पत्रकारों पर हमले व हत्या लोकतंत्र के लिए घातक

अंकित तिवारी

पत्रकारों पर हमले व हत्या किसी भी देश में लोकतंत्र के लिए घातक है। दुनिया के कई देशों में इस तरह की वारदातें खतरनाक संकेत दे रही हैं। सभ्य लोकतांत्रिक समाज में इस बात को लेकर गहरी चिंता व्याप्त है। भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में दैनिक जागरण के पत्रकार राघवेंद्र वाजपेई की हाल में ही हुई हत्या के बाद एक बार फिर से भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर बहस छिड़ गई है। बढ़ते वैश्विक प्रयासों के बावजूद पत्रकारिता करने वालों पर एक खतरनाक लगातार मंडराता रहता है । हाल के वर्षों में पत्रकार द्वारा सूचना या सूचना के प्रवाह को बनाए रखने में निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका बड़े जोखिम का काम हो गया है। दुनिया भर में पत्रकारों को उत्पीड़न, हिंसा या मौत का सामना करना पड़ता है। पत्रकार केवल अपना काम कर रहे जिसके लिए अनावश्यक दुश्मनी मोल लेनी पड़ रही है।

यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार 10 में से नौ बार पत्रकारों की हत्या का मामला अनसुलझा रह जाता है । पत्रकारों के खिलाफ ऑनलाइन व अन्य प्रत्यक्ष खतरे लगातार बढ़ रहे हैं जबकि ऑनलाइन हिंसा और उत्पीड़न के कारण कई बार काम छोड़ना तक पड़ जा रहा है या गंभीर मामलों पर रिपोर्टिंग भयवश नहीं कर पाय हैं। कुछ मामलों में शारीरिक हमले भी बढ़ रहे हैं सन 2016 से 2020 के अंत तक यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया की दुनिया में 400 पत्रकारों की हत्याएं दर्ज की गईं जो पिछले 5 साल की अवधि से लगभग 20% कम है। वर्ष 2021 में भी गिरावट का सिलसिला जारी रहा जब 55 पत्रकारों की हत्या हुई । इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि पत्रकारों की हत्या के लिए दंड से बचने की वैश्विक दर चिंताजनक रूप से उच्च है 10 में से 9 बार मामला अनसुलझा रहता है । जहां पत्रकार की हत्याओं की संख्या अधिक है वहां इन हत्याओं के लिए दंड से बच निकलने की दर भी अधिक है जिससे हिंसा का चक्र निरंतर चलता रहता है । गंभीर बात यह है कि प्रशासन भी इन मामलों पीछे नहीं है। अक्सर ऐसे मामलों के पीछे सत्ता व सरकार की शह होती है। पत्रकारों को कैद किये जाने का रिकॉर्ड ऊंचाई पर है । कई बार ऑनलाइन हिंसा, उत्पीड़न और सेंसरशिप के विरोध प्रदर्शन को करते समय पत्रकारों पर भी विभिन्न सुरक्षा बलों और विरोध प्रतिभागियों दोनों ने हमला बोला है। रिपोर्टर्स विदाऊट बॉर्डर्स के अनुसार 10 सालों में भारत में मारे गए 28 पत्रकारों में से लगभग आधे पर्यावरण से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग करते थे ।आपको बता दें कि जून 2015 में जागेंद्र सिंह नाम के पत्रकार की मौत रेत माफियाओं ने कर दी थी, 2016 में जनसंदेश टाइम से जुड़े करुण मिश्रा उत्तर प्रदेश की मौत, फिर 2018 में मध्य प्रदेश में न्यूज़ वर्ल्ड लोकल टीवी के मनदीप शर्मा हत्या कर दी गई थी, जून 2020 में लखनऊ कंपू मेल के रिपोर्टर शुभम त्रिपाठी की गोली मार के हत्या कर दी गई थी, वर्ष 2022 में बिहार के सुभाष महतो की भी हत्या कर दी गई थी, इसी तरह 6 फरवरी 2023 को महाराष्ट्र के पत्रकार शशिकांत को कथित तौर में मार दिया गया था । आरसीएफ ने महिला पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक प्रणाली तत्काल निर्माण की आवश्यकता है। रिपोर्टर्स विदाऊट बॉर्डर ने ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023’ में 180 देश में भारत को 161 वें स्थान पर रखा था जबकि 2024 में 159 वें स्थान पर है। अब समय आ गया है कि छत्तीसगढ़ की तरह भारत के बाकी राज्यों में भी पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए।

विश्व स्तर पर कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट, फर्स्ट ड्राफ्ट, यूनेस्को जैसी संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन जमीन पर बहुत सार्थक परिणाम नहीं देखने को मिल रहा है। यह अच्छी स्थिति नहीं है। इससे न केवल सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार, अपराधो पर काबू पाना असंभव हो जाएगा, लोकतंत्र और सभ्य समाज को बनाए रखना भी मुश्किल हो जाएगा। जो अंततः दुनिया को गहरा अंधेरी खाई में धकेल देगा जहां जंगलराज होगा।

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