सरस्वती साधकों को तीर्थ बना है लेखक गांव!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
 मेरे साहित्यिक मित्र एवं देश के शिक्षा मंत्री व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के “लेखक गांव ‘”चलने के आग्रह को टाल नहीं सका।

ज्योतिष विद्वान पंडित रमेश सेमवाल इसका माध्यम बने और हम ब्रह्माकुमारीज केंद्र से ही सीधे लेखक गांव के लिए प्रस्थान कर गए।इससे पहले मैंने कभी प्रत्यक्ष रूप में इस गांव को देखा नही था,हालांकि बडे भाई डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने “लेखक गांव ” को लेकर मेरे सामने ‘देश के महान साहित्यकार एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लेखकों के प्रति सम्मान सोच को साकार करते हुए जो शब्द चित्र में उकेरे थे,उससे यह निश्चित हो गया था कि एक ऐसे लेखक गांव ने जन्म लिया है,जहां ज्ञान की देवी सरस्वती अपने पुत्रों के माध्यम से निर्बाध अपनी उपस्थिति का एहसास कराएगी।देहरादून से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देश में अपनी तरह के इस पहले ‘लेखक गांव’ का उद्घाटन बीते वर्ष 24 नवंबर को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उत्तराखंड के राज्यपाल ले जन गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। यहां तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य, कला और संस्कृति महोत्सव भी मनाया गया। उदघाटन समारोह में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी तथा लेखिका ममता कालिया जैसे अनेक दिग्गज भी आए थे ,वही 65 से अधिक देशों के लेखन, कला और संस्कृति से जुड़े लोग इस भव्य एवं दिव्य साहित्यिक महोत्सव में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल रहे। जिनमें साहित्यिक जिज्ञासु छात्रों की भी भागीदारी रही। देहरादून के जोलीग्रांट हवाई अड्डे के निकट सुरम्य हिमालयी क्षेत्र थानो में यह ‘लेखक गांव’ विकसित किया गया है, जहां
लेखकों,साहित्यकारों,पत्रकारों व विचारकों को अपनी कृतियों के सृजन के लिए  शांत एवं रचनाशील वातावरण सहजता से उपलब्ध है।मुझे याद है मेरे प्रेरक पद्मश्री कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर अपनी साहित्यिक रचनाओं को जन्म देने के लिए अक्सर मसूरी प्रवास करते थे,जहां मां सरस्वती की अनुभूति से उन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की।ऐसा ही सुखद वातावरण लेखक गांव में भी देखने को मिलता है।लेखक गांव के एक प्रवेश द्वार पर भगवान धन्वंतरि की विशाल अष्टधातु प्रतिमा और दूसरे प्रवेश द्वार पर भगवान नरसिंह का सुंदर कलात्मक मंदिर आगन्तुकों का मन मोह लेता है।लकड़ी की नक्काशी के साथ सुसज्जित किए गए मंदिर को मिलती विशाल वृक्ष की छांव मुसाफिर के कदम भी सहज ही रोक देती है।डॉ निशंक ने दिखाया कि इसी मंदिर परिसर में बनाये गए चबूतरे लेखकों के मन के आवेगों को गति देंगे और एक नए सृजन की राह बनेगी।मंदिर के शीर्ष की तरफ भगवान शिव का जलाभिषेक करती प्रकृति को साकार किया जा रहा है।
 लेखन, संस्कृति, प्रकृति और कला से जुड़े विषयों पर चर्चा एवं विचार—विमर्श के केंद्र बने इस “लेखक गांव” में नालन्दा पुस्तकालय जिसमे फ़िलहाल 50 हजार पुस्तकें सुसज्जित की गई है,के पठनीय वातावरण से हर कोई आकर्षित हो रहा है,वही पुस्तकालय के प्रथम तल पर भव्य ऑडिटोरियम जिसे रंग शाला भी कह सकते है मानकों के अनुरूप बनी है।महाकवि कालीदास, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी जैसी कालजयी हस्तियों का उल्लेख करते हुए लेखक गांव के जन्मदाता डॉ निशंक बताते है कि ‘हिमालय हमेशा उनकी प्रेरणा का केंद्र रहा है और इस धरती में कोई तो ऐसी बात है कि लोगों ने यहां से प्रेरणा लेकर दुनिया में अपना नाम किया।’उन्होंने लेखक गांव में पुस्तकालय के साथ -साथ ध्यान-योग केंद्र, हिमालयी संग्रहालय, संजीवनी रसोई, नक्षत्र वाटिका, ग्रह वाटिका भी दिखाई।वही जैन वाटिका में विभिन्न प्रजातियों के पौधों के इतिहास व परिचय के लिए बारकोड व्यवस्था की गई है।
 यहां बनाई गई लेखन कुटीर अनुपम है,इस कुटीर में रहकर लेखक अपनी सृजनशीलता को श्रेष्ठतम रूप दे सकते है और देश व समाज के लिए अच्छा साहित्य सामने ला सकते है।यह पूछने पर कि उन्हें लेखक गांव की प्रेरणा कहां से मिली तो डॉ निशंक ने बताया कि लेखक गांव की सोच का जन्म पूर्व प्रधानमंत्री  अटल बिहारी अटलजी के मन से हुआ था।अटल जी के मन में इस बात की बहुत पीड़ा थी कि इस देश में लेखकों का सम्मान नहीं है। यहां श्याम नारायण पांडे और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे लोगों की जीवन के अंतिम क्षणों में बहुत दुर्दशा हुई ।”लेखक गाँव” का उद्देश्य देश-दुनियाँ के उन विलक्षण,विद्वान साहित्यकारों, गीतकारों, कलाकारों को एक ठौेर यानि ठिकाना प्रदान करना है, जिनकी लेखनी ने अपने समय की कालजयी रचनाओं का सृजन कर आमजन के बीच लोकप्रियता हासिल की है।यह गांव हिंदी भाषा के वैश्विक प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर करेगा,ऐसा माना जा सकता है। अभी “लेखक गांव ” की निर्माणता गतिमान है,इसलिए इसकी पूर्ण रमणीकता का तभी सुखानन्द लिया जा सकता है,जब यह पूर्णता को प्राप्त हो,तब तक इसके लिए हम अपने सरस्वती पुत्र डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को शुभकामनाएं तो दे ही सकते है।ओर अंत मे काव्यात्मक रूप में लेखक गांव पर कुछ पंक्तियां,
देवभूमि की वादियों में
ग्राम थानों की क्यारियों में
लेखक गांव मेजबान बना है
सरस्वती साधको का
यहां एक तीर्थ बना है
निशंक स्वागत को आतुर रहते
लेखकों की सेवा में सेवक रहते
 धन्वंतरि तोरण द्वार खड़े है
भगवान नरसिंह के मंदिर सजे है
नवग्रह वाटिका में विराजित
नक्षत्रों की वाटिका सुसज्जित
वनस्पतियों का उपवन सजा है
लेखक गांव मेजबान बना है
गीत,कविता, ग़ज़ल महकी
शेर -ए -शायरी जमकर चहकती
कहानी,निबंध सब पास खड़े है
लघुकथा, व्यंग्य हर्षित बड़े है
नालंदा का फलक यहां है
रस्किन बांड की झलक यहां है
लेखक कुटीर विश्राम स्थली
पर लेखक को विश्राम कहां है
दुनिया भर से लेखक आए है
हिंदी का परचम लहराये है
शब्दो की गंगा बनकर निशंक
साहित्य भागीरथ सम्मान पाए है
यहां निकलेगा उम्मीदों का सूरज
शब्द सारथी गांव में आए है।
(लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के  मानद उपकुलपति एवं वरिष्ठ साहित्यकार है)

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