भारतीय संस्कृति की संवाहक ब्रह्माकुमारी डॉ निर्मला दीदी का जाना!

डॉ. गोपाल नारसन एडवोकेट
ब्रह्माकुमारीज संस्था की संयुक्त मुख्य प्रशासिका 88 वर्षीय डॉ. निर्मला दीदी (Dr. Nirmala Didi) अब लौकिक रूप में हमारे बीच नही है।उन्होंने  अहमदाबाद के एक अस्पताल (Hospital)में शारिरिक रुग्णता के चलते 20 अक्टूबर की सुबह 10 बजकर 56 मिनट पर अपना शरीर छोड़ा और परमात्मा शिव की गोद मे चली गई।निर्मला दीदी ने ब्रह्माकुमारीज संस्था के माध्यम से ईश्वरीय सेवा करते हुए विश्व के 70 से अधिक देशों तक भारतीय संस्कृति  (Indian Culture) का संदेश पहुंचाया,जिससे वे वैश्विक पटल पर भारतीय संस्कृति की संवाहक बन गई।एमबीबीएस करने के बाद 27 वर्ष की आयु में सन 1962 में ब्रह्माकुमारीज संस्थान के संपर्क में आईं निर्मला दीदी ने सन 1966 से ईश्वरीय सेवा में समर्पित होकर अपनी सेवाएं दी।
वे ज्ञान सरोवर अकादमी माउंट आबू की निदेशिका रही। सन1935 में मुंबई में जन्मी और सन 1962 में ब्रह्माकुमारीज के संपर्क में आईं निर्मला दीदी की ब्रह्माबाबा से पहली मुलाकात सन  1964 में हुई थी और उसके दो साल बाद वे पूरी तरह से ब्रह्माकुमारीज की हो गई।उन्होंने सन 1971 में लंदन से विदेशी सरजमीं पर ईश्वरीय सेवाएं देना शुरू की और 70 से अधिक देशों ईश्वरीय ज्ञान,अध्यात्म का संदेश व भारतीय संस्कृति का प्रकाश फैलाया। ब्रह्माकुमारीज संस्थान की संयुक्त मुख्य प्रशासिका के रूप में डॉ. निर्मला दीदी जब संस्था से जुड़ी उस समय उनकी आयु मात्र 27 वर्ष की थी।उन्होंने पूरा जीवन समाज कल्याण के प्रति समर्पित कर दिया था। वे ब्रह्माकुमारीज की कोर कमेटी सदस्य होने के साथ साथ ज्ञान सरोवर को भी बखूबी संभाला। ब्रह्मा बाबा से ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त कर उसे अपने जीवन मे उतारकर सरलता, विनम्रता और उदारता की प्रतिमूर्ति बनी डॉ. निर्मला दीदी के जीवन से प्रेरणा लेकर हजारों लोगों ने अपना जीवन आध्यात्मिक व  आनंदमय बनाया। मुंबई के एक  प्रसिद्ध व्यापारी परिवार में सन 1935 में जन्मी डॉ. निर्मला दीदी बचपन से ही प्रतिभावान रहीं।बचपन में खेलकूद के साथ साथ पढ़ाई में विशेष रुचि रखती थीं।  मुंबई में सन 1962 में प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती (मम्मा) से ज्ञान प्राप्त कर उनके जीवन से प्रभावित होकर अध्यात्म के प्रति दीदी की विशेष रुचि बढ़ती चली गई।  मम्मा के प्रवचनो और उनके पवित्र जीवन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। सन 1962 मेंब्रह्माकुमारीज संस्थान से राजयोग मेडिटेशन की शिक्षा लेने के बाद वे पहली बार सन 1964 में माउंट आबू पहुंचीं थी, जहां ब्रह्मा बाबा से मुलाकात के बाद उन्होंने  समर्पित रूप से सेवाएं देने का संकल्प किया।  सेवा साधना के इस पथ पर चलने के उनके संकल्प में उनके माता-पिता ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी थी, यह वह समय था जब महिलाओं का विश्वसेवा में तपस्या की राह पर चलते हुए अपना जीवन समर्पित करना साहसपूर्ण निर्णय माना जाता था।
उच्च शिक्षित होने के कारण तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने डॉ. निर्मला दीदी को विदेश सेवाओं की जिम्मेदारी सौंपी थी। सन 1971 में लंदन में दादी जानकी के साथ कुछ समय सेवाएं देने के बाद उन्होंने अफ्रीका, मॉरीशस, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर सहित 70 देशों में  अध्यात्म और राजयोग मेडिटेशन की अलख जगाई।उन्हें
अध्यात्म के क्षेत्र में उनकी विशेष सेवाओं को देखते हुए आस्ट्रेलिया सरकार ने  ऑस्ट्रेलिया अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा। पिछले 12 साल से वे ब्रह्माकुमारीज संस्थान के माउंट आबू स्थित ज्ञान सरोवर परिसर की निदेशिका और तीन साल से संयुक्त मुख्य प्रशासिका की जिम्मेदारी संभाल रहीं थीं।
दृढ़ इच्छा शक्ति, आत्मबल, उच्च कोटि के चरित्र बल का परिणाम है कि निर्मला दीदी ने चंद वर्षों में हजारों लोगों को राजयोग के माध्यम से पश्चिमी संस्कृति से निकालकर भारतीय संस्कृति से जोड़कर उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन किया ।
उन्होंने अपना पूरा जीवन विश्व के कल्याण में लगा दिया। उनका सरल जीवन और विनम्र स्वभाव सभी को प्रभावित करता था।
ब्रह्माकुमारीज की मुख्य प्रशासिका बीके रतनमोहिनी दादी के शब्दों में,’डॉ निर्मला दीदी की ईश्वरीय सेवाएं और वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति की जगाई गई अलख सदा याद रहेगी।’ऐसी परमात्म फरिश्ता डॉ निर्मला दीदी को शत शत नमन।
(लेखक ब्रह्माकुमारीज मिडियाविंग के आजीवन सदस्य व वरिष्ठ पत्रकार है)

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