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satires

विष्णु नागर के तीन व्यंग्य

पीतल का मुकुट उस राज में चोरों की जबरदस्त धूम थी। चोरी से अधिक सम्मानजनक पेशा उस राज में दूसरा नहीं था। हर समर्थ, चोरी करने के किसी न किसी मोर्चे पर, कहीं न कहीं वालंटियर की भूमिका में दिन-रात डटा रहता था। हर बड़ा चोर उससे भी बड़ा चोर बनने की दिशा में निरंतर अग्रसर था। राजा जिस सीमा तक चोरों…
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विष्णु नागर के दो व्यंग्य

विडंबना एक गधा था‌। इसे विधि की विडंबना कहिए या कुछ और कि उसके दो पैर और दो हाथ थे। इस कारण गधे उसे गधा नहीं मानते थे और आदमी उसे आदमी नहीं। दोनों तरफ से उसे लात पड़ती। इधर से लात पड़ती, तो उधर जाता और उधर से पड़ती, तो इधर आता। और जाए भी कहां? वह गधों से कहता कि मेरे दो हाथ, दो पैर हैं, तो…
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विष्णु नागर के तीन व्यंग्य

1. उसे सब चाहिए उसे सब चाहिए। सब यानी सब। जो दुनिया में है, वह भी और जो नहीं है, वह भी। आकाश में सूर्य उसकी इजाजत से, उसकी सुविधा से निकले और डूबे, यह भी चाहिए। पक्षी कब और कितना चहचहाएँ, कब भैंस पानी में जाए और कब और कितनी देर तक मुर्गी बाँग दे, इसका निर्णय करने का अधिकार भी उसे चाहिए। उसकी…
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राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य

1. हिंदू खतरे में हैं ! अब सेकुलर वाले क्या कहेंगे? क्या हिंदू अब भी खतरे में नहीं है? क्या हिंदुओं के खतरे में होने बात सिर्फ अफवाह है, जो हिंदुओं के खतरे में होने की दुकान चलाने वालों ने फैलायी है? अगर हिंदुओं के खतरे में होने की बात कोरी गप्प है, तो वह क्या है जो हाथरस में भोले बाबा के…
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राजेंद्र शर्मा के तीन लघु व्यंग्य

1. पर इस्तीफा कभी नहीं यह तो विरोधियों की घनघोर टाइप की ज्यादती है। पहले इसकी रट लगा रखी थी कि नीट परीक्षा में गड़बड़–घोटाले के लिए नैतिक जिम्मेदारी लो। शिक्षा मंत्री ले‚ एनटीए के निदेशक ले‚ कोई तो नैतिक जिम्मेदारी लो। और अब जब धर्मेंद्र प्रधान जी ने नैतिक जिम्मेदारी मान ली है‚ तो भाई लोगों…
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विष्णु नागर के दो व्यंग्य

1. कैमराजीवी किसी युग में एक कैमराजीवी हुआ करता था। इतिहास की पुस्तकों में उसका नाम ठीक -ठीक नहीं मिलता, मगर इतना अवश्य ज्ञात होता है कि उसके नाम के अंत में इन्द्र जैसा कोई शब्द था। सुरेन्द्र, धनेन्द्र, सत्येन्द्र, धर्मेन्द्र, वीरेन्द्र या नरेन्द्र टाइप कुछ था। वैसे उसका सबसे प्रचलित नाम…
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राजेंद्र शर्मा के दो लघु व्यंग्य

1. दुहाई राम जी दुहाई! राम जी ये आपने बिल्कुल भी ठीक नहीं किया। बताइए, अपनी नगरी में ही अपने ध्वजाधारियों को हरवा दिया। बात सिर्फ किसी लल्लू सिंह की हार-जीत की होती, तो चलो आपकी दिल्लगी समझ कर दिल को समझा भी लेते। पर खुद मोदी जी का फोटो हर जगह मैदान में था, आपने फिर भी हरवा दिया। आप को पता भी…
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राजेंद्र शर्मा के दो लघु व्यंग्य

1. अब की बार नरेंद्रावतार! हम तो पहले ही कह रहे थे कि अब और इंतजार क्यों करना? नरेंद्र मोदी जी को अवतार घोषित कर देना चाहिए। सच तो यह है कि जब मोदी जी ने उंगली पकड़ाकर, राम लला को अयोध्या में उनके घर पहुंचा दिया, उसके बाद भी उन्हें अवतार घोषित नहीं करना तो बाकायदा उल्टा भी पडऩे लगा था।…
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