- कर्तव्य भूल कर अपनी ही जाल में फंस रहा ‘गोदी’ मीडिया
अमरेंद्र कुमार राय
नई दिल्ली: पत्रकारिता आजकल बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रही है। इसकी साख इतनी गिर चुकी है कि ज्यादातर लोग अब इस पर भरोसा नहीं कर रहे। निराश होकर बड़ी संख्या में लोगों ने अखबार मंगाना बंद कर दिया है और टीवी पर भी खबरें देखनी बंद कर दी हैं। टीवी वे तभी खोलते हैं जब उन्हें इंटरटेनमेंट देखना होता है। जिससे पूछो यही कहता है क्या देखें, खबरें होती नहीं। मीडिया एजेंडा चला रहा है। सत्ता पक्ष का गुणगान करने से ही उसे फुरसत नहीं है। जबकि मीडिया का काम सरकार की कमियों की ओर उसका ध्यान दिलाने का है। तारीफ के लिए तो खुद सरकार के पास अपने बहुत से माध्यम हैं, जिनमें टीवी से लेकर प्रिंट और रेडियो तक शामिल हैं। अब तो वह भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती है।
आखिर मीडिया की ऐसी स्थिति कैसी बनी? इसका जिम्मेदार कौन है? आप जानते हैं कि आजादी की लड़ाई के दौरान मीडिया ने शानदार भूमिका निभाई। आजादी के बाद के वर्षों में भी उसने शानदार काम किया और सरकार को सचेत करने की भूमिका का निर्वाह बखूबी किया। यहां तक कि आपातकाल में भी कुछ संस्थानों और पत्रकारों ने घुटने नहीं टेके। इसी वजह से गणेश शंकर विद्यार्थी से लेकर कुलदीप नैय्यर, वीजी वर्गीज, अरूण शौरी आदि का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। लेकिन 2014 के बाद से मीडिया के लोगों ने जिस तरह की पत्रकारिता की है, उसने अपने पूर्वजों के किए नेक कर्मों को धो दिया। जो मीडिया सम्मानित नामों से जाना जाता था वो आज अर्नब गोस्वामी, सुधीर चैधरी, अंजना ओम कश्यप के नाम से जाना जाने लगा। मीडिया ने इस दौरान मनगढ़ंत, तोड़-मरोड़ कर, सही की जगह गलत मुद्दे उठाकर इतनी खबरें चलाईं कि लोगों का मीडिया पर से विश्वास ही उठ गया। कभी नोट में चिप लगवा दिया तो कभी बालकोट में मरने वाले 300 आतंकवादी गिन कर आ गये। कभी कन्हैया कुमार से देश के टुकड़े-टुकड़े करवा दिए तो कभी सुशांत सिंह राजपूत की खबर को महीनों दिखाया। जबकि नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन, मजदूरों का पलायन, रोजगार, महंगाई आदि मुद्दों की तरफ देखा तक नहीं।
सरकारी पक्ष में ऊल-जलूल बातें गढ़कर अभियान चलाया। कोरोना फैलने के मामले में तो मरकज को इस कदर दोषी ठहराया कि लगने लगा कोरोना चीन से नहीं दिल्ली में बैठे मरकजिये फैला रहे हैं। मुंबई हाई कोर्ट ने इस पर मीडिया को कड़ी फटकार लगाई और सरकार को भी नहीं बख्शा। यहां तक कहा कि ये अपूरणीय क्षति है और सरकार को इसकी भरपाई के लिए कदम उठाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है और कहा कि इन दिनों सबसे ज्यादा अभिव्यक्ति की आजादी का ही दुरुपयोग किया गया है। उसी मरकज वाले मामले की सुनवाई करते हुए माननीय न्यायाधीशों ने सरकार के रवैये पर भी कड़ी नाराजगी जताई और उसे इसे गंभीरता से लेने को कहा। मतलब ये कि जहां मीडिया ने गलत किया है, उस पर कार्रवाई करने का दबाव बनाया है। लेकिन सरकार इस पक्ष में नहीं है। क्योंकि मीडिया ने उसी के पक्ष में झूठा अभियान चलाया। अब ऐसे में वह मीडिया के खिलाफ कैसे कठोर कदम उठा सकती है। ये बात अलग है कि सरकार की आलोचना करने वालों को उसने तेजी से सबक सिखाया है। कुछ को सीधे पकड़ा तो कुछ को दूसरे मामलों में। पर जानते सब हैं कि सजा क्यों पा रहे हैं। सजा पाने वालों में अनजान नाम तो सैकड़ों हैं, नामी लोगों में विनोद दुआ से लेकर सिद्धार्थ वरदराजन तक शामिल हैं। मीडिया का यह रवैया देखकर ही हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने किसानों की एक सभा में कहा कि अगर देश में निष्पक्ष मीडिया हो जाए तो वे मोदी सरकार को कभी भी गिरा सकते हैं।
इस समय देश में केंद्र और ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं। चूंकि मीडिया इस समय बीजेपी और केंद्र सरकार के पक्ष में काम कर रहा है, इसलिए वो तो इसकी भूमिका से खुश हैं। जबकि, बाकी विपक्ष नाराज है। पर वह कुछ कर नहीं पा रहा था। क्योंकि केंद्र सरकार तुरंत ऐसे लोगों के बचाव में आ खड़ी हो रही थी। अर्नब गोस्वामी का मामला सबके सामने है। लेकिन मरकज मामले में मुंबई हाई कोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट के रुख के बाद जिन राज्यों में विपक्षी सरकारें हैं, उन्हें एक बार फिर से मौका मिल गया है। उदाहरण के लिए बिहार चुनावों में सत्ताधारी बीजेपी और नीतीश कुमार को लाभ पहुंचाने के लिए मीडिया ने सुशांत कुमार की मौत के मामले को दो महीने से भी ज्यादा समय तक चलाया। उनकी आत्महत्या को हत्या में बदलने की पूरी कोशिश की। इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र पुलिस के साथ ही महाराष्ट्र सरकार को भी बदनाम किया। अब जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की रिपोर्ट आ गई है और यह साबित हो गया है कि सुशांत राजपूत की हत्या नहीं हुई, बल्कि उन्होंने आत्महत्या की तो मुंबई पुलिस ने कहा है कि वह इस मामले में झूठा अभियान चलाने वाले पत्रकारों की पहचान करेगा और कार्रवाई करेगा।
महाराष्ट्र पुलिस का कहना है कि पुलिस और महाराष्ट्र सरकार को बदनाम करने के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर पर 80 हजार से एक लाख के बीच एकाउंट खोले गए और अब बंद किए जा रहे हैं। अगर ये बात सच है तो इसमें बहुत सारे पत्रकार भी फंसेंगे जो केंद्र सरकार के पक्ष में छुप कर अभियान चला रहे थे। यह भी संभव है कि इसमें बीजेपी आईटी सेल के लोग भी बड़ी तादाद में फंसे। बीजेपी आईटी सेल में भी पत्रकारों की तादाद अच्छी-खासी है। महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान में तो पुलिस ने आजतक के पत्रकार के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली है। उसका कहना है कि इन्होंने आजतक पर कांग्रेस के तब के बागी नेता सचिन पायलट के साथी विधायकों के टेलीफोन टेप करने की झूठी खबरें चलाकर अफवाह फैलाई।
महाराष्ट्र और राजस्थान में पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी से पत्रकार जगत में हड़कंप है। दरअसल, पत्रकारों की स्थिति आतंक पीड़ित जगहों के आम लोगों जैसी हो गई है। वहां पर उन लोगों को एक तरफ आतंकवादी धमकाते हैं कि उनका साथ दो और दूसरी तरफ सरकार उन्हें धमकाती है कि सरकार की मदद करो और आतंकवादियों की जानकारी दो। आम लोग दोनों के बीच पिस जाते हैं। आतंकवादियों की सुनते हैं तो सरकार की नाराजगी मोल लेते हैं और सरकार की सुनते हैं तो आतंकवादियों की गोली का निशाना बन जाते हैं। पत्रकारों के साथ भी अब वही स्थिति पैदा हो गई है। पहले तो वे केंद्र और बीजेपी का साथ देकर अपने आप को बचा लेते थे लेकिन अब दूसरी तरफ से भी कार्रवाई शुरू हो गई है। अब अगर वे केंद्र के पक्ष में अभियान चलाते हैं तो जिन राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं वो उन्हें पकड़ेंगी और उनकी सुनेंगे तो केंद्र और बीजेपी के लोग नाराज होंगे।
दरअसल, इस स्थिति के लिए खुद पत्रकार ही जिम्मेदार हैं। अगर उन्होंने अपना फर्ज निभाया होता तो ये स्थिति नहीं आती। सरकार चाहे कोई भी हो वह तो चाहती ही है कि मीडिया उसके पक्ष में काम करे। पर मीडिया को किसी का पक्ष लेने की बजाय अपना ध्रर्म निभाना चाहिए। पहले मीडिया ऐसा ही करती रही है। इसीलिए उसकी साख भी बची रही और बेजा कार्रवाई भी नहीं हुई। लेकिन खासकर 2014 के बाद सरकार के पक्ष में मीडिया इस तरह बिछी की वह आम आदमी से लेकर कोर्ट तक को खटकने लगी। जिस मीडिया को पहले अनुशासन सिखाने के बारे में कहते हुए लोग घबराते थे, अब खुलेआम कहा जाने लगा है कि अगर मीडिया अपनी सीमाएं लांघ रहा है तो उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए। ये स्थिति मीडिया के खुद के कर्मों की वजह से आई है। मीडिया ने सत्ता पक्ष की चमचागिरी के लिए जिस बबूल के पेड़ को लगाया, अब उस पर फल आने शुरू हो गए हैं।