शिक्षा संस्थानों का भ्रष्टीकरण और पाठ्यक्रमों का सांप्रदायीकरण
आलेख : जवरीमल्ल पारख
आज जब मैं मुड़कर पांच दशक पहले के समय पर दृष्टि डालता हूं, तो इस बात को पहचानने में कोई गलती नहीं होती कि 1970 के आसपास के सालों में एक युवक के तौर पर जो स्वप्न हमने देखे थे, जो उम्मीदें पाली थीं, वे एक-एक कर खत्म हो चुकी हैं। ये स्वप्न, उम्मीदें और आकांक्षाएं युवा होती…
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