हिंदी दिवस पर धामी सरकार ने बढ़ाई साहित्य भूषण पुरस्कार की राशि, अब पांच लाख मिलेंगे

हिंदी हमारी अस्मिता, संस्कृति और भारतीयता का प्रतीक है : मुख्यमंत्री धामी

देहरादून। हिंदी दिवस पर प्रदेश की धामी सरकार ने साहित्य भूषण पुरस्कार की राशि बढ़ाकर पांच लाख कर दी है। शनिवार को भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने यह जानकारी दी।

शनिवार को सर्वे चौक स्थित आईआरडीटी प्रेक्षागृह में उत्तराखंड भाषा संस्थान की ओर से हिंदी दिवस समारोह आयोजित किया गया। समारोह में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रतिभाग किया। उन्होंने उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की पुस्तक उत्तराखण्ड की लोक कथाएं का विमोचन किया। साथ ही कविता लेखन, कहानी लेखन, यात्रा वृतान्त लेखन और नाटक लेखन प्रतियोगिता के प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया और बोर्ड परीक्षाओं में हिन्दी में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को भी सम्मानित किया।

समारोह में भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि जो भी प्रस्ताव भाषा संस्थान की ओर से भेजे गए उन्हें राज्य सरकार ने तत्काल स्वीकृति प्रदान की। उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा तमाम बोलियों में पुरस्कार की शुरुआत करने के साथ नवोदित लेखकों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया जा रहा है। संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए भाषा का उत्थान जरूरी है। उन्होंने कहा कि गत दिनों मुख्यमंत्री से साहित्य भूषण पुरस्कार की धनराशि पांच लाख रुपये करने का अनुरोध किया था, जिसे उन्होंने स्वीकृति प्रदान की है। राज्य में यह पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाएगा।

समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री धामी ने हिंदी भाषा के उत्थान और संवर्धन के लिए अहम योगदान देने वाले लोगों का आभार व्यक्त किया और कहा कि हिंदी एक भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति के गौरव का अवसर है। राष्ट्र की आत्मा है। हिंदी ने हमारे समाज को जोड़ा है और हमारी सभ्यता को समृद्ध किया है। विश्व पटल पर हिंदी ने हमें विशेष स्थान दिलाया है। हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता, संस्कृति और भारतीयता का प्रतीक भी है। हिंदी ने विविधता से भरे समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया है। सहजता, सरलता और सामर्थ्य से परिपूर्ण हिंदी में समन्वय की अद्भुत क्षमता है। हिंदी की कीर्ति केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे भारतीय उप महाद्वीप में यह संवाद का एक प्रमुख सेतु बन चुकी है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदी का अध्ययन किया जा रहा है। हिंदी ने समाज में जागरूकता लाने में भी अहम भूमिका निभाई है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक हिंदी सामाजिक चेतना का भी प्रमुख माध्यम रही है। स्वतंत्रता संग्राम के समय हिंदी संघर्ष की भाषा बनी और देशवासियों को एक सूत्र में बांधने में अहम भूमिका निभाई। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा हिंदी के उत्थान के लिए निरंतर कार्य किये जा रहे हैं। उन्होंने हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और कहा कि उत्तराखंड भाषा संस्थान ने कई सारे नवाचार किए है तथा नवाचार के माध्यम से लोगों को प्रोत्साहित करने का कार्य किया है। यह प्रयास भाषायी विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा भाषाओं और परंपराओं के प्रति समर्पण को प्रोत्साहित करने के लिए ’उत्तराखंड गौरव सम्मान’ के तहत उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मानित किया जाता है। उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा विभिन्न भाषाओं में ग्रंथ प्रकाशन के लिए वित्तीय सहायता योजना के तहत 17 साहित्यकारों को अनुदान प्रदान किया गया है जो लेखकों के लिए भी प्रेरणा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि आज जब भारत दुनिया का सिरमौर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। ऐसे में हिंदी का प्रचार-प्रसार और भी महत्वपूर्ण हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हिंदी को वैश्विक मंच पर स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। ’मन की बात’ कार्यक्रम में उनके द्वारा हिंदी का प्रयोग करने से हिंदी को वैश्विक पहचान मिली है। हिंदी के उत्थान और संवर्धन के लिए राज्य सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। हिंदी का गौरव कायम रखना सबकी जिम्मेदारी है। आज हमें संकल्प लेना चाहिए कि अपनी मातृभाषा हिंदी का सम्मान करें। इसे अपने दैनिक जीवन में अपनाएं, ताकि हिंदी 21वीं सदी की सशक्त भाषा बनें। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि युवाओं को अनेक भाषाओं को सीखना चाहिए और इसे लेकर किसी तरह का कोई भी संकोच मन से निकालना होगा। उन्होंने कहा कि बाल्यकाल में आपने जो सीख लिया, वो आपके पूरे जीवन काम आने वाला है।

इस दौरान विधायक खजान दास, साहित्यकार एवं पूर्व कुलपति डा. सुधा रानी पांडेय, दून विवि की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल, सचिव विनोद रतूड़ी, भाषा संस्थान की निदेशक स्वाति भदौरिया आदि उपस्थित थे।

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