जब राष्ट्रपति ने डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ से प्राप्त की वैदुष्मणि विद्योत्तमा!

रुड़की। महाकवि कालिदास की गुरु थी उनकी अर्धांगिनी विद्योत्तमा,इस तथ्य को मौनीबाबा के प्रोत्साहन पर वैदुष्मणि विद्योत्तमा पुस्तक की रचना करके महान शिक्षाविद एवं साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने सिद्ध कर दिखाया था।साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन ने बताया कि डॉ अरुण मानते थे कि कालिदास को महाकवि बनाने में विद्योत्तमा ने ही अहम भूमिका निभाई थी।उनकी इस पुस्तक से प्रभावित होकर देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर सम्मानित भी किया था।9 मई को डॉ अरुण के निधन से रुड़की को ही नही देश के साहित्य जगत को भारी क्षति हुई है।उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी की अमिट छाप छोड़ी है।दुनिया के 10 देशों में भारत सरकार की ओर से हिंदी साहित्य विषयक व्याख्यान दे चुके डॉ. अरुण को राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा सन 2008 में भाषा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कार मिला था।उन्हें केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा द्वारा भी 5 लाख रुपये का विवेकानंद सम्मान दिया गया था। उन्होंने हिंदी भाषा मे 40 से अधिक किताबें लिखीं। उन्होंने मैक्सिको, जापान, कनाडा ,अमेरिका, नेपाल, भूटान समेत विभिन्न देशों में व्याख्यान दिए। संस्कृत और हिंदी के बीच की भाषा प्राकृत अपभ्रंश में उन्होंने बौद्ध और जैन साहित्य पर उत्कृष्ट कार्य किया है। उन्हें नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में ट्रस्टी नियुक्त किया गया था।डॉ.अरुण ने बालगीत, गीत, ग़ज़ल, कहानी और संस्मरण सहित हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं को समृद्ध किया है। उनके चैतन्य चिंतन में व्यापकता और सृजन में मौलिकता रही । श्रीगोपाल नारसन के शब्दों में ,डॉ अरुण के गीतों में रागात्मकता है तो उनकी कहानियों में भावात्मकता भी परिलक्षित होती है। कथा के साथ भाषा और भावों का समन्वय इनके साहित्य का विशेष आकर्षण है। किसी भी साहित्यक विधा को श्रेष्ठ कृति के रूप में प्रस्तुत करने के लिए जिस कौशल की आवश्यकता होती है वह कौशल कालजयी एवं मध्यकालीन साहित्य में योगदान के लिए डॉ. योगेंद्र नाथ शर्मा में दिखाई देता था।

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