बेपनाह उम्मीदें और बूढ़ी आंखों में बेबसी के आँसू
सुशील उपाध्याय
हरिद्वार बस स्टैंड पर अक्सर एक महिला मिल जाती है। 5 फीट से भी कम कद, इतनी पतली काया कि बमुश्किल 30-35 किलो वजन होगा। बरसों पुरानी धोती पहने, उसी का एक टुकड़ा सिर पर बांधे, बगल में एक पुराना थैला, जैसे बरसों की संचित पूंजी हो, लाठी के सहारे यहां से वहां आती-जाती और कभी-कभी एकदम किनारे…
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