असम में बाढ़ का तांडव: गुवाहाटी बन गया दूसरा वेनिस, लोगों की आपबीती बयां करती है त्रासदी

सत्यनारायण मिश्र, वरिष्ठ पत्रकार
असम में बरसात का कहर इस कदर बरपा है कि गुवाहाटी, जो राज्य की राजधानी दिसपुर को अपने दिल में समेटे हुए है, अब पानी का शहर बन चुका है। सड़कें नदियों में तब्दील हो गई हैं, और आधे से ज्यादा शहर में नावें तैर रही हैं। लाखों लोग पानी के बीच फंसे हैं, जहां न पीने को पानी है, न खाने को दाना। दफ्तरों और जरूरी कार्यस्थलों तक पहुंचना किसी जंग से कम नहीं। विभिन्न इलाकों के लोगों की मार्मिक कहानियों के आधार पर यह खास ग्राउंड स्टोरी असम की बाढ़ की भयावह तस्वीर को सामने लाती है।
गुवाहाटी: पानी में डूबा सपनों का शहर
गुवाहाटी के अनिल नगर, चांदमारी, हातीगांव, गणेशगुड़ी से लेकर तकरीबन 25 किमी दूर जोराबाट तक के अधिकांश इलाके पानी की कैद में हैं। सड़कों पर पानी घुटनों से लेकर सीने तक भरा है। अनिल नगर में 45 वर्षीय रमेश दास की आवाज में बेबसी साफ झलकती है। बोले “रातभर बारिश ने कहर बरपाया। सुबह उठे तो घर के बाहर सड़क गायब थी, बस पानी ही पानी। बच्चों को खाना तक नहीं दे पा रहे, दुकानें बंद हैं।” चांदमारी की 32 वर्षीय गृहिणी रीता शर्मा की आंखों में आंसुओं के साथ गुस्सा भी है, “पिछली रात घर में पानी घुस आया। रसोई का सारा सामान खराब हो गया। पीने के पानी का एक बूंद नहीं बचा। टैंकर का इंतजार है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं।” कई इलाकों में लोग नावों के सहारे बाजार तक पहुंचने की जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन नावों की कमी ने संकट को और गहरा दिया है।
रोजमर्रा की जिंदगी पर भारी पड़ता संकट
गुवाहाटी के दिल कहे जाने वाले जीएस रोड और आरजी बरुआ रोड अब पानी के हाईवे बन चुके हैं। गाड़ियां पानी में डूबी हैं, और ट्रैफिक जाम ने लोगों का धैर्य तोड़ दिया है। मेघालय की तरफ से आए एक टैक्सी ड्राइवर प्रदीप बरुआ (38) बताते हैं, “सुबह गाड़ी निकाली, लेकिन जोराबाट में फंस गया। ग्राहक तो दूर, खुद की जान बचाना मुश्किल हो रहा है।”
शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह ठप है। ज्यादातर स्कूल बंद हैं, और ऑनलाइन कक्षाएं अधिकांश इलाकों में बिजली और इंटरनेट की कमी के चलते संभव नहीं। मालीगांव में शिक्षिका अनुपमा डेका (40, बदला नाम) कहती हैं, “बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। स्कूल बसें नहीं चल रहीं, और बिजली की आंखमिचौली ने ऑनलाइन क्लास का रास्ता भी बंद कर दिया।”

कुछ इलाकों में एनडीआरएफ और असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) राहत कार्य में जुटे हैं, लेकिन लोगों का गुस्सा फूट रहा है। रुक्मिणी गांव के ज्योति बरमन (35) कहते हैं, “राहत सामग्री का वादा तो किया गया, लेकिन हमारे पास कुछ नहीं पहुंचा। क्या हमारा जीवन इतना सस्ता है?”
कामकाज पर लटकी तलवार
दफ्तरों और कार्यस्थलों तक पहुंचना अब सपना बन चुका है। उलुबाड़ी में एक सरकारी कर्मचारी संजय दत्ता (42, बदला नाम) बताते हैं, “मेरा दफ्तर पास ही है, लेकिन रास्ते में इतना पानी है कि ऑटो वाले मना कर रहे हैं।” निजी कंपनियों में भी हाल बेहाल है, क्योंकि कर्मचारी या तो फंसे हैं या संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं।
प्रशासन की कोशिशें: वादे और हकीकत
असम सरकार और जिला प्रशासन ने राहत कार्य शुरू किए हैं। आवास और शहरी मामलों के मंत्री जयंत मल्ल बरुआ ने गुवाहाटी के जलमग्न इलाकों का दौरा कर कहा, “मेघालय की पहाड़ियों से आने वाला पानी और खराब ड्रेनेज सिस्टम इस संकट की वजह हैं। हम पंपों से पानी निकाल रहे हैं।”
लेकिन स्थानीय लोग इससे संतुष्ट नहीं। अनिल नगर की रीमा बरुआ (30) कहती हैं, “हर साल यही कहानी। ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करने की बात तो होती है, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं बदलता।” गुवाहाटी हाई कोर्ट ने पिछले साल ड्रेनेज सिस्टम और अवैध निर्माण पर सख्ती बरतने की बात कही थी, लेकिन जमीनी हकीकत वही ढाक के तीन पात है। एक स्थानीय कार्यकर्ता, प्रणब गोस्वामी, कहते हैं, “शहर की नालियां अवैध निर्माण और कचरे से भरी हैं। बिना स्थायी समाधान के यह त्रासदी हर साल दोहराएगी।”
आने वाला खतरा
मौसम विभाग की चेतावनी ने लोगों की नींद उड़ा दी है। अगले कुछ दिनों तक भारी बारिश की आशंका है, और ब्रह्मपुत्र व इसकी सहायक नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
एक शहर की पुकार
गुवाहाटी और असम के अन्य हिस्सों में बाढ़ ने न सिर्फ जनजीवन को ठप किया है, बल्कि लोगों के सब्र का इम्तिहान भी ले रही है। पानी में डूबे घर, भूखे बच्चे, और बेबस परिवार इस त्रासदी की तस्वीर को और गहरा करते हैं। लोगों की आपबीती बताती है कि यह सिर्फ बारिश का कहर नहीं, बल्कि प्रशासनिक नाकामी का भी नतीजा है। असम के लोग अब सिर्फ राहत नहीं, बल्कि बाढ़ से निपटने के लिए स्थायी समाधान चाहते हैं। सवाल यह है कि क्या उनकी पुकार सुनी जाएगी, या यह त्रासदी हर मानसून में यूं ही दोहराती रहेगी?

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