सुनो, आनंद, यौवन की पहली छवि में बुढ़ापा छिपा है!
सुशील उपाध्याय।
बुद्ध ने आनंद से कहा, बाहर कुछ भी नहीं है, सब कुछ भीतर घटित होता है। बाहर केवल परिणाम दिखता है। सुबह पिताजी को नहलाते वक्त अचानक लगा, बुद्ध कितना सही कहते हैं, सब कुछ सामने ही तो है, लेकिन स्वीकार कब कर पाते हैं! वक्त के साथ पिता की देह नाजुक होती जा रही है। पहले से ज्यादा…
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