लड़का- लड़की को बराबर का अधिकार
न्यायिक प्रक्रिया से ही तलाक मान्य
लिव-इन एक माह में करना होगा पंजीकरण
जनजाति नहीं आएंगे कानून के दायरे में
उत्तराधिकार कानून सामान
तलाक में सभी धर्मों के लिए पारदर्शिता
-डॉ. आशा बाला, देहरादून।
गंगा जमुना तहजीब को अपने में समेटे उत्तराखंड राज्य देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है जहां समान नागरिक संहिता विधेयक विधानसभा में पास हो गया है राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस विधेयक को समझ में भेदभाव और कुरीतियों को खत्म करने के लिए आवश्यक मानते हैं
आइए जानते हैं क्या है यूसीसी ?
समान नागरिक संहिता का तात्पर्य एक देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होने से है, फिर चाहे वह व्यक्ति किसी भी धर्म या जाति से संबंध रखता हो। समान नागरिक संहिता के अंतर्गत शादी, तलाक, जमीन बंटवारे आदि के लिए सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। यदि कम शब्दों में कहें तो एक ऐसा कानून जो की निष्पक्ष होगा, जिसका किसी धर्म या जाति से कोई संबंध नहीं होगा।
यूसीसी क्यों है जरूरी?
दरअसल दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून है। लेकिन भारत में अलग-अलग पंथों के मैरिज एक्ट हैं। इस वजह से विवाह, जनसंख्या के साथ ही कई तरह का सामाजिक ताना-बाना भी बिगडा हुआ है। इसलिए देश के कानून में एक ऐसे यूनिफॉर्म तरीके की जरूरत है जो सभी धर्म, जाति?, वर्ग और संप्रदाय को एक ही सिस्टम में लेकर आए। इसके साथ ही जब तक देश के संविधान में यह सुविधा या सुधार नहीं होगा, भारत के पंथनिरपेक्ष होने का अर्थ भी स्पष्ट तौर पर नजर नहीं आएगा।
जब किसी देश में जाति और धर्म के आधार पर कानून बनते हैं तो उसका सीधा असर न्यायपालिका पर भी पड़ता है। न्यायपालिका पर बोझ तो बढ़ता ही है साथ ही अदालत में फैसले भी लंबित पड़े रहते हैं। कानून लागू होने से परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में लंबित पड़े फैसले जल्द होंगे। शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
क्या आएंगे सुधार : समान नागरिक संहिता के लागू होने से महिलाओं की स्थिति में भी काफी सुधार आएंगे क्योंकि अभी तक यह देखा गया है की कुछ धर्म ऐसे भी हैं जिनमें पर्सनल लॉ में महिलाओं के लिए अधिकार काफी सीमित हैं। इसी के साथ पिता की संपत्ति का अधिकार और गोद लेने जैसे तमाम मामलों में भी एक समान नियम लागू होगा।
हो रहा विरोध: यूसीसी को लेकर कई तरह से विरोध हो रहा है कई राजनीतिक पार्टियां इसे भाजपा का प्राथमिक एजेंडा बता रही हैं। वहीं कई मुस्लिम धर्मगुरु और विशेषज्ञ भी इसे लागू करने के पक्ष में नहीं हैं, उनका यह भी मानना है की प्रत्येक धर्म की अपनी आस्था और मान्यताएं हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
ये देश लागू कर चुके हैं यूसीसी
यूं तो भारत देश के उत्तराखंड राज्य में यूसीसी लागू करने की जद्दोजहद जारी है लेकिन इसे हटके दुनिया के कुछ देश इसे भी हैं जहां यूसीसी लागू हो चुका है जिनमें भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान समेत बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट आदि शामिल हैं। इस विधेयक में सभी धर्म समुदायों में विवाह तलाक गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान है महिला पुरुषों को समान अधिकारों की सिफारिश भी इसमें की गई है बस एक पहलू है जिसको इसमें नजरअंदाज किया गया है वह है अनुसूचित जनजातियों को इस कानून की परिधि से बाहर रखा जानो
बहुविवाह पर लगेगी रोक
कुछ धर्म ऐसे हैं जिनमें एक से ज्यादा विवाह करने की छूट है । लेकिन हिंदू, ईसाई और पारसी में एक से ज्यादा विवाह करना अपराध है और इसमें सात साल की सजा का भी प्रावधान है, जिसके कारण बहुत से लोग धर्म बदलकर दूसरा विवाह करते हैं। कानून लागू होने से बहुविवाह करने पर रोक लगेगी।
शादी के लिए कानूनी उम्र 21 साल होगी तय
कहीं तो विवाह की न्यूनतम उम्र क्या होनी चाहिए यह तय होता है लेकिन कहीं तय नहीं होता है। एक धर्म में छोटी उम्र में भी लड़कियों की शादी हो जाती है। लड़कियों के शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्व होने तक का इंतजार नहीं किया जाता है। जबकि अन्य धर्मों में लड़कियों के 18 और लड़कों के लिए 21 वर्ष की उम्र लागू है। कानून बनने के बाद लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल तय हो जाएगी।
बिना रजिस्ट्रेशन कराए नहीं रह पाएंगे लिव इन रिलेशनशिप में
अब लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। समान नागरिक संहिता जब प्रदेश में लागू होगी तो उसके बाद लिव इन रिलेशनशिप का वेब पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। रजिस्ट्रेशन न कराने पर जोड़े को 3 महीने की जेल और 10 हजार का दंड देना यदि रजिस्ट्रेशन के लिए झूठी जानकारी दी तो 6 महीने की जेल और 25 हजार दंड देना होगा या दोनों हो सकते हैं। रजिस्ट्रेशन कराने पर जो रसीद जोड़े को मिलेगी उसी के आधार पर उन्हें किराए पर घर, हॉस्टल या पीजी मिल सकेगा।यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को साफ शब्दों में से बताया गया है। इसके अनुसार,सिर्फ एक बालिग पुरुष व बालिग महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वे पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप या प्रोहिबिटेड डिग्रीस आफ रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। रजिस्ट्रेशन कराने वाले जोड़े की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।
वास्तव में भारत की बड़ी आबादी और हिस्सा भगवान राम के ‘एक पत्नी सिद्धांत’ को ही आदर्श मानता है, वही लिव-इन रिलेशनशिप कानून कैसे स्वीकार्य हो सकता है इस संबंध में देहरादून निवासी सुमन असवाल से बात करने पर उन्होंने बताया कि इस तरीके के कानून बनाने से पहले समाज की स्वीकृति का होना आवश्यक है समाज आज भी इस तरीके के अवैधानिक रिश्तों को स्वीकार नहीं कर सकता है।
वहीं,एक युवा स्वप्निल का मानना है कि आज इसे स्वीकार करने की आवश्यकता है अगर युवा साथ में रह रहे हैं तो वह एक दूसरे को समझ रहे होंगे इसलिए इसे समाज में बुरा नहीं माना जाना चाहिए और उन्हें एक ऐसा कानून मिलना चाहिए जिसके तहत वह एक दूसरे को सबके सामने अपना सके
इस संबंध में देहरादून निवासी संदीप पाटिल का कहना है कि इस प्रकार के संबंधों को आसानी से मान्यता नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि अधिकांश संबंध में वे युवा देखे गए हैं जो पढ़ाई के दौरान दूसरे क्षेत्रों में रहने आते हैं और उसके बाद नौकरी के लिए चले जाते हैं और बाद में उनके विवाह भी कहीं और ही होते देखे गए हैं तो इस प्रकार के संबंधों को एक तरह से मान्यता मिलना एक दूसरे के साथ धोखे के समान समझ सकते है साथ ही इस प्रकार के असुरक्षित संबंध अपराध को भी जन्म देते है।
वहीं, इस संबंध में युवा हिमानी शर्मा का कहना है कि युवा बालिग होते हैं अपना अच्छा बुरा समझ सकते हैं ऐसे में अगर वह किसी को अपना पार्टनर चुनते हैं तो इसमें किसी प्रकार का विरोध नहीं होना चाहिऐ ।
इस प्रकार के संबंधों में होने वाली संतान के भविष्य की सुरक्षा के विषय में बात करने पर देहरादून निवासी यशोदा असवाल ने पुरजोर शब्दों में इस बात का विरोध करते हुए कहा कि हम अपनी संस्कृति को इस तरह बर्बाद नहीं होने दे सकते हमारे संस्कार और संस्कृति और परंपराएं ही हमारी पहचान है और भारत इसी के लिए जाना जाता है ऐसी संतानों को स्वीकार किया जाना तो दूर की बात है, ऐसे संबंधों को भी हमें स्वीकार नहीं करना चाहिए और वैधानिक अधिकार देना तो दूर की बात हैे कानून में यदि यह संशोधन हो जाए कि युवाओं को मनमानी छूट न मिले तो समाज को बचाया जा सकता है।
महिलाओं के अधिकार बढ़े, उत्तराधिकार की प्रक्रिया होगी सरल
एक धर्म के कानून में मौखिक वसीयत व दान मान्य है। तो वहीं दूसरे कानूनों में शत प्रतिशत संपत्ति की वसीयत बनाई जा सकती है। यह धार्मिक या मजहबी विषय नहीं बल्कि सिविल राइट या मानवाधिकार का मामला है। एक कानून में उत्तराधिकार की व्यवस्था बहुत कठिन है। पैतृक संपत्ति में पुत्र व पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है। कई धर्मों में विवाह के बाद अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार को नहीं बताया गया है। विवाह के बाद बेटियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है। ये अपरिभाषित हैं। इस कानून के लागू होने के बाद उत्तराधिकार की प्रक्रिया सरल बन जाएगी।
इस संबंध में देहरादून निवासी आरती भट्ट का कहना है कि संतान माता-पिता के लिए एक समान होती है अधिकारों के मामले में पुत्र और पुत्री में क्यों भेद किया जाता है उन्होंने कहा इस पैतृक संपत्ति के कानून में समानता के अधिकार ने पुरुष स्त्री के मध्य वास्तविक समानता ला दी हैे।
बच्चा गोद ले सकेंगी मुस्लिम महिलाएं
आजतक मुस्लिम महिलाओं को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं था। कानून लागू होने के बाद राज्य में मुस्लिम महिलाओं को भी गोद लेने का अधिकार मिलेगा। गोद लेने की प्रक्रिया आसान होगी। इसके साथ ही अनाथ बच्चों के लिए संरक्षकता की प्रक्रिया भी आसान हो जाएगी। कानून लागू होने के बाद दंपति के बीच झगड़े के मामलों में उनके बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी अथवा नाना नानी को दी जा सकती है।
इस संबंध में उत्तराखंड निवासी आफरीन बानो का मानना है कि कई महिलाएं जिन्हें स्वास्थ्य की परेशानियों के कारण संतान नहीं हो पाती हैे ऐसे में मुस्लिम समुदाय की यह महिलाएं अगर बच्चा गोद ले पाएंगी तो मातृत्व सुख के साथ उन्हें पारिवारिक तनाव से भी मुक्ति मिलेगी उन्होंने कहा गोद लेने वाले इस समान कानून का स्वागत किया जाना चाहिऐ।
युवा काजिमा अब्बास का कहना है कि लोग भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं की शरीयत में बच्चा गोद लेने का प्रावधान नहीं है उन्होंने कहा हर महिला को जब अधिकार है कि उसकी संतान नहीं है तो वह एक बच्चा गोद ले सके साथ ही मुस्लिम महिलाओं को भी अधिकार होना चाहिए उत्तराखंड में मुस्लिम महिलाओं को अन्य धर्म के समान के समान अधिकार प्राप्त हुआ है जिसकी उन्हें बहुत खुशी हैे।
तलाक के लिए मिलेगा समान आधार
पति-पत्नी दोनों को तलाक के लिए समान आधार उपलब्ध होंगे। तलाक का जो ग्राउंड पति के लिए लागू होगा, वही पत्नी के लिए भी लागू होगा। फिलहाल पर्सनल लॉ के तहत पति और पत्नी के पास तलाक के अलग-अलग ग्राउंड हैं। यहां यह एक अच्छी बात है की शादी के 1 साल तक तलाक के लिए अर्जी नहीं दे सकते।
जनजातियों का नहीं कोई समान कानून
समान नागरिक संहिता विधेयक जनजातियों को बाहर रखने के कारण अनुचित दिखाई दे रहा है संबंध में सरकार का यह मानना है कि वह जनजातियों की परंपरा संस्कृति और रीति-रिवाज का संरक्षण कर रही है इसलिए वह इस कानून के तहत इनको सम्मिलित नहीं कर रही है लेकिन जनजातियों में ऐसी कई को प्रथाएं प्रचलित है जिसके कारण समाज में विक्षेपण की स्थिति आती है बहु विवाह प्रथा पांचाली प्रथा बाल विवाह जैसी कई कुरीतियों प्रथाओं के नाम पर इन जनजातियों में चलती आ रही है इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि सरकार जनजातीय पर चुनावी माहौल में किसी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहती हैे।
बहरहाल समान नागरिक संहिता लागू हो चुकी है और महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल बताई जा रही है ऐसे में सरकार को पुनर्गठन समिति की सिफारिश का ध्यान रखते हुए इस विधान को समाज के हर वर्ग संस्कृति रीति रिवाज और परंपराओं के आधार पर पुनर्गठित करने की आवश्यकता हैे इस्लाम में शरीयत में दिए गए सुधारों को भी इसमें ध्यान दिया जाना आवश्यक है अत: यह कहना गलत नहीं होगा कि कानून में सुधार की बहुत संभावनाएं हैं और इसे जल्दबाजी में लागू करके थोपा नहीं जाना चाहिऐ बल्कि इसमें हर वर्ग हर समुदाय और खासकर महिला वर्ग की राय ली जानी आवश्यक हैे। एक राष्ट्र एक विधान कि यह व्यवस्था क्या समाज को स्वीकार्य होगी क्या यह ऐसे ही बहस का विषय बनता जाएगा चिंतन करना होगो।