बादल सरोज
अमरीका यात्रा से जो कम-से-कम हासिल की उम्मीद लगाई जा रही थी, वह भी पूरी नहीं हुई। इस यात्रा को लेकर शुरू से ही आशंकित भारतीयों को भी इतनी उम्मीद तो थी ही कि अपने माय डीयर फ्रेंड ट्रम्प से जब मोदी मिलेंगे तो हाऊडी ट्रम्प बोलकर इतना तो करवा ही लेंगे कि आईंदा जो आप्रवासी हिदुस्तानी वापस भेजे जाएं, तो हथकड़ी-बेड़ी में जकड़कर न भेजे जाएं। इधर बड़ी ख्वारी होती है, लोग लानत-मलामत करते है। कभी कोलंबिया, तो कभी मैक्सिको के उदाहरण देते हैं और छप्पन इंची को कमजोर और डरपोक बताते हैं। इतना नहीं करें, तो कम-से-कम इतना ही कर दे कि जहाज में चढाने के बाद हाथ-पांव खोल दे ; ताकि जब अमृतसर उतरें, तो फोटोज में जकड़े, सिकुड़े नजर न आयें। मगर रविवार 16 फरवरी को जब एक के बाद एक करके दो अमरीकी सैनिक विमान आये और उनमें से ये कथित अवैध भारतीय उतरे, तो वैसे ही पाबजौला थे, जैसे 5 फरवरी को थे। गिरे हुए के पिछवाड़े पर लात मारने के अंदाज में इस बार अतिरिक्त यह हुआ कि इनमें जो सिख थे, उन्हें पगड़ियां नही पहनने दी गयी थीं। रही-सही कसर इधर वालों ने पूरी कर दी, जब हरियाणा सरकार ने चोरी-चोरी, चुपके-चुपके इन्हें हवाई अड्डे से बाहर निकालने के लिए कैदियों को लाने-ले जाने वाली बसों को लगा दिया ।
अब जब इतना भी नहीं कर पाए, तो बाकी तो खैर कर ही क्या पाते !! लेकिन ऐसा नहीं है कि खाली हाथ वापस लौटे हों, बल्कि यात्रा के बाद जिस तरह के ब्यौरे मीडिया में सामने आ रहे हैं, जो संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया है, उसे देख पढ़कर तो लगता है कि कितना अच्छा होता, जो लौट के वापस खाली हाथ ही लौटते ।
इधर लग्गू-भग्गू मीडिया जो चाहे सो कहे-लिखे, वास्तविकता यह है कि मोदी की यह अमरीका यात्रा कूटनीतिक रूप से भारत का दर्जा गिराने, सरेआम बांह मरोड़ कर अपना कबाड़ बेचने, अपने माल को खपाने और अपने आर्थिक सामरिक हितों को भारत की कीमत पर, भारत में, भारत की मोदी सरकार से आगे बढ़वाने के लिए लिखित करार कराने वाली, इस तरह पूरी तरह साष्टांग दंडवत करने वाली, यात्रा रही । यह सब करने के अलावा, ट्रम्प और उसकी जुण्डली द्वारा असभ्यता की हद तक जाकर मोदी और इस तरह भारत का जो अपमान और हर तरह से जलील किया गया है, उसकी किसी भी रीढ़ वाले नेतृत्व की अगुआई वाले छोटे से छोटे देश के साथ किये जाने की मिसाल नहीं मिलती।
मोदी के अमरीका में उतरते ही ट्रम्प ने उनका स्वागत बेहूदगी के साथ सार्वजनिक रूप से दी धमकी से किया। उसने कहा भारत अमरीकी माल पर बहुत ज्यादा टैक्स – टैरिफ – लगाता है, अगर उसने इसे कम नहीं किया, तो उसे “गम्भीर परिणाम” भुगतने होंगे। यह सिर्फ कूटनीतिक हिसाब से ही गलत और अस्वीकार्य व्यवहार नहीं है, शिष्टाचार के हर पैमाने से अपमानजनक अशिष्टता है। प्रधानमंत्री या उनके विदेश कार्यालय ने इस पर चूं तक नहीं बोली। इसके बाद जो शर्तें मानी गयीं और सौदे किये गए, वे दबे-छुपे नहीं हैं ; दोनों देशों के साझे वक्तव्य में भी इन्हें लिखा गया, ताकि ट्रम्प दुनिया के बाकी देशों को बता सके कि अपने दोस्त मोदी के प्रधानंत्री रहते वह किस तरह 140 करोड़ आबादी वाले देश की बांह मरोड़ कर अपनी मनमानी कर सकता है।
इन सौदों में खतरनाक सौदा रक्षा मामलों को लेकर है ; दुनिया के सबसे महंगे एफ-35 लड़ाकू विमान को जबरिया बेचा जाना है। कुल 65 प्रमाणित कमियों तथा पिछले 5 वर्षों में 9 बार दुर्घटनाग्रस्त हो चुके इस विमान को कबाड़ बताने का सार्वजनिक बयान खुद वे एलन मस्क कर चुके हैं, जो इस बार व्हाईट हाउस में ट्रंप के जोड़ीदार बने बैठे है। जो इसे भारत की सैन्य शक्ति को मजबूत करने के प्रायोजित प्रचार में आ रहे हैं, उन्हें शायद नहीं पता कि खरीदने और पूरा पैसा चुकाने के बाद भी अमरीकी हथियारों का इस्तेमाल अमरीकी विदेश नीति के हितों के विपरीत यानि उससे पूछे बिना नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि अब तक भारत की सेना अमरीकी हथियारों पर निर्भर नहीं रही। मगर जिनके खून में व्यापार है, वे इसके लिए राजी हो आये हैं। इसके अलावा छः समुद्री गश्ती विमान के सौदे भी किये गए हैं। इन सबसे भी अधिक खतरनाक है अमरीका के साथ सैन्य साझेदारी की वचनबद्धता दोहराया जाना। ट्रंप ने मोदी से क्वाड की चौकड़ी में अमरीका के लिए और मुस्तैदी से काम करने का तिर्वाचा भरवाया है। संयुक्त बयान कहता है कि “भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की क्षमता पुष्ट की जायेगी और 21वीं सदी के लिए यूएस-इंडिया कॉम्पैक्ट (सैन्य साझेदारी), त्वरित वाणिज्य और प्रौद्योगिकी के लिए अवसरों को उत्प्रेरित किया जाएगा।“
संयुक्त बयान में कहा गया है कि “अमरीका भारत को कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों और तरलीकृत प्राकृतिक गैस के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित” होने के लिए प्रतिबद्ध है। कोई भरम न रह जाए, इसलिए ट्रंप के कार्यालय ने मोदी के अमरीका में रहते हुए ही अलग से एक प्रेस बयान देकर दुनिया को बताया कि भारत अमेरिका से बड़ी मात्रा में तेल और गैस खरीदने के लिए सहमत हो गया है। अभी तक भारत रूस सहित दुनिया के ऐसे देशों से तेल और गैस खरीदता रहा है, जो सस्ता तो देते ही हैं, बिना किसी शर्त के भी देते हैं। अमरीका के प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनाये जाने के मोदी-ट्रंप करार के बाद अब बाजार दर से महंगी कीमत पर अमरीकी तेल और गैस खरीदनी होगी। इसके अलावा, अमरीकी माल के लिए भारतीय बाजार खोले जायेंगे, अमरीका के शिक्षण संस्थानों और यूनिवर्सिटीज को अपने कैंपस खोलने की इजाजत और इसके लिए जरूरी सहूलियतें दी जायेंगी । यहाँ तक कि “कृषि वस्तुओं के व्यापार को बढ़ाने के लिए भी मिलकर काम किया जाएगा।“ इस सबकी एवज में भारत को मिलेगा क्या? इसकी हास्यास्पदता संयुक्त बयान के ऊपर बताये मुद्दों के बाद लिखे गए इस हिस्से से साफ़ हो जाती है : “संयुक्त राज्य अमेरिका ने बोरबॉन, मोटरसाइकिल, आईसीटी उत्पादों और धातुओं के क्षेत्रों में अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करने के साथ-साथ अल्फाल्फा घास और बत्तख मीट और चिकित्सा उपकरणों जैसे अमेरिकी कृषि उत्पादों के लिए बाजार पहुंच बढ़ाने के उपायों के लिए भारत के हाल के उपायों का स्वागत किया। भारत ने अमेरिका को भारतीय आमों और अनारों के निर्यात को बढ़ाने के लिए अमेरिका द्वारा उठाए गए कदमों की भी सराहना की। गरज ये कि वे अपने सब कुछ से भारतीय बाजार को पाट देंगे और हम बस अपने आम और अनार बेच कर संतोष कर लेंगे!!
कूटनीतिक स्तर पर जो तमाशे हुए है और जिस तरह सोचे-समझे तरीके से मोदी के चलते अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत को अपमानित किया है उसकी तो सीमा ही नहीं है। संयुक्त पत्रकार वार्ता में मोदी 10 मिनट तक ट्रंप के कसीदे काढ़ते रहे, उनकी जीत और वापसी और चमत्कारिक नेतृत्व जैसी ऐसी-वैसी चापलूसी की बातें करते रहे, जो घिघियाने वाली तो थी हीं, कूटनीतिक मर्यादाओं को लांघने वाली भी थीं। इधर ट्रंप ने आधा मिनट में ही निबटा दिया। रही-सही कसर मोदी से पूछे सवालों का जवाब खुद देकर उन्हें सार्वजनिक रूप से जलील करके पूरी कर दी। ऐसा कोई मौक़ा नहीं छोड़ा जब उन्होंने मोदी को उनकी हैसियत न दिखाई हो। इनमें से एक प्रोटोकॉल का निचला दर्जा था। उसी सप्ताह ट्रंप से मिलने आये जापान, इजरायल और जॉर्डन के राष्ट्र प्रमुखों के आने पर अमरीकी राष्ट्रपति खुद उन्हें दरवाजे तक लेने आया, जबकि मोदी को लेने के लिए किसी अदना कर्मचारी को ही भेज दिया गया। कूटनीतिक बर्ताब में ये चीजें छोटी-मोटी नहीं होतीं, इनके मायने और संदेश दोनों होते हैं। यह भी कि यह व्यवहार व्यक्ति के साथ नहीं, जिस देश का वह प्रतिनिधित्व कर रहा होता है, कि उसके साथ माना जाता है। यह सब मोदी के साथ नहीं, भारत के प्रधानमंत्री के साथ हो रहा था और शर्मसार करने वाली बात यह थी कि मोदी उसे होने दे रहे थे।
कहते हैं कि वस्तुओं के गिरने के कुछ नियम और कुछ सीमा होती है। व्यक्तियों के गिरने के न नियम होते है, न कोई सीमा होती है। इस तरह गिरने की अति तब हुई, जब भारत का प्रधानमत्री एलन मस्क के बच्चों को खिलाने पहुंच गया। भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के इतिहास और विदेशनीति की अवनति के रिकॉर्ड में यह सर्वकालिक खराब तस्वीर के रूप में दर्ज की जायेगी। मुलाक़ात की सजावट ऐसी थी, जैसे दो राष्ट्र मिल रहे हों ; दोनों देशों के झंडे लगे हुए थे। मतलब यह कि यह मुलाक़ात निजी भेंट नहीं थी। इसकी जो तस्वीरें, खुद भारत के विदेश मंत्रालय ने जारी कीं, उनमें एक तरफ मोदी, भारत के विदेश सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अमरीका में भारत के राजदूत के साथ बैठे हुए है और दूसरी तरफ यह विवादास्पद और मनोरोगी व्यवसायी एलन मस्क अपने तीन बच्चों, वर्तमान पत्नी और बच्चों की नैनी – आया – के साथ विराजमान है। एलन मस्क को ट्रंप का फाइनेंसर और राष्ट्रपति भवन में बैठकर दुनिया में धंधा चलाने वाला जुगाडू व्यापारी माना जाता है। खुद ट्रंप भी इस बात को मानते हैं। भारत के प्रधानमंत्री के आधिकारिक दौरे में अमरीकी झंडा लगाकर उनसे मुलाक़ात करने की इस घटना पर अमरीका में तीखी प्रतिक्रिया होने और वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी – डेमोक्रेटिक पार्टी – द्वारा सवाल उठाये जाने पर पल्ला झाड़ते हुए ट्रम्प ने इसे सरकारी मुलाक़ात मानने से ही इंकार कर दिया। उसने कहा कि “उन्हें नहीं मालूम कि मस्क मोदी से किस हैसियत में मिले।“ इसे और स्पष्ट करते हुए ट्रंप ने कहा कि “मस्क की अपनी कंपनी है, वह उसके व्यापार के सिलसिले में मोदी से मिला होगा। भारत के साथ कारोबार करना चाहता होगा।“ कैसा कारोबार? अब तक की खबर यह है कि एलन मस्क भारत में स्टारलिंक लाना चाहता है। अभी दिसंबर में ही इस स्टारलिंक को भारत में नशीली दवाओं की तस्करी और सैनिक इलाकों में जासूसी के लिए उपयोग में लाते हुए पकड़ा गया। ऐसे कारोबारी के साथ बैठकर प्रधानमंत्री क्या बात कर रहे थे? यह मुलाक़ात अनायास नहीं थी – जैसे वे आवाज शरीफ की नातिन की शादी में भात लेकर तैयारी से गए थे, वैसे ही वे अपने साथ एलन मस्क के बच्चो के लिए किताबें लेकर गए थे। उन्हें यह भी पता था कि उस मुलाक़ात में मस्क के 12 बच्चों में से 3 ही रहेंगे, उन्हें यह भी पता था कि उनके साथ किस “उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल” की मुलाक़ात होनी है। इसके बाद भी वे पूरे तामझाम के साथ क्या करने गए थे? ये वे सवाल है, जिनके जवाब मोदी एंड कंपनी कभी नहीं देंगी ; ये वे नीचाईयां हैं, जहां मोदी राज में भारत को पंहुचा दिया गया है।
बहरहाल ऐसा नहीं है कि मोदी बिलकुल ही खाली हाथों लौटे हैं । वे गौतम अडानी नामधारी अपने देशी एलन मस्क के लिए राहत लेकर ही वापस आये हैं। संयुक्त पत्रकार वार्ता में अडानी के अपराधों के बारे में पूछे जाने पर भले उनकी घिग्घी बंध गयी थी ; पांचवी क्लास के बच्चे की तरह उन्हें वसुधैव कुटुम्बकम और भारत एक लोकतांत्रिक देश है जैसा गाय का निबंध याद गया था, मगर उसी में उन्होंने संकेत भी दे दिया था कि अडानी व्यक्तिगत मामला है और जब दो देशों के प्रमुख मिलते हैं, तो सार्वजनिक रूप से ऐसे मामलों में नहीं बोलते, उनका आशय था कि व्यक्तिगत मसलों को व्यक्तिगत बातचीत से सुलटा लेते हैं। निबटाया भी गया। नवम्बर 2024 में अमरीका के प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग – सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन – तथा न्यूयॉर्क के ईस्टर्न डिस्ट्रिक्ट के अटॉर्नी ने अडानी पर फोरेंन करप्ट प्रैक्टिसेज एक्ट 1977 (एफसीपीए) विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम के तहत भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाये थे। यह क़ानून अमरीका का संघीय कानून है, जो अमेरिकी नागरिकों और संस्थाओं को अपने व्यापारिक हितों को लाभ पहुंचाने के लिए विदेशी सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने-लेने दोनों से रोकता है। इस क़ानून के अंतर्गत रिश्वत विरोधी प्रावधानों के उल्लंघन पर पांच साल तक की जेल हो सकती है। वहीं, गलत हिसाब किताब दिखाने, जिसमे अडानी एक्सपर्ट हैं, के प्रावधानों के उल्लंघन पर 20 साल तक की जेल हो सकती है।इसके साथ, जुर्माना भी लगाया जा सकता है। मोदी की यात्रा अडानी के लिए राहत का संदेशा लेकर आई है ; मोदी के माय डियर फ्रेंड ने उनके देशी माय डियर फ्रेंड पर लटकी तलवार को फिलहाल खूंटी पर टांग दिया है और उस क़ानून पर 180 दिनों के लिए रोक लगा दी है ।
मोदी की 10वीं अमरीका यात्रा, ट्रंप से आठवीं भेंट वाली यात्रा में 140 करोड़ आबादी और अब तक दुनिया में अपनी साख बनाकर रखने वाले देश को इस दयनीय स्थिति में पहुंचा दिए जाने से दो बातें साफ़ हो गयी हैं ; एक तो यह कि मोदी और कुनबा जिस कथित राष्ट्रवाद की दुहाई देता है, वह कितना पिलपिला और लिजलिजा है. दूसरी यह कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी और उसके कारपोरेट मुखौटों ने दुनिया के लोकतंत्र का मखौल बनाकर रख दिया है। दुनिया इन दोनों की संक्रामकता से जूझ रही है, भारत के पास भी इस दोमुंहे विषाक्त अजगर से लड़ने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है ।
*(लेखक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)*