खटाखट-खटाखट लोकतंत्र !
अपने लोकतंत्र का चुनावी पर्व सम्पन्न हो चुका है। दो महीने से जारी चुनावी ड्रामा कुछ थमा है। कुछ महीनों में ही राजनीतिक थुक्का-फजीहत के नए रिकॉर्ड बना दिए हैं। इस बार खटाखट और फटाफट फार्मूले की नयी राजनीतिक शैली की खोज हुई है। पहले के पप्पू नेता अब बप्पा के भी आ ताऊ लगे हैं...
वीरेंद्र सेंगर…
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