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‘चलैं, रामपाल!’ टी-शर्ट शर्मिंदा थी और पैंट बेहद डरी हुई!

सुशील उपाध्याय बस में बमुश्किल सात-आठ सवारी थीं। मेरे सवार होने से एक नंबर और बढ़ गया। खिड़की पर पांव रखा ही था कि ड्राइवर ने लगभग चेतावनी भरे अंदाज में कहा, जल्दी वाले न बैठें। बस अपनी रफ्तार से चलेगी। हालांकि, मेरे दिमाग में ये सवाल था ही नहीं, फिर भी ड्राइवर ने अग्रिम चेतावनी देकर मेरी उस…
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