हिमाचल के लोगों ने केंद्र में भाजपा और राज्य में दिया कांग्रेस का साथ
चारों लोकसभा सीट गंवाने के बाद सुक्खू सरकार के लिए भी आसान नहीं राह!
-वरिष्ठ संवाददाता, शिमला।
हिमाचल प्रदेश के लोगों ने केंद्र में भाजपा और राज्य में कांग्रेस का साथ दिया है, लोकसभा चुनावों में हिमाचल की चारों सीटें जहां भाजपा को दी हैं, वहीं दल-बदल कर भाजपा की टिकट ले आए छह में से चार उम्मीदवारों को हरा दिया है। लोगों ने एक तरह से यह वोट सुक्खू सरकार को कायम रखने के लिए दिया है।
हिमाचल में हमीरपुर क्षेत्र से अनुराग ठाकुर, कांगड़ा-चंबा से डॉ. राजीव भारद्वाज,शिमला से सुरेश कश्यप और मंडी क्षेत्र से फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत को संसद में भिजवा दिया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को लोग सुनने तो आए, लेकिन वोट उन्होंने एक बार फिर नरेंद्र मोदी को ही प्रधानमंत्री बनाने के लिए दिए हैं।
इसी तरह लोग नहीं चाहते कि आने वाले समय में सुक्खू सरकार अस्थिर हो। यही वजह रही कि कांग्रेस के जिन विधायकों ने राज्यसभा के चुनाव में क्रॉस वोटिंग की और बाद में व्हिप का उल्लंघन करने पर अपनी विधानसभा की सदस्यता खो बैठे, जब वे भाजपा की टिकट पर उप चुनाव में मैदान में उतरे तो इनमें से चार को लोगों ने घर बैठा दिया।
विधानसभा उप चुनाव में भाजपा की टिकट पर लड़े कांग्रेस के छह पूर्व विधायकों में से जो चार उम्मीदवार फिर से जीते हैं, उनमें इंद्रदत्त लखनपाल और सुधीर शर्मा शामिल हैं। चार पर कांग्रेस उम्मीदवार राकेश कालिया, विवेक शर्मा, अनुराधा राणा और रणजीत सिंह राणा ने विजय हासिल की है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ सेब उत्पादक किसानों का मुद्दा उठाया, अग्निवीर योजना के खिलाफ आवाज़ उठाई, बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दों पर भी जोर दिया, लेकिन लोगों ने फिर भी केंद्र में एक बार फिर से मोदी सरकार के पक्ष में वोट किया। छोटे से पहाड़ी राज्य हिमाचल के चुनाव परिणामों ने जहां भाजपा को राहत दी है, वहीं कांग्रेस को भविष्य में जीत के लिए नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने को मजबूर किया है।
किस्मत के धनी हैं मनीष
पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी किस्मत के धनी हैं। कांग्रेस उम्मीदवार तिवारी ने चंडीगढ़ की सीट पर भाजपा के संजय टंडन को मात दी है। इससे पहले तिवारी पंजाब में लुधियाना और आनंदपुर साहिब सीट से भी सांसद रह चुके हैं।
किरण खेर चंडीगढ़ से लगातार दो बार सांसद रही हैं। इस बार उनकी जगह भाजपा ने संजय टंडन को टिकट दी थी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके टंडन को भितरघात का सामना करना पड़ा है। पूर्व राज्यपाल बलरामजी दास टंडन के बेटे संजय टंडन पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे, लेकिन जीत नहीं पाए। किरण खेर का कहना था कि चुनाव प्रचार के दौरान टंडन ने उनके दस साल के दौरान किए गए विकास कार्यों का जिक्र नहीं किया।
भाजपा के इस आरोप को भी किरण खेर ने नकार दिया था कि मनीष तिवारी बाहरी उम्मीदवार हैं। उन्होंने कहा था कि चंडीगढ़ की बेटी होने के बावजूद शुरू में उन्हें भी बाहरी बताया गया था। इससे पहले दोनों बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किरण खेर के पक्ष में प्रचार के लिए चंडीगढ़ आए थे, लेकिन इस बार उनका यहां का दौरा नहीं हो पाया और टंडन अपने बलबूते चुनाव नहीं जीत पाए।
दूसरी तरफ कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल की टिकट कटने के बाद उनके समर्थकों ने मनीष तिवारी से दूरी बना ली थी। मतदान के बाद पार्टी विरोधी गतिविधियों को लेकर पांच नेताओं को कांग्रेस से निकाल दिया गया है। इसका अर्थ यही है कि तिवारी को भी भितरघात झेलनी पड़ी है। फिर भी वे लोगों को अपने पक्ष में मतदान के लिए तैयार करने में कामयाब रहे।