मणिपुर के CM बीरेन सिंह ने छह महीने में पूर्ण शांति का किया वादा, कहा- इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं

इंफाल। मणिपुर में जातीय हिंसा के धीरे-धीरे कम होने के बीच, राज्य के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने केंद्र की मदद से छह महीने में पूर्ण शांति बहाल करने का वादा किया और साथ ही पद छोड़ने से इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने न तो कोई अपराध किया है और न ही कोई घोटाला किया है।

सिंह ने बृहस्पतिवार को यहां ‘पीटीआई वीडियो’ से साक्षात्कार के दौरान पहली बार खुलासा किया कि उन्होंने कुकी-जो और मेइती नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए एक दूत नियुक्त किया है। आधिकारिक गणना के अनुसार, मई 2023 से कुकी-जो और मेइती जातीय समूहों के बीच संघर्ष में 226 लोग मारे गए हैं। सिंह ने कहा, ‘‘इसे बातचीत के जरिए ही सुलझाया जा सकता है। संवाद ही एक मात्र रास्ता है।’’

उन्होंने बताया कि नगा विधायक और ‘हिल एरिया कमेटी’ के अध्यक्ष डिंगांगलुंग गंगमेई को दूत नियुक्त किया गया है। यह पूछे जाने पर कि शांति बहाल करने के वास्ते उन्होंने स्वयं के लिए क्या समय-सीमा तय की है, सिंह ने संकेत दिया कि शांति लाने में बातचीत के साथ-साथ केंद्र सरकार की भागीदारी अहम होगी, चाहे वह गृह मंत्रालय के माध्यम से हो या अन्य एजेंसी के माध्यम से।

सिंह ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह (हिंसा) लंबे समय तक जारी रहेगी। शांति पांच-छह महीने में बहाल हो जानी चाहिए। यह हमारी उम्मीद है और मुझे पूरा भरोसा भी है।’’ सिंह मेइती समुदाय से संबंध रखते हैं और कुकी समुदाय के लोग उन पर खास भरोसा नहीं करते। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि जब वह आधिकारिक कुर्सी पर बैठे हैं तो वह नहीं चाहते कि उनकी पहचान मेइती के रूप में हो।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सभी का मुख्यमंत्री हूं।’’ मेइती बहुल इंफाल पूरी तरह सामान्य दिखाई देता है, जहां सड़कों पर खासा यातायात है और दुकानों में अच्छा कारोबार हो रहा है, वहीं राजधानी के समतल घाटी वाले इलाके के आसपास की पहाड़ियों पर कुकी निवासियों को छोड़कर बाकी सभी के लिए प्रवेश वर्जित है।

सिंह ने कहा कि इस संघर्ष की शुरुआत 2017-2022 में मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले कार्यकाल से जुड़ी है, जब उन्होंने पड़ोसी म्यांमा से आने वाले प्रवासियों एवं नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार पर नकेल कसी थी। म्यांमा की सीमा इंफाल से केवल 100 किलोमीटर दूर है।

उन्होंने कहा कि उनकी इस कार्रवाई से प्रभावित हुए लोगों ने कुकी-मेइती संघर्षों को भड़काकर उनकी सरकार और राज्य को अस्थिर करने की साजिश रची। कुकी मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में रहने वाली ईसाई जनजातियां हैं, जबकि मेइती मैदानी इलाकों और घाटियों में रहने वाले हिंदू हैं। कुकी जनजातियां म्यांमा में भी पाई जाती हैं।

सिंह ने अपने कार्यालय में साक्षात्कार के दौरान उपग्रह से लिए गए चित्र दिखाते हुए कहा कि 2001 में जिन क्षेत्रों में लोग नहीं रहते थे, वहां 15 साल बाद भारी आबादी रहती है। उन्होंने कहा कि ये तस्वीरें अवैध बस्तियों का सबूत हैं, जो राज्य की जनसांख्यिकी को बदल रही हैं। सिंह ने कहा कि मार्च 2023 में मणिपुर उच्च न्यायालय के फैसले में मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की सिफारिश की गई, जिससे कुकी लोगों का गुस्सा और बढ़ गया तथा उन्हें लगा कि उनके अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है।

बहरहाल, सिंह की सरकार ने अदालत के आदेश को लागू नहीं किया, लेकिन तब तक कुकी छात्र समूहों का आंदोलन शुरू हो चुका था और जल्द ही यह पूर्ण हिंसा में बदल गया। इस साल फरवरी में उच्च न्यायालय ने अपने आदेश से एसटी दर्जे वाला पैराग्राफ स्वयं वापस ले लिया। इस संघर्ष की राजनीतिक कीमत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी चुकानी पड़ी है। विपक्ष और मोदी के आलोचकों ने मणिपुर का दौरा नहीं करने को लेकर उनकी आलोचना की है।

सिंह ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री के आने या नहीं आने को लोगों ने मुद्दा बना लिया है। प्रधानमंत्री भले ही न आए हों, लेकिन उन्होंने अपने गृह मंत्री को भेजा है और प्रधानमंत्री ने मणिपुर के बारे में कई बार बात की है, स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से भी (उन्होंने मणिपुर पर बात की)… और यहां सुरक्षा, वित्तीय मदद आदि के मामले में जो कुछ भी किया जा रहा है, वह उनके नेतृत्व में ही हो रहा है। जटिल परिस्थिति में प्रधानमंत्री का आना जरूरी नहीं था।’’

उन्होंने स्पष्ट किया कि वह ‘अरम्बाई टेंगोल’ जैसे उन मेइती समर्थक उग्रवादी संगठनों को बर्दाश्त नहीं करेंगे, जिन्होंने कुकी लोगों के खिलाफ हिंसा की खुले तौर पर वकालत की है। सिंह ने कहा, ‘‘मैंने उनसे कहा कि आप कोई भी राष्ट्र विरोधी या सांप्रदायिक काम नहीं करेंगे। आपको सरकार की मदद करनी होगी। आपके मुंह से कोई सांप्रदायिक शब्द नहीं निकलना चाहिए। मैंने साफ चेतावनी दी थी कि ‘आप कुछ भी नहीं बोलेंगे’। उनके मुंह से पांच महीने में एक भी शब्द नहीं निकला। मैं उन्हें कट्टरपंथी, राष्ट्र विरोधी नहीं बनने दूंगा।’’

‘अरम्बाई टेंगोल’ को एक सांस्कृतिक संगठन बताते हुए सिंह ने कहा कि यह हिंसा भड़कने पर केंद्रीय और राज्य पुलिस बलों की शुरुआती अनुपस्थिति के कारण स्थिति से निपटने के लिए मेइती लोगों की रक्षा की खातिर हथियार उठाने पर मजबूर हो गया। सिंह के इस्तीफे के प्रयास को पिछले साल उनके समर्थकों ने नाटकीय ढंग से विफल कर दिया था। उन्होंने पिछले वर्ष अशांति के चरम पर होने के दौरान सिंह का त्यागपत्र सबके सामने छीनकर फाड़ दिया था।

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