सत्यनारायण मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक
नई दिल्ली। मध्य पूर्व में ईरान और इजराइल के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक शांति के लिए एक गंभीर चुनौती बन रहा है। ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल क्षमता, परमाणु कार्यक्रम की प्रगति, और प्रॉक्सी युद्धों की रणनीति ने क्षेत्र को युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया है। लेकिन भारत की “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना—जो विश्व शांति, सह-अस्तित्व, और मानवता पर आधारित है—इस संकट में एक उम्मीद की किरण प्रस्तुत करती है। यह विशेष न्यूज़ स्टोरी नई दिल्ली के दृष्टिकोण से इस जटिल स्थिति का विश्लेषण करती है, जिसमें तथ्यों, सैन्य विशेषज्ञता, और शांति की अपील को शामिल किया गया है।
ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल ताकत: तकनीक और चुनौतियाँ
ईरान का बैलिस्टिक मिसाइल शस्त्रागार मध्य पूर्व में सबसे बड़ा माना जाता है, जिसमें सेजिल, खैबर-शिकन, और हाल ही में प्रदर्शित “कासिम बशीर” और “एतेमाद” जैसी मिसाइलें शामिल हैं। ये मिसाइलें 1,200 से 2,000 किलोमीटर की रेंज के साथ इजराइल को निशाना बनाने में सक्षम हैं। 5 मई 2025 को ईरान ने ठोस ईंधन आधारित “कासिम बशीर” का परीक्षण किया, जिसे ईरानी रक्षा मंत्रालय ने “रक्षा प्रणालियों को भेदने में सक्षम” बताया। सूत्रों के अनुसार, ईरान ने चीन से हजारों टन अमोनियम परक्लोरेट का आयात किया है, जो मिसाइल उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है।
हालांकि, ईरान की मिसाइलों की प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं। 1 अक्टूबर 2024 और 13 जून 2025 को ईरान द्वारा इजराइल पर दागी गई 100-181 मिसाइलों को इजराइल की आयरन डोम, डेविड्स स्लिंग, और एरो-3 रक्षा प्रणालियों ने लगभग पूरी तरह नष्ट कर दिया। ईरान की मिसाइलें संख्या में प्रभावशाली हैं, लेकिन उनकी सटीकता और इजराइल की उन्नत रक्षा प्रणालियों के सामने प्रभावशीलता सीमित है।
हमारा दृष्टिकोण: भारत, जिसने अपनी पृथ्वी और एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) मिसाइल रक्षा प्रणालियों का सफल परीक्षण किया है, क्षेत्रीय देशों को सैन्य तकनीक के बजाय रक्षा और शांति पर ध्यान देने की सलाह देता है।
परमाणु खतरा: अनिश्चितता के बादल
ईरान का परमाणु कार्यक्रम वैश्विक चिंता का केंद्र रहा है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की हालिया रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान ने हेमीस्फेरिकल इम्प्लोजन सिस्टम जैसे परीक्षण किए हैं, जो परमाणु हथियारों से संबंधित हो सकते हैं। इजराइल का दावा है कि ईरान के पास नौ परमाणु बम बनाने लायक यूरेनियम है। हालांकि, अमेरिकी खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने स्पष्ट किया था कि ईरान ने 2003 के बाद परमाणु हथियार कार्यक्रम को पुनर्जनन नहीं किया।
13 जून 2025 को इजराइल ने “ऑपरेशन राइजिंग लॉयन” में ईरान के नतांज़, फोर्डो, और अन्य परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिसमें कई वैज्ञानिक और कमांडर मारे गए। जवाब में, ईरान ने इजराइल पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए, लेकिन इनका प्रभाव न्यूनतम रहा। कई रक्षा विश्लेषक ने चेतावनी दी है कि “परमाणु हथियारों की दौड़ क्षेत्र को तबाही की ओर ले जा सकती है। भारत जैसे देशों को कूटनीति के जरिए इस खतरे को कम करने की पहल करनी चाहिए।”
भारत, जो स्वयं एक परमाणु शक्ति है, ने हमेशा परमाणु निरस्त्रीकरण और शांतिपूर्ण उपयोग की वकालत की है। भारत की “नो फर्स्ट यूज़” नीति एक उदाहरण है, जो क्षेत्रीय शक्तियों को संयम बरतने की प्रेरणा दे सकती है।
प्रॉक्सी युद्ध: क्षेत्रीय अस्थिरता का इंजन
ईरान की सैन्य रणनीति का आधार उसका प्रॉक्सी नेटवर्क है, जिसमें लेबनान का हिजबुल्लाह, यमन के हूती, और इराक व सीरिया के शिया मिलिशिया शामिल हैं। हाल ही में हूती विद्रोहियों ने इजराइल के बेन गुरियन हवाई अड्डे पर हमले किए, जिसे ईरान का अप्रत्यक्ष समर्थन माना गया। लेकिन लेबनान सरकार ने हिजबुल्लाह को चेतावनी दी है कि वह इजराइल के खिलाफ युद्ध में शामिल न हो, क्योंकि इससे क्षेत्रीय संकट गहरा सकता है। ईरान की प्रॉक्सी रणनीति उसे क्षेत्र में प्रभाव देती है, लेकिन यह सऊदी अरब और अन्य सुन्नी देशों के साथ तनाव को बढ़ाती है, जो अब इजराइल के साथ सहयोग कर रहे हैं। यह क्षेत्रीय ध्रुवीकरण शांति के लिए खतरा है।
भारत ने हमेशा क्षेत्रीय विवादों में तटस्थता और संवाद का रास्ता अपनाया है। ईरान और इजराइल दोनों के साथ भारत के मैत्रीपूर्ण संबंध इसे मध्यस्थता की भूमिका निभाने का अवसर देते हैं।
हालिया घटनाएँ: युद्ध की छाया
13 जून 2025 को इजराइल ने तेहरान, इस्फहान, और फोर्डो में ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर 200 फाइटर जेट्स के साथ हमला किया, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। जवाब में, ईरान ने 100-150 ड्रोन और मिसाइलों से इजराइल पर हमला किया, लेकिन आयरन डोम ने इनमें से अधिकांश को नष्ट कर दिया। यरुशलम में सात लोग घायल हुए, जबकि तेहरान में एक रिहायशी इमारत के ढहने से 60 लोग मारे गए, जिनमें 20 बच्चे शामिल थे।
इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया कि इन हमलों ने ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को “दशकों पीछे” धकेल दिया। वहीं, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने जवाबी कार्रवाई का संकल्प लिया। नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की।
शांति का आह्वान
भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना—जो विश्व एकता और मानवता पर आधारित है—इस संकट में एक वैकल्पिक रास्ता दिखाती है। भारत, जो ईरान से तेल आयात और इजराइल से रक्षा तकनीक का साझेदार है, दोनों देशों के साथ अपने संबंधों का उपयोग शांति संवाद को बढ़ावा देने के लिए कर सकता है। भारत की स्वदेशी मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ, जैसे पृथ्वी और AAD, न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करती हैं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक मॉडल भी प्रस्तुत करती हैं।
नई दिल्ली से अपील: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में कहा, “युद्ध और हिंसा से कोई विजेता नहीं निकलता। संवाद और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है।” भारत ने ईरान-इजराइल तनाव को कम करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन की मेजबानी की पेशकश की है, जिसमें परमाणु निरस्त्रीकरण और मिसाइल प्रसार पर चर्चा हो सकती है।
निष्कर्ष: शांति की ओर एक कदम
ईरान की मिसाइल तकनीक और प्रॉक्सी नेटवर्क उसे क्षेत्रीय शक्ति बनाते हैं, लेकिन इजराइल की उन्नत रक्षा प्रणालियाँ और वैश्विक समर्थन इसे नष्ट करना असंभव बनाते हैं। परमाणु खतरा अभी भी अनिश्चित है, लेकिन इसका प्रचार दोनों पक्षों द्वारा क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए इस्तेमाल हो रहा है। इस संकट में, भारत की “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना एक नया दृष्टिकोण देती है—संवाद, सहानुभूति, और सह-अस्तित्व।
नई दिल्ली से हमारा संदेश स्पष्ट है: युद्ध की आग को बुझाने के लिए सभी पक्षों को संयम बरतना होगा। भारत और वैश्विक समुदाय को मिलकर एक ऐसी दुनिया के लिए काम करना चाहिए, जहाँ शांति और समृद्धि सभी के लिए सुलभ हो।