डॉ. राजेश पाल के कविता संग्रह ‘आजादी में आजादी’ पर विमर्श

देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से अंबेडकर वार्ता श्रृंखला के अंतर्गत डॉ. राजेश पाल के कविता संग्रह ‘आजादी में आजादी’ पर समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने प्रतिभाग किया। आज के इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जयपुर निवासी देश के चर्चित कथाकार रत्न कुमार सांभरिया ने की।

उल्लेखनीय है कि राजस्थान साहित्य अकादमी के मीरा पुरस्कार से सम्मानित रत्न कुमार सांभरीय पिछले दिनों ‘सांप’ उपन्यास के लिए हिंदी साहित्य में चर्चित रहे हैं। परिचर्चा में मुख्य वक्ता दलित साहित्य के आधार स्तम्भ डॉ. एन. सिंह रहे, जो सहारनपुर में निवास करते हैं। ये पूर्व में उ.प्र. माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सदस्य और हिंदी विभागाध्यक्ष रहते हुए प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

इस कविता संग्रह पर परिचर्चा में विशिष्ठ वक्ता के रूप में वरिष्ठ कवि एवं संपादक राजेश सकलानी अपनी बात रखी। दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कॉलेज में हिंदी विभाग के प्रोफेसर तथा जाने माने कवि डॉ. महेंद्र सिंह बेनीवाल इस कार्यक्रम में विशिष्ठ वक्ता थे।

राजेश सकलानी ने कहा कि आज़ादी में आज़ादी काव्य संकलन पढ़ कर यह धारणा पुष्ट होती है कि दलित साहित्य को मुख्य धारा का साहित्य होना चाहिए। सामाजिक राजनीतिक जड़ता को तोड़ने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है।

रत्न कुमार संभरिया ने अपने वक्तव्य में कहा कवि राजेश पाल आज के समय के संभावनापूर्ण एवं महत्वपूर्ण कवि है। उनकी कविताओं में पाठक जैसे जैसे उतरता जाता है उसे गहराई का अहसास होता जाता है। इनकी कविताएं संघर्ष एवं सामाजिक चेतना के लिए प्रेरित करती है। डॉ. एन. सिंह ने जोर देकर कहा राजेश पाल अपनी पीढ़ी के सशक्त और जरूरी कवि है, वे अपने समय सच से सीधे सीधे टकराते है तथा अपने तर्क को तथात्मक रूप से रखते हैं।

प्रो. महेंद्र सिंह बेनीवाल ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि डॉ राजेश पाल अपने समय के महत्वपूर्ण कवि हैं।उनकी अपने समय पर बहुत मजबूत पकड़ है, जो उनकी कविताओं में बखूबी दर्ज़ है। डर, भय और चुप्पी के इस दौर में उनकी कविताएं साहस के साथ बोलती हैं और आम आदमी के पक्ष में खड़ी होती हैं। साथ ही उनकी कविताएं भौगोलिक सीमाएं तोड़कर वैश्विक दायरा बनाती हैं। कार्यक्रम का संचालन सामाजिक चिंतक समदर्शी बड़थ्वाल ने किया।

इसी दौरान राजेश पाल की प्रतिनिधि कविताओं के संकलन (संपादक : डॉ. नरेंद्र वाल्मीकि, प्रकाशक स्वतंत्र प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली) का लोकार्पण भी किया गया। इस पुस्तक पर डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि ने अपनी बात रखते हुए कहा कि राजेश पाल की कविताएँ दलितों के अधिकारों की आवाज को उठाती है और सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करती हैं।

आजादी में आजादी की कविताएं किस आजादी की बात करती हैं, ये कविताएं अपने प्रतिरोध एवं चेतना को समाज में किस स्तर तक पहुंचा पाती है, सामाजिक चिंतक और दुनिया को पैनी दृष्टि से देखने वाले इन विद्वान अतिथि वक्ताओं की राजेश पाल की कविताओं पर परिचर्चा के माध्यम से आजादी पर समीक्षात्मक दृष्टिकोण के साथ विश्लेषण किया गया। डॉ. राजेश पाल का यह पांचवा कविता संग्रह है। इनकी कविताओं का पंजाबी में अनुवाद हो चुका है। डॉ. राजेश पाल डी.ए.वी. (पी.जी.) कॉलेज, देहरादून में गणित के प्रोफेसर है।

कार्यक्रम में बिजू नेगी, राकेश कुमार, प्रवीन भट्ट, शिव मोहन सिंह, राजेंद्र गुप्ता, डॉ. धीरेन्द्र नाथ तिवारी, विजय बहादुर, डॉली डबराल, रजनीश त्रिवेदी, अवतार सिंह, जितेन भारती, ओमप्रकाश बेनिवाल, अरुण कुमार असफल , जयपाल सिंह, सी एल भारती सहित अनेक लेखक, साहित्यकार, बुद्धिजीवी और युवा पाठक उपस्थित रहे।

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