एक समावेशी पोप

(आलेख : एम ए बेबी, अनुवादक : संजय पराते)

कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च प्रमुख होने के बावजूद, दिवंगत पोप फ्रांसिस पूरी दुनिया के लिए एक आध्यात्मिक नेता के रूप में उभरे। वह एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व थे, जिन्होंने कैथोलिक चर्च की संस्था में कुछ लोगों के नियंत्रण के खिलाफ गौरतलब रुख अपनाया। बहरहाल, यह नहीं कहा जा सकता है कि इस तरह के हस्तक्षेपों ने कैथोलिक चर्च को पूरी तरह से बदल दिया है।

कैथोलिक सिद्धांत के कठोर ढांचे के भीतर ही, पोप फ्रांसिस ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के मानवाधिकारों के समर्थन में एक अत्यंत साहसी रुख अपनाया। उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि समलैंगिकता एक अपराध है। एसोसिएटेड प्रेस के साथ जनवरी 2023 के एक साक्षात्कार में, पोप फ्रांसिस ने कहा कि समलैंगिकता को अपराध बनाना ‘अन्यायपूर्ण’ है। पत्रकारों से बात करते हुए, उन्होंने आगे बताया कि “समलैंगिक होना कोई अपराध नहीं है।”

कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च नेता के लिए इस तरह के बयान देना पहले अकल्पनीय था। इससे भी ज़्यादा उल्लेखनीय बात यह थी कि उन्होंने इन स्पष्टीकरणों का संबंध भगवान से जोड़ा। उन्होंने अपनी टिप्पणियों को यह कहते हुए स्पष्ट किया कि “समलैंगिक प्रवृत्ति वाले लोग भगवान की संतान हैं। भगवान उनसे प्यार करते हैं। भगवान उनके साथ हैं … ऐसे व्यक्ति की निंदा करना पाप है।”

पोप फ्रांसिस द्वारा इतिहास में पहली बार वेटिकन सिटी के गवर्नर के रूप में एक नन को नियुक्त करने के निर्णय को धर्मों की सामान्य रूप से पुरुष-प्रधान प्रकृति के लिए उनकी चुनौती के रूप में देखा गया। सिस्टर राफैला पेट्रिनी को पोप फ्रांसिस ने कार्डिनल फर्नांडो वेरगेज़ अल्ज़ागा की जगह नियुक्त किया, जिन्होंने 80 साल पूरे कर लिए थे और इस पद से हट रहे थे। इस नियुक्ति को कैथोलिक चर्च के भीतर मौलिक परिवर्तनों की संभावना की एक साहसिक घोषणा के रूप में भी देखा गया।

हमारे समाज में अमीर और गरीब के बीच की खाई अक्सर पोप की तीखी आलोचना का विषय रही है। एक प्रेरणास्पद उपदेश में उन्होंने खुले तौर पर कहा : “ऐसा कैसे हो सकता है कि जब कोई बुजुर्ग बेघर व्यक्ति ठंड से मर जाता है, तो यह कोई खबर नहीं बनती, लेकिन जब शेयर बाजार में दो अंक की गिरावट आती है, तो यह खबर बन जाती है? यह बहिष्कार का मामला है। क्या हम तब भी चुप रह सकते हैं, जब लोग भूख से मर रहे हों और खाना फेंका जा रहा हो? यह असमानता का मामला है।” उनके बयानों की दुनिया भर में व्यापक चर्चा हुई।

उनका कहना था कि पूंजीवादी व्यवस्था असमानताओं को कायम रखती है और गरीबों को और हाशिए पर धकेलती है। उनके इस रुख ने काफी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा : “आज हमें बहिष्कार और असमानता की अर्थव्यवस्था को भी यह कहना होगा कि ‘तुम ऐसा नहीं करोगे’। ऐसी अर्थव्यवस्था जानलेवा होती है।” पोप फ्रांसिस ने एक ऐसी आर्थिक प्रणाली की आवश्यकता के बारे में बात की, जो लाभ के ऊपर मानवीय गरिमा को महत्व देती हो। उन्होंने कहा, “अकेला बाजार हर समस्या का समाधान नहीं कर सकता, फिर चाहे हमें नवउदारवादी आस्था के इस सिद्धांत पर कितना भी विश्वास करने के लिए क्यों न कहा जाए।”

पोप फ्रांसिस का यह अवलोकन कि अधिक संतुलित समाज बनाने के लिए आर्थिक प्रणालियों में संरचनात्मक परिवर्तन आवश्यक हैं, अत्यधिक महत्वपूर्ण था। शोषणकारी प्रणालियाँ किस तरह लाखों लोगों के जीवन को तबाह करती हैं, इस पर उनके दृष्टिकोण को उनके चिंतन पर लैटिन अमेरिकी मुक्ति धर्मशास्त्र के पड़ने वाले प्रभाव के प्रमाण के रूप में देखा गया। बहरहाल, इसके साथ ही, उनकी इस बात के लिए भी आलोचना हुई है कि अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में कार्डिनल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मुक्ति धर्मशास्त्र आंदोलन के साथ पर्याप्त संबंध बनाकर नहीं रखा था।

महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों और युद्धों के कारण होने वाली तबाही की पोप फ्रांसिस ने कड़ी आलोचना की। आतंकवाद से लड़ने के बहाने युद्ध छेड़ने की उन्होंने निंदा की। उनका मानना था कि ये युद्ध आतंक फैलाते हैं। उनकी यह निंदा अमेरिकी साम्राज्यवाद, उनकी सैन्य रणनीतियों और फिलिस्तीन पर इजरायल के कब्जे और उनकी मौत की मशीनरी के लिए एक सीधी चुनौती थी। उन्होंने अधिकांश पश्चिमी राजनीतिक नेताओं के रुख के विपरीत, गाजा पर इजरायल के युद्ध की आतंकवाद के रूप में निर्भीकता से निंदा की।

पोप फ्रांसिस ने पर्यावरण विनाश के खिलाफ बहुत कड़ा रुख अपनाया। पृथ्वी के संदर्भ में ‘हमारा साझा घर’ वाक्यांश, उनके द्वारा रोमन कैथोलिक बात शापों को लिखे गए पत्र ‘लौदातो सी’ में एक केंद्रीय विषय था। इसने सभी लोगों के साथ पृथ्वी के परस्पर संबंधों पर जोर देते हुए इस ग्रह की देखभाल और प्रबंधन का आह्वान किया। अपने विश्वव्यापी पत्र के माध्यम से उन्होंने व्यक्तियों, समुदायों और सरकारों से जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए कार्रवाई करने का आग्रह किया। इसने ग्रह और इसकी जैव विविधता को संरक्षित करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला और इस बात पर जोर दिया कि यह एक साझा जिम्मेदारी है।

दिवंगत पोप ने विभिन्न धर्मों के साथ संवाद करने में विशेष रुचि ली। उन्होंने ऐसे संवादों को विश्व शांति सुनिश्चित करने की बुनियाद माना। उनका मानना था कि वैश्विक संघर्षों को संबोधित करने और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न धर्मों के बीच सहयोग महत्वपूर्ण है। इस्लाम, यहूदी धर्म और अन्य धर्मों के नेताओं के साथ उनकी बैठकें विभिन्न समुदायों के बीच पुल बनाने की उनकी प्रतिबद्धता का उदाहरण थीं। यूएई और इराक की उनकी यात्राएँ और उनके संबंध में जारी किए गए बयान ऐतिहासिक थे। उन्होंने श्री नारायण गुरु की शिक्षाओं के बारे में भी बात की।

आधुनिक इतिहास में कोई दूसरा धार्मिक नेता नहीं है, जिसने अपने समय और दुनिया के प्रति इतनी तीव्रता और साहस के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की हो। यही कारण है कि दिसंबर 2013 में ही प्रोफेसर प्रभात पटनायक ने सीपीआई(एम) की पत्रिका ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ में ‘पूंजीवाद पर पोप फ्रांसिस’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था। उन्होंने मलयालम में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘चिंता’ में भी पोप फ्रांसिस के सराहनीय रुखों के बारे में लिखा था।

अन्यायपूर्ण युद्धों, उत्पीड़न और रक्तपात से त्रस्त दुनिया में, मानवता, सह-अस्तित्व और सामाजिक न्याय के लिए खड़े होने वालों की आवाज़ें कम होती जा रही हैं। यही कारण है कि पोप फ्रांसिस की मृत्यु ने एक गहरा शून्य पैदा कर दिया है। साथ ही, उनकी स्मृति उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो भाईचारे, समानता और न्याय पर आधारित दुनिया बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

(‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ से साभार। लेखक भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नवनिर्वाचित महासचिव हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)

Leave a Reply