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आलेख

आज के दौर में ट्रेड यूनियन आंदोलन और चुनौतियां

 संजय पराते आजादी के आंदोलन में ट्रेड यूनियनों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।वैसे तो वर्ष 1920 में आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की स्थापना के साथ हमारे देश में संगठित ट्रेड यूनियन आंदोलन की शुरूआत मानी जा सकती है, लेकिन इससे पहले 1908 की जुलाई में बाल गंगाधर तिलक को राजद्रोह के…
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भारतीय संविधान और हिंदुत्व के पैरोकारों की अंतहीन बेचैनी

सुभाष गाताडे लोकसभा चुनाव के प्रचार में कई भाजपा नेता संविधान बदलने के लिए बहुमत हासिल करने की बात दोहरा चुके हैं। उनके ये बयान नए नहीं हैं, बल्कि संघ परिवार के उनके पूर्वजों द्वारा भारतीय संविधान के प्रति समय-समय पर ज़ाहिर किए गए ऐतराज़ और इसे बदलने की इच्छा की तस्दीक करते हैं। कुछ तारीखें…
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सीएए पर गृह मंत्रालय का ‘पॉजि़टिव नैरेटिव’ झूठ और अर्द्ध-सत्य का घालमेल है

 सिद्धार्थ वरदराजन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के भेदभावपूर्ण होने के आरोपों का खंडन करने की कोशिश के तहत 12 मार्च को सवालों और जवाबों की एक सूची जारी की थी। यह दस्तावेज़ बेतुकेपन की मिसाल है। यह एक जैसे-तैसे तैयार किया दस्तावेज है, जिसमें असंभव दावे किए गए हैं और यह…
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सूरत मॉडल पे ही जा!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा भई, मोदी जी की ये बात हमारी समझ में तो नहीं आयी। बताइए, कामयाब सूरत मॉडल आने के बाद भी, बहनों और माताओं के मंगलसूत्र में ही अटके हुए हैं। नहीं, हम यह नहीं कह रहे हैं कि उन्हें इसका ख्याल कर के इस चक्कर से बचना चाहिए था कि सारी वफादारी के बावजूद, बेचारे चुनाव आयोग को…
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व्हाट एन आइडिया सरजी!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा आजमगढ़ वालों ने भी क्या नसीब पाया है! निरहुआ जी जैसी प्रतिभा को एक बार चुन ही नहीं चुके हैं, मोदी जी से ऐसी प्रतिभा को दोबारा चुनने का मौका भी झटक लाए हैं। हमें यकीन है कि वे 2019 वाली गलती हर्गिज नहीं दोहराएंगे और उन्हें चुनने का मौका हाथ से हर्गिज नहीं जाने देंगे।…
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बदलने भी दो यारो!

व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा ये विरोधी, मोदी जी का विरोध करने के लिए और कितने नीचे जाएंगे। बताइए, अब इसका भी विरोध कर रहे हैं कि दूरदर्शन समाचार का लोगो क्यों बदल दिया? और लोगो की लिखत बदली तो बदली, लोगो का रंग क्यों बदल दिया? और रंग भी बदला तो बदला, रंग लाल से बदलकर भगवा क्यों कर दिया? बताइए,…
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उच्च शिक्षा, तीन चुनौतियां, तीन समाधान

डाॅ. सुशील उपाध्याय उत्तराखंड में हायर एजुकेशन में तीन चुनौतियों की बात लंबे समय से की जाती रही है। वैसे, ये चुनौतियां केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि इन्हें किसी न किसी रूप में पूरे देश के संदर्भ में देखा और समझा जा सकता है। पहली चुनौती है, स्टूडेंट का कक्षा में ना आना। दूसरी, हर एक…
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मोदी की गारंटी : भाजपा की जगह मोदी, लोकतंत्र की जगह तानाशाही

आलेख : बादल सरोज मतदान की शुरुआत होने में जब महज पांच दिन बचे थे तब कहीं जाकर मौजूदा सत्ता पार्टी भाजपा ने अपना “चुनाव घोषणापत्र” जारी किया। उपभोक्ताओं को लुभाने वाली मार्केटिंग की शैली में लिखे चुस्त खोखले संवादों, अनुपलब्धियों और विफलताओं को शब्दजाल में गोल-गोल घुमाकर बनाई गयी भूलभुलैया में…
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हरित पृथ्वी : कल की सोच

डॉ रवि शरण दीक्षित भारतीय संस्कृति पृथ्वी को माता की तरह सम्मान देने की सोच रखी है। इस सम्मान की परिणिति यह भी बताती है की मातृभूमि हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है परंतु हमारे लालच को पूरा नहीं कर सकती है। वर्तमान समय में पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला एक वैश्विक कार्यक्रम है…
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बस सच की पर्देदारी है

राजेन्द्र शर्मा अठारहवीं लोकसभा के करीब पौने दो महीने लंबे चुनाव के पहले चरण का ही चुनाव प्रचार अभी थमा है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपनी चुनाव सभाओं में धर्म की दुहाई का सहारा लिए जाने की शिकायतों के चुनाव आयोग में ढेर लग चुके हैं। संक्षेप में इन शिकायतों का सार यही है कि प्रधानमंत्री,…
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