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भद्र

भद्र से भौंड़े तक

सुशील उपाध्याय भाषा में नए शब्दों के गठन, पुराने शब्दों के प्रयोगबाह्य होने और शब्दों के नए अर्थ ग्रहण करने का सिलसिला लगातार जारी रहता है। यह क्रम विद्वानों और कम पढ़े-लिखे लोगों, दोनों के बीच समान रूप से चलता है। वैसे, अर्थ-परिवर्तन, उसके कारणों, परिवर्तन की दिशाओं और संभावनाओं पर भाषा विज्ञान…
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