डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
देवभूमि उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों के बीच पुस्तकों का एक अनूठा गांव बसा हुआ है,जिसे पुस्तकों का गांव भी कहते है। इस गांव में 17,500 से अधिक पुस्तकों का संग्रह देखने को मिलता है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि ब्लॉक के मणिगुह गांव को पुस्तकालय गांव के नाम से जाना जाता है। ‘हमारा गांव घर’ फाउंडेशन के माध्यम से पुस्कालय गांव को देखने व पुस्तकों के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए लोग इस गांव में दूर दूर से आते है। इस पुस्तकालय गांव से मनदाणी, सतोपंत, केदारनाथ, भारतखुंड, खरचकुण्ड, थलय सागर आदि पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन भी किये जा सकते हैं।समुद्र तल से 1664 मीटर की ऊंचाई पर बसे मणिगुह गांव देखने में बेहद खूबसूरत लगता है। इस गांव में 250 परिवार रहते हैं। गांव में कई होमस्टे भी बनकर तैयार हो चुके हैं।पुस्तकालय गांव के संचालक महेश नेगी बताते हैं कि हमारा गांव घर फाउंडेशन की स्थापना 26 जनवरी सन 2023 को रखी गई । बीना मिश्रा, सुमन मिश्रा, राहुल रावत, आलोक सोनी ने मिलकर इस फाउंडेशन को शुरू किया था,फाउंडेशन का उद्देश्य गांव का आर्थिक व शैक्षणिक विकास करना है। गांव के किशोर व बड़े भी एकदम तो पुस्तकालय से नहीं जुड़ पाए लेकिन धीरे-धीरे जब उनको पता चला कि यहां पढ़ने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, तो पाठकों की संख्या बढ़ने लगी। प्रतिदिन 10 से 12 बच्चे स्कूल खत्म होने के बाद गांव के पुस्तकालय में पढ़ने के लिए पहुंच जाते हैं,साथ ही कई बड़े भी ज्ञानवर्धन करते है। पुस्तकालय गांव की शुरुआत के समय तीन दिवसीय गांव घर महोत्सव का आयोजन किया गया था, जिसमें किसान, कवि, रंगकर्मी समेत सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े हुए लोग शामिल हुए थे।इनके द्वारा उत्तराखंड के कई इलाकों में पुस्तकालय खोले गये हैं, लेकिन वहां लोगों की आवाजाही अभी भी कम है। ऐसे में उनके द्वारा यह प्रयास किया गया कि पुस्तकालय को लोगों के व्यक्तित्व का हिस्सा बनाया जाए, इसके लिए ग्रामसभा के विभिन्न क्षेत्रों में 8 पुस्तक मंदिरों की स्थापना की गई है, ताकि दूरस्थ क्षेत्र के लोग भी आसानी से पुस्तकें पढ़ सकें।साहित्य से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें यहां के पुस्तकालय में मिलती है,साथ ही विभिन्न विषयों पर आधारित पुस्तक, प्रतियोगी परीक्षाओं, साहित्य से जुड़ी पुस्तकों के अलावा जाने-माने लेखकों की पुस्तकें भी पढ़ने को मिल यहां जाएंगी।उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े दस्तावेज भी यहां के पुस्तकालय में मौजूद हैं। वहीं कई दुर्लभ पुस्तकों का भी संकलन यहां मौजूद है। सालभर कई शैक्षणिक गतिविधियां यहां आयोजित की गई हैं। यहां आकर मन को शांति मिलने के साथ-साथ ज्ञान की प्राप्ति भी होती है।पुस्तकों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए यह एक नया कदम कहा जा सकता है। इस गांव से निकलकर बड़े शहरों में नौकरी करने वाले युवा भी वापस अपने गांव को एक नई पहचान देने में जुट गए हैं।हालांकि किसी गांव में पुस्तालयों का निर्माण कोई नई बात नहीं है, लेकिन मणिगुह गांव में ‘हमारा गांव घर फाउंडेशन’ के सहयोग से बने पुस्तकालय में गांव के बच्चों के लिए स्मार्ट क्लास और मुफ़्त कंप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था भी की जा रही है। मणिगुह गांव अपने प्राकृतिक संसाधनों के लिए भी जाना जाता है, यहां खुमानी, संतरे, अंजीर और अन्य फलों को उगाया जाता है। इस पुस्तकालय गांव के प्रोजेक्ट को अमली-जामा पहनाने वाले ‘हमारा गांव घर फाउंडेशन’ के को-फाउंडर सुमन मिश्र बताते हैं कि गांव के बच्चों ने शिलान्यास के दिन पुस्तकालय में काफ़ी समय बिताया, साथ ही अगले दिन भी स्कूल बंद होने के बाद बच्चे पुस्तकालय पहुंच गए थे,तब से यह सिलसिला लगातार जारी है।इस गांव के पुस्तकालय में उत्तराखंड की धरती से निकले लेखकों की पुस्तकों को रखा जा रहा है।ललित मोहन थपलियाल, भगवान सिंह, शशिभूषण द्विवेदी, अनीसुर्रहमान, ख़ुर्शीद आलम जैसे वरिष्ट लेखकों के निजी संग्रह की चुनिदा पुस्तकें यहां इस पुस्तकालय में उपलब्ध हैं, वहीं अविनाश मिश्र जैसे युवा कवियों के निजी संग्रह से भी इस पुस्तकालय में पुस्तकें उपलब्ध कराई गई हैं।
(लेखक विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति व वरिष्ठ पत्रकार है)