जयपुर। राजस्थान के राजनीतिक पटल पर इस साल एक नई इबारत लिखी गई जब पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा ने 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही बारी-बारी से राज्य की सत्ता के केंद्र में रहे अशोक गहलोत व वसुंधरा राजे के युग का एक तरह से अवसान हो गया।
राजस्थान में 25 साल तक सिर्फ दो लोग ही बारी-बारी से मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसकी शुरुआत 1998 में हुई जब कांग्रेस नेता अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने। उसके बाद हर पांच साल मुख्यमंत्री पद गहलोत और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वसुंधरा राजे के बीच बदलता रहा। लेकिन इसी साल दिसंबर में यह क्रम टूट गया और 25 नवंबर को राज्य विधानसभा की 200 में से 199 सीट के लिये हुये चुनाव में भाजपा ने 115 सीट जीत का बहुमत हासिल किया।
भाजपा की ओर से भजनलाल शर्मा को विधायक दल नेता चुना गया और उन्होंने 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ दिया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। यह अलग बात है कि राज्य में भाजपा को बहुमत मिलने के बाद राजे को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था। हालांकि, पार्टी ने सांगानेर सीट से पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को चुनकर चौंका दिया।
वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गहलोत ने इस चुनावी साल में यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत लगा दी कि अगर पार्टी सत्ता में वापसी करे तो वे मुख्यमंत्री पद के लिए आलाकमान की पहली पसंद हों। इसके लिए उनकी तत्कालीन सरकार ने ‘‘महंगाई राहत शिविर’’ के जरिए सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का प्रचार किया।
उनकी इन प्रमुख योजनाओं में उज्ज्वला योजना के तहत लाभार्थी परिवारों को 500 रुपये में रसोई गैस सिलेंडर उपलब्ध कराना शामिल है। इसी साल उनकी सरकार ने महत्वाकांक्षी चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना को भी बढ़ाने की घोषणा की जिसमें लाभार्थियों को प्रति वर्ष 25 लाख रुपये तक का ‘‘मेडिकल कवर’ दिया जाता है। लेकिन गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच खींचतान राज्य में पार्टी के प्रदर्शन पर भारी पड़ी।
पायलट ने पिछली भाजपा सरकार के दौरान हुए कथित ‘‘भ्रष्टाचार’’ के मामलों में ‘पर्याप्त कार्रवाई नहीं होने’ के खिलाफ और सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक को लेकर प्रदर्शन किया। उन्होंने एक दिन का उपवास रखा और एक तरह से तत्कालीन गहलोत सरकार पर निशाना साधते हुए अजमेर से जयपुर तक पैदल मार्च भी निकाला।