धर्मपाल धनखड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS) और बीजेपी(BJP) के बीच चल रही खींचतान की खबरें अब बाहर आने लगी हैं। संघ कार्यकर्ताओं में बीजेपी को लेकर नाराजगी सबसे पहले उस समय सामने आयी जब संघ के पूर्व प्रचारकों ने पिछले महीने भोपाल में ‘जनहित पार्टी’ नाम से एक नया राजनीतिक दल बनाने की घोषणा कर दी। हालांकि इस नयी पार्टी के गठन को एक महीने से ज्यादा का अर्सा हो चुका है। लेकिन अभी तक धरातल पर इसकी कोई खास गतिविधि नजर नहीं आयी है। ना ही पार्टी के उम्मीदवारों की कोई सूची जारी की गयी है। लेकिन इस घटना से ये बात खुलकर सामने आ गयी कि संघ और बीजेपी के बीच सब ठीक-ठाक नहीं चल रहा है।
संघ के उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार के असहयोगात्मक रुख के चलते संगठन में नाराजगी है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी और संघ के बीच कई मुद्दों को लेकर सहमति बनी थीं। इसमें संघ के एजेंडे को तेजी के साथ लागू करना था। जिसमें जम्मू-कश्मीर( Jammu and Kashmir) से धारा-370 हटाना, राममंदिर का निर्माण करवाना, सीएए, एनआरसी और समान नागरिक संहिता लागू करवाना शामिल थे। ये मुद्दे बीजेपी के चुनाव घोषणा पत्रों में भी लंबे समय से शामिल होते रहे हैं। मोदी सरकार ( Modi government) ने जम्मू-कश्मीर में धारा-370 खत्म कर दी है और अयोध्या में भव्य राममंदिर का निर्माण तेजी से हो रहा। संघ और बीजेपी के बीच हुई परस्पर सहमति में सरकार बनने पर देश भर में संघ के कार्यालयों के लिए भू-खंड अलाट करने की भी शर्त थी। जिसे पूरा करने के लिए सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है। इसके अलावा संघ के कार्यकर्ताओं को सरकार में मंत्रियों तथा पार्टी पदाधिकारियों के साथ कार्यकर्ताओं को समायोजित यानी एडजस्ट किया जायेगा। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में संघ के कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता के आधार पर एडजस्ट किया भी गया। लेकिन दूसरे कार्यकाल में गुजरात के कार्यकर्ताओं को छोड़कर, अन्य राज्यों के कार्यकर्ताओं एडजस्ट नहीं किया गया। इसको लेकर संघ के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त नाराजगी है।
संघ और बीजेपी नेतृत्व के बीच गरीब तबकों, आदिवासियों, अनुसूचित जातियों व जनजातियों तथा वनवासियों के कल्याण के लिए कुछ खास योजनाएं शुरु किये जाने पर भी सहमति बनीं थीं। लेकिन सरकार ने उस दिशा में अब तक कोई ठोस काम नहीं किया है। इसके चलते संघ की आदिवासियों, वनवासियों और अन्य जनजातियों को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जोड़ने की मुहिम लगभग ठप्प पड़ गयी है। बीजेपी और संघ के पदाधिकारियों की की समन्वय बैठकें नियमित तौर पर होनी थी, लेकिन पिछले डेढ़ साल से ज्यादा समय से कोई बैठक नहीं हुई है। इन बैठकों में गृहमंत्री अमित शाह को भी शामिल होना था। इन तमाम कारणों से संघ कार्यकर्ताओं में सरकार के प्रति रोष और नाराजगी है। संघ एक अनुशासित संगठन है। इसलिए उसके कार्यकर्ताओं की खुले तौर पर बगावत की संभावना तो नहीं है। सूत्रों की मानें तो इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के समय संघ के कार्यकर्ता सामूहिक अवकाश लेने की रणनीति बना रहे हैं। इसका परिणाम ये होगा कि संघ के जमीनी स्तर के कार्यकर्ता जो बीजेपी का झंडा उठाए बगैर लोगों को बूथ तक लाने का काम करता है। वो शांत बैठ जायेगा और चुनाव में सक्रिय भूमिका नहीं निभायेगा। यदि ऐसा होता है, तो बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। संघ नेतृत्व की मंशा केवल बीजेपी नेताओं यानी मोदी-शाह को अपनी ताकत का अहसास भर करवाना है। चूंकि संघ ये मानता है कि मोदी के साढ़े नौ साल के कार्यकाल में उसके एजेंडे पर तेजी से काम हुआ है। इसलिए वह केवल एक हल्का सा झटका देने के मूड में हैं, ताकि लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी संघ की मांगों पर ध्यान दें।
दूसरी तरफ संघ के भीतर भी गुजराती और मारवाड़ी गुटों वर्चस्व के लिए जोर आजमाइश जारी है। 2014 से पहले तक संघ में राजस्थानी मूल के व्यापारियों का प्रभुत्व था। एक बार पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने संघ और बीजेपी में मारवाड़ी समाज के योगदान को खुलकर स्वीकार भी किया था। 2014 के बाद संघ और पार्टी दोनों में गुजराती व्यापारी समाज का आधिपत्य स्थापित हो गया है और मारवाड़ी समाज को हाशिए पर धकेल दिया गया है। दोनों गुटों में सामंजस्य बनाये रखने के लिए ओम बिड़ला को आगे किया गया था, लेकिन अब उन्हें भी साइड कर दिया गया है। यूं भी मोदी-शाह के सामने अब किसी की कोई बिसात नहीं है।
गौरतलब है कि साल 2025 में संघ की स्थापना के सौ बरस पूरे हो रहे हैं। संघ का लक्ष्य है कि शताब्दी वर्ष में संघ की शाखाएं देश के छोटे से छोटे गांव में भी लगनी चाहिए। इसके लिए उसे केंद्र सरकार के सहयोग की दरकार है, जो उसे नहीं मिल रहा है। इसके साथ ही संघ के सौवें स्थापना समारोह को भव्य और दिव्य बनाने के लिए भी केंद्र में बीजेपी की सरकार होना बेहद अनिवार्य है। इसलिए संघ महज बीजेपी पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। संघ नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे की फीकी पड़ती चमक और हिंदुत्व के मुद्दे की कुंद होती धार को लेकर भी सचेत हैं। इसलिए कई महीने पहले संघ अपने मुखपत्र के जरिये बीजेपी को चेतावनी भी दी कि अब हिंदुत्व के मुद्दे और मोदी के चेहरे के सहारे चुनाव जीतना संभव नहीं है। चुनाव जीतने के लिए कुछ ओर करना होगा। लेकिन मोदी-शाह ने संघ की चेतावनी को दरकिनार कर दिया है। इसीलिए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मोदी के चेहरे पर ही वोट मांगें जा रहे हैं। ऐसे में यदि संघ कार्यकर्ताओं ने चुनाव के समय अवकाश ले लिया, तो बीजेपी को जोर का झटका धीरे से लग सकता है।