नयी दिल्ली: केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान से फार्मर फर्स्ट परियोजना के अंतर्गत जुड़े हल्दी किसानों की कहानी पूरी तरह से अलग है। कोरोना के कारण, कच्ची हल्दी की मांग बढ़ रही है और इसकी कीमत 50 रुपये से 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ गई है, जबकि पिछले साल किसानों ने इसी हल्दी को 15-20 रुपये प्रति किलोग्राम बेचा था। फार्मर फर्स्ट प्रोजेक्ट (एफएफपी) के तहत किसानों की आय को दोगुना करने के लिए आम के बागों में पेड़ों के बीच में उपलब्ध जमीन पर खेती करके आय बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। एफएफपी के तहत आम के बागों में हल्दी और जिमीकंद की जैविक खेती को लोकप्रिय बनाया गया है। तीन साल पहले, मलिहाबाद के मोहम्मदनगर तालुकेदार और नबीपनाह गाँवों के 20 किसानों को हल्दी की नरेंद्र देव हल्दी -2 किस्म के बीज उपलब्ध कराए गए थे। किसानों ने सफलतापूर्वक प्रति एकड़ 40-45 हल्दी का उत्पादन किया। दिलचस्प तथ्य यह है कि इसकी पत्तियों को जानवरों द्वारा क्षति नहीं होती है, इसलिए फसल मवेशी, नीलगाय, बंदर आदि से सुरक्षित है। मुख्य अन्वेषक डॉ मनीष मिश्रा ने बताया कि हल्दी को भारतीय गोल्डन केसर के नाम से जाना जाता है जो पौष्टिक तत्वों से भरपूर है। एंटी आॅक्सीडेंट, एंटी बायोटिक और एंटी वायरल गुणों के कारण कोरोना काल ने कच्ची हल्दी को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया। नरेंद्र देव हल्दी-2 में करक्यूमिन की पांच प्रतिशत मात्रा होती है, जो शरीर से फ्री रेडिकल्स को हटाकर कई बीमारियों से बचाता है। सर्दी-खांसी, श्वास-संबंधी रोग, ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण या संबंधित रोगों, वायरल बुखार जैसी कई समस्याओं से हल्दी के प्रयोग से बचा जा सकता है।