खटाखट-खटाखट लोकतंत्र !

अपने लोकतंत्र का चुनावी पर्व सम्पन्न हो चुका है। दो महीने से जारी चुनावी ड्रामा कुछ थमा है। कुछ महीनों में ही राजनीतिक  थुक्का-फजीहत के नए रिकॉर्ड बना दिए हैं। इस बार खटाखट और फटाफट फार्मूले की नयी राजनीतिक शैली की खोज हुई है। पहले के पप्पू नेता अब बप्पा के भी आ ताऊ लगे हैं…

वीरेंद्र सेंगर 

पने लोकतंत्र का चुनावी पर्व सम्पन्न हो चुका है। दो महीने से जारी चुनावी ड्रामा कुछ थमा है। कुछ महीनों में ही राजनीतिक थुक्का-फजीहत के नए रिकॉर्ड बना दिए हैं। इस बार खटाखट और फटाफट फार्मूले की नयी राजनीतिक शैली की खोज हुई है। पहले के पप्पू नेता अब बप्पा के भी आ ताऊ लगे हैं। सत्ता की होड़ ने साबित कर दिया कि वह कोई गली-गली में भिक्षा मांगने वाला फकीर नहीं रहा। ये जरूर है कि घोर जवानी के दिनों में वो 35 साल तक भिक्षा मांगता रहा। वो जरूर राजसी भिक्षक रहा होगा वरना कैसे अपने भिक्षक काल में अमेरिका से लेकर जापान-इंडोनेशिया जैसे देशों की यात्रा करता? लेकिन उसने कहा है, तो जरूर ज्ञान प्राप्ति के लिए गया होगा। तस्वीरें भी बोलती हैं। वो सच ही बोलता है। नाहक ही विपक्ष उसे झूठा-झूठा कहकर बदनाम करता है। ये खालिश हीन भावना है उनकी। वो सालों बुलंदी पर रहा। लोकप्रियता के उसने रिकार्ड झंडे गाड़े। वो देखते-देखते अंतरराष्ट्रीय मानुष बना। करोड़ों भक्तों के मन का वो आज भी राजा है।

दस सालों तक वो बेमिसाल महाराजा और फकीर एक साथ रहा। दुनिया के इतिहास में यह अनोखा संयोग है। इसके पहले की और कोई मिसाल नहीं है। अब जनता तो ठहरी बोदा दिमाग की। उसने चुनावी दौर में इस राष्ट्रीय फकीर को रुला भी दिया। जनता क्या जाने उसके एक-एक आंसू की कीमत? उसका गला भर आया था। वो जगह-जगह भावुक हुआ था। सोना-चांदी नहीं मांग रहा था। दरकार, सिर्फ बेमुराद वोट की ही थी। घोर कलयुग है। राज फकीर ने घोर देश सेवा के लिए अपनी झोली फैलाई। यही आवाज लगाई, कि दे दे वोट! सेवा के लिए। लेकिन नामुराद लोगों ने कुछ कंजूसी दिखाई। दूसरी तरफ उसका बांकपन देखो, वो अब भी देश सेवा के लिए जिद्द पर है। उसे ना गालियों की परवाह है न तालियों की। वो तो अपने कर्तव्य पथ पर दौड़े जा रहा है। उसे पहले भी विपक्ष 91 गालियां दे चुका है।
भारत की धरती, एक से एक महारत्न पैदा करती रही है। गुजरात में ही पैदा हुए थे, महात्मा गांधी। दुनिया में कौन नहीं जानता, इस विभूति को? उसी गुजरात ने इस महासेवक/ महा चौकीदार और बेमिसाल महा फकीर को पैदा किया। ज्ञात इतिहास, में बापू ने कभी 35 दिन भी भिक्षा नहीं मांगी थी। क्योंकि बापू ज्यादा गरीब घर में पैदा नहीं हुए थे। लेकिन वो बचपन से ही बहादुर था। तालाब से ख़तरनाक मगरमच्छ को पकड़ लाया था। अब तमाम राजनीतिक मगरमच्छों से भिड़ा है। वो इंसाफ पसंद है। अपने-परायों में भेद नहीं करता। कई ‘अपनों’ को भी सलाहकार मंडल में भेजकर निपटा चुका है। अभी कुछ इसी कतार में हैं।

उसे नयी चुनौतियों से खास फर्क नहीं पड़‌ता। वो लौह पुरुष हैं। भक्त मुझे माफ करें, क्योंकि मुझे लोहा पुरुष की जगह सोना पुरुष कहना चाहिए। यानी ‘गोल्डेन लीडर’। उसके जैसा कोई नहीं। वो तो बापू से कई मामलों में नायाब है। बापू तो हाड़-मांस के दुबले-पतले इंसान थे। ये हाड़-मांस के होते हुए भी अवतारी है। पहले भाजपा के कुछ स्वनाम धन्य नेता ही इन्हें विष्णु अवतार बताते थे। अब कंगना जैसी खूबसूरत और ज्ञानी अभिनेत्री ने भी बता रखा है कि मोदी जी सत्ता में आये 2014 में, उसके बाद ही भारत को आजादी मिली थी। पहले हम यहीं जानते रहे हैं कि इस अवतारी नेता के पैदा होने के पहले 1947 में ही आजादी मिल गयी थी। लेकिन अब नेत्री कम अभिनेत्री ने बता दिया कि 1947 में तो अंग्रेजों ने लीज पर आजादी दी थी। पूर्ण आजादी तो साहेब ने दिलाई। जनाब! इसमें कुछ जरूर सार रहा होगा, वरना साहेब कुछ टोका-टाकी करते। उसके अज्ञान को ताड़कर मंडी सीट से इसका टिकट ही काट देते। लेकिन साहेब दयालु हैं। वे महिलाओं के उत्थान में लगे रहते हैं। सो कंगना पर असीम कृपा बनी रही। अब बेमुराद जनता ने उसे ढंग से गले नहीं लगाया, तो कोई क्या करे? अभी उम्र उसके साथ है। कुछ साल अभिनेत्री का टैग लगाकर रख सकती है।

साहेब! लोकप्रियता के एवरेस्ट तक पहुंच गये थे। जनाब! कोई भी एवरेस्ट पर टेंट लगाकर बसता तो नहीं है। वो नीचे उतरता ही है। उसके उतरने को धाक घटने का मापदंड नहीं मानना चाहिए। कुछ सेक्यूलरिये मानें या न मानें। वे विश्वगुरु तो बन चुके हैं। करोड़ों भक्तों ने उन्हें इस पद पर बैठाया है। अब दुनिया माने या ना माने। इससे उनकी सेहत पर असर नहीं पड़ता। राहुल गांधी जैसे विपक्षी तमाम वादों के हथगोले दागते रहे हैं। अब साहेब एक-एक का हिसाब लेंगे। वे कोई न कोई अवतार हैं। चुनावी दौर में साहेब को भी इसकी अनुभूति हुई थी। वे बोले भी थे। उन्होंने कह दिया कि वे झूठ तो बोलते ही नहीं। वो सादगी पसंद है। वो तो देश की शान बढ़ाने के लिए महंगे शौक करने की लीला करते आए है। लेकिन विपक्षी उनकी ‘अमीरी’ पर ताना मारते रहे हैं। नासमझ विपक्ष!

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