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रोटी

बुढ़ापा जवानी नहीं लाता, जवानी बचपन नहीं लाती

एडवोकेट किशन भावनानी  गोंदिया । कुदरत द्वारा बनाई इस अनमोल सृष्टि में मानवीय जीवन की रफ्तार इतनी तेज़ हो गई है कि सुबह से शाम तो क्या बचपन से पचपन तक कैसे पहुंच गए पता ही नहीं चलता, वर्तमान परिपेक्ष में बढ़ती जीवन चक्र की प्रक्रिया में संघर्षों, खुशियों, दुखों, रोजी-रोटी, घर परिवार, सांसारिक…
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