चुनावी हिंसा में गिरावट ने निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा बढ़ाई

Election Commission: मत प्रतिशत में बढ़ोतरी, लगभग शून्य पुनर्मतदान, रिकॉर्ड जब्ती और चुनावी हिंसा में गिरावट – ये ऐसी प्रमुख उपलब्धियां हैं जिन्होंने वर्ष 2023 में निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा बढ़ाई। अधिकारियों ने कहा कि पांच राज्यों में हाल में हुए विधानसभा चुनाव इस बात का संकेत हैं कि ‘‘मूक सुधारों’’ ने चुनाव आयोजित कराने और निगरानी करने के तरीके को कैसे बदल दिया है।

छत्तीसगढ़ के वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में चुनाव कराना निर्वाचन आयोग के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाले सबसे बड़े कारकों में से एक रहा। आजादी के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ में 126 नक्सल प्रभावित गांवों में मतदान केंद्र स्थापित किए गए। ये बदलाव मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार के नेतृत्व में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए संरचनात्मक, तकनीकी, प्रशासनिक, प्रवर्तन प्रभावशीलता और क्षमता निर्माण सुधारों के रूप में किए गए थे।

अधिकारियों ने बताया कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, मिजोरम, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्यों में पिछले 11 विधानसभा चुनावों में ये बदलाव देखे गए। उन्होंने कहा कि इन चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के खिलाफ ‘‘एक भी शिकायत नहीं’’ मिली।

अधिकारियों ने कहा कि जहां जीत का अंतर 500 वोटों से कम था, वहां भी उम्मीदवारों ने फिर से मतगणना की मांग किए बिना परिणामों को स्वीकार कर लिया। पिछले 11 विधानसभा चुनावों में हिंसा की बहुत कम घटनाएं हुईं। त्रिपुरा में ‘‘पहली बार’’ बिना किसी पुनर्मतदान के, शांतिपूर्ण मतदान हुआ और नगालैंड में भी ऐसा ही हुआ।

निर्वाचन आयोग ने, मतदाताओं को लुभाने के लिए उम्मीदवारों द्वारा धन-बल का इस्तेमाल किए जाने पर अंकुश लगाने के वास्ते कई कदम उठाए और प्रवर्तन एजेंसियों ने पिछले 11 विधानसभा चुनावों में 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की रिकॉर्ड राशि जब्त की। जब्त की गई राशि में पिछले चुनावों की तुलना में 10 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। चुनावों में 11 में से सात राज्यों में अपेक्षाकृत अधिक मतदान हुआ।

इन 11 राज्यों में कुल मतदान प्रतिशत 73.41 फीसदी रहा। छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के 126 मतदान केंद्रों पर 72 प्रतिशत से अधिक मतदान दर्ज किया गया। अधिकारियों ने कहा कि प्रचार अभियानों के दौरान अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कम हुआ और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के कुछ ही मामले सामने आए। आयोग ने दीर्घकालिक प्रभाव के लिए पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव आचार संहिता के तहत नोटिस देने का विवेकपूर्ण उपयोग किया।

अतीत की तीखी टिप्पणियों की तुलना में अदालतों ने आयोग को लेकर ‘‘बिल्कुल शून्य नकारात्मक टिप्पणियां’’ कीं और कई मामलों को दाखिले के चरण में ही खारिज कर दिया गया। अपनी ‘रोल टू पोल’ रणनीति के तहत निर्वाचन आयोग ने सभी दिव्यांग व्यक्तियों (पीडब्ल्यूडी), ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों और विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों को मतदान केंद्रों तक लाने के प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया।

बुजुर्गों और दिव्यांगजन को घर पर मतदान की सुविधा प्रदान की गई, जबकि महिलाओं को मतदान के लिए घरों से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित किया गया। आयोग ने डाक मतपत्रों की एक संशोधित प्रणाली का भी उपयोग किया, जिसमें चुनाव ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों के लिए सुविधा केंद्र पर मतदान अनिवार्य करने वाले नियम में संशोधन भी शामिल है।

कानून-व्यवस्था की समस्या के कारण दशकों से लंबित असम परिसीमन प्रक्रिया को रिकॉर्ड समय में पूरा करना निर्वाचन आयोग के लिए एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर रहा। अपनी तरह की पहली पहल करते हुए 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले आयोग ने मसूरी के लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों का एक सम्मेलन आयोजित किया। यह सम्मेलन आगामी चुनावों के सुचारू और सफल संचालन के लिए महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा पर केंद्रित था।

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