोकॉल का मामला है। मतलब साफ है, तू मेरा ख्याल रख, मैं तेरा रहूंगा। यह जगत फार्मूला है। लेकिन हमारे यहां प्रशांत भूषण नाम के एक वकील हैं, जो हर बात पर हल्ला मचा देते हैं। अब जज साहब का एक प्रोटोकॉल है। वह हर बात पर अवमानना का मामला तो ठोक नहीं सकते, लेकिन यह उस्ताद वकील साहब अंदर की बात बाहर कर देते हैं। जज साहबानों की ईमानदारी पर शंका का प्रोटोकॉल खड़ा कर देते हैं, यह तो भारी नाइंसाफी हुई?
चुनावी दौर में आकाशवाणी और राष्ट्र के नाम कोई संदेश ना आए? यह कैसे हो सकता है। गनीमत है कि रात 8 बजे नहीं आए, क्योंकि इससे डर ज्यादा फैलता है। सुबह 6 बजे आए। बोल गए ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’। कोरोना जी, कान खोल कर सुन लो वह तुम्हारे बारे में ही राष्ट्र को आगाह करने आए थे। यानी हर मुंह में मास्क और 2 गज की दूरी। कुछ दिन बाद ही उनकी चुनावी महारैलियां हुईं। लोग जुटे। न मास्क, न दो गज की दूरी। पर वह कुछ नहीं बोले। क्योंकि सियासी रोजी-रोटी का सवाल है। वैसे भी कोरोना जी, हमारे यहां पर ‘उपदेश कुशल बहुतेरे’ की पुरानी रीति है। यह भी हमारा पाखंडी प्रोटोकॉल है। सो विनती है कि आप हमारी सजा आम बिहारियों को ना दें। वे तो कर्मठ हैं। हां, निठल्लों के बहकावे में कभी कभी आ जाते हैं। कोरोना जी! आप तो अपने देश चीन लौटो, हमें यहां हमारे सियासी कोरोनाओं के भरोसे छोड़ जाओ।